Osho Stories in Hindi |
Motivational Stories of Osho
Osho Stories in Hindi
ओशो की कहानियां— शांति और पागलपन
मैंने सुना है, सूफी फकीर बायजीद से उसके एक शिष्य ने पूछा--एक शिष्य ने, जो स्वयं भी सिद्ध हो गया है, जो संबोधि को उपलब्ध हो गया है--उसने पूछा कि मैं क्या करूं? बड़ी मुश्किल हो गई! जब से लोगों को इसका सुराग लग गया कि मुझे ज्ञान हो गया है, बड़ी भीड़-भाड़ होती है. मुझे शांति से बैठने का क्षण भी नहीं मिलता. रात सो भी नहीं पाता, लोग मेरे पैर दबाते रहते हैं. दिन भर मेरे पीछे लगे रहते हैं। मैं क्या करूं?
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बायजीद ने कहा, ऐसा कर, तू पागल का ढोंग कर. तू गालियां बकने लग, पत्थर फेंकने लग, लोगों को मारने लग. बस दो दिन में भीड़ छंट जाएगी.
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और यही उसने किया और दो दिन में भीड़ छंट गई. भीड़ के पास आंखें थोड़े ही हैं. भीड़ ने समझा कि यह पागल है. वह आया और बायजीद के चरणों में झुका और उसने कहा कि धन्यवाद! नहीं तो ये तो मुझे सता ही डालते. अब कोई नहीं आता. अब तो हालत उलटी है. मैं अगर जाता हूं किसी की तरफ तो वह भाग निकलता है. लोग कहते हैं यह पागल हो गया है. मगर बड़ा अच्छा हुआ. अब मैं बीच बाजार में भी रहूं तो भी अकेला हूं, एकांत में हूं.
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लोग पागल ही समझ लेंगे तो क्या हर्ज है? लोग वैसे भी किसी दूसरे को बुद्धिमान थोड़े ही समझते हैं. यहां प्रत्येक अपने को बुद्धिमान समझता है. वैसे भी लोग कहते हों या न कहते हों, दूसरों को तो लोग नासमझ ही समझते हैं. बहुत से बहुत कहने लगेंगे.
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डरो मत, मस्त होने से घबड़ाओ मत. निश्चित ही तुम मस्त होओगे तो लोग तुम्हें पागल कहेंगे. क्योंकि लोगों ने केवल पागलों को ही भर मस्त रहने की सुविधा छोड़ी है, और किसी को मस्त रहने की सुविधा ही नहीं छोड़ी. फिक्र न करना. लोग पागल भी समझें तो क्या बिगड़ता है? असली सवाल तो परमात्मा का है कि परमात्मा क्या समझता है. असली जवाब तो वहां देना है, लोगों से क्या लेना-देना है? लोगों ने पागल भी समझा तो ठीक है, अच्छा ही है.
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मगर आनंद को जीओ, चाहे कोई कीमत चुकानी पड़े. पागल समझे जाओ तो समझे जाओ. आनंद को जीओ! सूली लगे तो लग जाए. आनंदित मनुष्य को सूली भी लगे तो सिंहासन मिल जाता है और दुखी आदमी सिंहासन पर भी बैठा रहे तो सूली ही रहती है, सिंहासन संभव नहीं है.
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मेरा संदेश छोटा सा है: आनंद से जीओ! और जीवन के समस्त रंगों को जीओ, सारे स्वरों को जीओ. कुछ भी निषेध नहीं करना है. जो भी परमात्मा का है, शुभ है. जो भी उसने दिया है, अर्थपूर्ण है. इसमें से किसी भी चीज का इनकार करना, परमात्मा का ही इनकार है, नास्तिकता है.
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और तब एक अपूर्व क्रांति घटती है! जब तुम सबको स्वीकार कर लेते हो और आनंद से जीने लगते हो तो तुम्हारे भीतर रूपांतरण की प्रक्रिया शुरू होती है. तुम्हारे भीतर की रसायन बदलती है--क्रोध करुणा बन जाती है; काम राम बन जाता है. तुम्हारे भीतर कांटे फूलों की तरह खिलने लगते हैं.
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