महाभारत की कहानियां— कर्ण
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कर्ण को उसकी दानवीरता के लिए याद किया जाता है. महाभारत में अर्जुन को धनुर्विद्या में कोई टक्कर दे सकता था तो वह कर्ण ही था. कर्ण पांडवों में सबसे बड़ा था लेकिन उसने कुरूक्षेत्र में पांडवों के विरूद्ध युद्ध किया.
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महर्षि दुर्वासा ने कुंती की सेवा से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि वे जिस देवता का आवाहन करेगी, उससे उसे एक वीर पुत्र की प्राप्ति होगी. कुंती ने वरदान की सत्यता परखने के लिए सूर्यदेव का आवाहन किया और सूर्य देव ने कुंती को कर्ण के रूप में एक पुत्र प्रदान किया. एक अविवाहित कन्या के पुत्र को समाज स्वीकार नहीं करता.
इस अपमान से बचने के लिए कुंती ने अपने पुत्र कर्ण को जल में प्रवाहित कर दिया. कर्ण बहते हुए दूर निकल आया तो हस्तिनापुर के सारथी ने उसे देखा. संतान हीन होने की वजह से उसने कर्ण को पोषण किया. कर्ण जब युवा हुआ तो उसके पिता ने शस्त्रों में उसकी रूचि देखते हुए उसे शस्त्र विद्या में निपुण बनाने का संकल्प लिया.
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कर्ण को लेकर सबसे पहले उसके पिता द्रोणाचार्य के पास गए. द्रोणाचार्य ने यह कहते हुए कर्ण को शस्त्र विद्या देने से इंकार कर दिया कि वे केवल हस्तिनापुर के राजकुमारों को ही यह शिक्षा प्रदान करते हैं. कर्ण ने इसके बाद परशुराम जी से शस्त्र विद्या ग्रहण की. उसने परशुराम जी को स्वयं को ब्राहृमण पुत्र बताया.
एक बार जब परशुराम जी विश्राम कर रहे थे तभी एक जहरीले कीड़े ने कर्ण के पैर को काट लिया और उसका रक्त बहने लगा लेकिन गुरू की नींद न खुल जाए इसलिए कर्ण ने कोई आवाज नहीं की. जब गुरू की नींद खुली तो वे क्रोधित हो गए क्योंकि वे जान गये थे कि कर्ण एक क्षत्रिय है और भीष्म से युद्ध में हारने के बाद उन्होंने प्रण लिया था कि वे किसी क्षत्रिय को शस्त्र विद्या नहीं देंगे। परशुराम जी ने कर्ण को श्राप दिया कि उसने झूठ बोलकर विद्या अर्जित की है इसलिए जब उसे इसकी सबसे अधिक आवश्यकता होगी, वह इसे भूल जाएगा.
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दुर्योधन ने उसकी वीरता को देखकर उसे अंग राज्य का राजा बना दिया. इस वजह से वह दुर्योधन का ऋणी हो गया. महाभारत के युद्ध से पहले अपने पुत्र अर्जुन को अजेय बनाने के लिए इंद्र ने साधु का वेश धरकर कर्ण से उसके कवच और कुंडल मांग लिये, जिसे कोई शस्त्र नहीं बेध सकता था.
सूर्यदेव ने इंद्र की इस चाल के बारे में कर्ण को पहले ही बता दिया लेकिन दानवीर होने की वजह से वह किसी मांगने वाले को लौटा नहीं सकता था इसलिए इंद्र को उसने सहर्ष कवच और कुंडल दे दिए. इंद्र ने उससे प्रसन्न होकर अपना अमोघ अस्त्र उसे सौंप दिया जिसे वह केवल एक बार इस्तेमाल कर सकता था. इसी अस्त्र से उसने भीम के महाबली पुत्र घटोत्कच का वध किया.
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युद्ध में भीष्म में कर्ण को अपनी सेना में शामिल नहीं किया लेकिन भीष्म के शरशैय्या पर लेटने के बाद और द्रोण के वध के बाद कर्ण कौरवों का सेनापति बना. एक दिन अर्जुन के साथ युद्ध करते वक्त उसके रथ का पहिया मिट्टी में धंस गया, जिसे निकालते वक्त अर्जुन ने उसका वध कर दिया. इस तरह एक महाबलि योद्धा के जीवन का अंत हो गया.
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