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जातक कथा- बंजारा का बेटा

प्राचीन समय की बात है. उस समय बोधिसत्व ने एक बंजारे के घर में जन्म लिया और उम्र बढ़ने के साथ ही एक सफल व्यापारी बन गए. कुछ समय तक आस-पास के क्षेत्र में व्यापार करने के बाद उन्हें बड़े सौदे के लिए प्रख्यात काशी नगर जाने का विचार बनाया. उस वक्त काशी ही व्यापार का बड़ा केन्द्र हुआ करता था.

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उस वक्त के सबसे बड़े व्यापारी काशी जाकर ही अपने सामान की खरीद-फरोख्त किया करते थे. बोधिसत्व ने काशी जाने के लिए पांच सौ आदमियों और इतने ही छकड़ों का एक झुंड तैयार किया. वे रवाना होने ही वाले थे कि उन्हें पता लगा कि एक और बंजारे का बेटा इतने ही लोगों के दल के साथ काशी जा रहा है.

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बोधिसत्व ने सोचा कि अगर इतने बड़े दो दल एक साथ जाएंगे तो न तो मार्ग में पूरा खाने को मिलेगा और न ही पीने को पानी मिलेगा. ऐसे में उन्होंने बंजारे के बेटे के पास जाकर अनुरोध किया कि या तो वह आगे जाए या फिर उन्हें आगे जाने दे.

बंजारे के बेटे ने सोचा कि आगे जाने में लाभ ही लाभ है. पानी के सोते भरे हुए मिलेंगे और बैलों को खाने के लिए उगी हुई घास मिलेगी. साथ ही पहले पहुंचने से सौदा करने के ज्यादा मौके मिलेंगे तो आगे जाना ही श्रेष्ठ होगा. बंजारे के बेटे ने बोधिसत्व से कहा कि वह ही आगे जाएगा. बोधिसत्व मुस्कुराए और उत्तर दिया कि जैसी ईश्वर की इच्छा, तुम्हारे अनुभव से मुझे लाभ होगा.

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बंजारे का बेटा आगे निकला और चलते-चलते उसके सामने एक बड़ा रेगिस्तान आ गया, जहां दूर-दूर तक पानी नहीं था. अपने दल को प्यासे मरने से बचाने के लिए बंजारे के बेटे ने छकड़ों का माल खाली करवा कर मटको में पानी भरवाया और रेगिस्तान को पार करने के लिए सफर की शुरूआत कर दी.

उस रेगिस्तान पर कुख्यात डाकुओं का अधिपत्य था जो व्यापारी दलों को लूटने और उनकी हत्या के लिए जाने जाते थे. जब डाकुओं को पता लगा कि बंजारे का बेटा 500 लोगों के दल के साथ है तो उनकी हिम्मत टूट गई क्योंकि इतने बड़े दल से लड़ने के उनके पास आदमी नहीं थे. डाकुओं के सरदार ने अपने दल को आश्वस्त किया कि घबराने की जरूरत नहीं है.

डाकुओं के सरदार ने योजना बनाई कि उसके साथी अपने आप को पूरी तरह गीला कर लेंगे और अपने बैलों को कमल और कुमुदनी की घास खिलाते हुए बंजारे के बेटे के दल के पास से गुजरेंगे. डाकुओं ने ऐसा ही किया और जब वे बंजारे के बेटे के दल के पास से गुजरे तो बंजारे के बेटे ने उनसे भीगे होने का कारण पूछा. डाकूओं के सरदार ने बताया कि आगे बहुत तेज बरसात हो रही है इस वजह से वे सब भीग गए हैं.

बंजारे के बेटे ने को डाकुओं के सरदार ने यह भी बताया कि आगे हरित प्रदेश है जहां के तालाब में कमल और कुमुदनी खिली हुई है और इसी वजह से उसके बैल कमल और कुमुदनी के पते खा रहे हैं. आप चाहे तो इन मटकों के पानी को गिरा सकते हैं और हल्के होकर तेजी से यात्रा कर सकते हैं और जल्दी सौदा करके मुनाफा कमा सकते हैं.

बंजारे के बेटे को उनकी बात जम गई और उसने सभी मटको का पानी फिंकवा दिया. कुछ दूर तक चलने के बाद सबको प्यास लग गई लेकिन हरित प्रदेश नहीं आया. शाम होते-होते सारा दल प्यास से त्रस्त और कमजोर हो गया. रात को डाकुओं ने इस दल पर हमला करके सबकी हत्या कर दी और सामना लूट लिया. बंजारा का बेटा मारा गया.

बोधिसत्व भी यात्रा करते-करते रेगिस्तान के मुहाने तक आ गए और उन्होंने भी आगे की यात्रा के लिए मटको में पानी भरवा कर यात्रा शुरू की. डाकुओं के सरदार ने उन भी यही तरकीब आजमाई और उन्हें मटकों का पानी फेंकने के लिए कहा.

डाकुओं के जाने के बाद जब बोधिसत्व के आदमियों ने मटको का पानी फेंकने के लिए बोधिसत्व से कहा तो उन्होंने उत्तर दिया कि क्या तुम सबने कभी बरसता देखी है. दल ने हां में उत्तर दिया. तो बताओं की उसकी हवा कितनी दूर तक चलती है. दल ने जवाब दिया, एक योजन तक.

बोधिसत्व ने पूछा क्या तुमने में से किसी ने भी अपने शरीर पर बरसता की हवा को महसूस किया. दल ने ना में सिर हिलाया.
बोधिसत्व ने फिर पूछा कि बरसात के बादल कितनी दूर तक दिखाई देते हैं. दल ने उत्तर दिया, दो योजन तक. क्या तुम में से किसी को भी आकाश में बादल दिखाई दे रहे हैं. दल ने ना में सिर हिलाया.

बोधिसत्व ने पूछा कि बरसात के बादलो की गड़गड़ाहट कितनी दूर तक सुनाई देती है तो दल ने उत्तर दिया, तीन योजन तक. क्या तुम में से किसी को बादलों की गड़गड़ाहट सुनाई दी. दल का उत्तर ना था.

बोधिसत्व ने दल को समझाया कि वे व्यापारी नहीं थे, वे डाकू थे और वे आज रात को हमला करेंगे. रात को दल डाकुओं के हमले के लिए तैयार था और डाकू जैसे ही आए, दल ने उनका खात्मा कर दिया और उस रेगिस्तान को डाकुओं के आतंक से आजाद करवाया.

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The Jataka tales or we called it जातक in Sanskrit are a part of Buddhism literature in India In theses stories they claim an elaborate the previous births of Gautama Buddha in human and animal form. They Believe that in future Buddha may appear as a king, an outcast, a god, an elephant—but, in whatever form, he exhibits some virtue that the tale thereby inculcates. Often, Jataka tales or jatak katha wherever people in trouble the Buddha character intervenes to resolve all the problems and bring about a happy ending.

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