महाभारत की कहानियां-महात्मा विदुर
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राजा विचित्रवीर्य की जब कोई संतान नहीं हुई तो राजमाता देवयानी अपने वंश को लेकर चिंतित हुई और उन्होंने वेदव्यास जी से संपर्क किया. वेदव्यास जी ने माता देवयानी को आवश्वासन दिया.
उन्होंने अपने तप बल से पुत्र प्रदान देने का वचन दिया लेकिन वे ऐसा सिर्फ तीन बार ही कर सकते थे. माता देवयानी ने विचित्रवीर्य की दोनो रानियों को यह बात बताई.
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पहली रानी जब वेदव्यास के पास गई तो उन्होंने उनके तेज की वजह से अपनी आंखे बंद कर ली. इस वजह से उनके गर्भ में पुत्र की आंखे चली गई जो आगे चलकर धृतराष्ट्र के नाम से जाने गए.
छोटी रानी ने डर के मारे अपनी जगह अपनी दासी विलरा को वेदव्यास के पास भेज दिया. वेदव्यास से उस दासी को एक सर्वगुण सम्पन्न पुत्र प्राप्त हुआ जो आगे चलकर विदुर के नाम से विख्यात हुए.
इसके बाद छोटी रानी स्वयं वेदव्यास के पास गई लेकिन वे भयभीत रही इसलिए उनके पुत्र पांडु आजीवन दुर्बलता से पीड़ित रहे. वेदव्यास के माध्यम से जन्म लेने वाले तीनो भाइयों में से विदुर श्रेष्ठ थे लेकिन माता के दासी होने की वजह से उन्हें राजा बनने का मौका नहीं मिला.
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विदुर की बुद्धिमता से भीष्म बहुत प्रभावित थे इसलिए उन्होंने पांडू के सिंहासन पर बैठने के बाद विदुर को हस्तिनापुर का प्रधानमंत्री बनवा दिया और धृतराष्ट्र के शासन काल तक वे लगातार वे प्रधानमंत्री बने रहे.
पूरे महाभारत में विदुर ही एक मात्र ऐसे व्यक्ति रहे जिन्होंने सदैव धर्म का साथ दिया और जिनका व्यवहार बेदाग रहा. उन्होंने ही पांडवों को लाक्षागृह में जलने से बचाया और उनकी ही सलाह पर राज्यों को खाण्डवप्रस्थ का राज्य मिला.
उन्होंने ही सबसे पहले जुआ खेलने का विरोध किया और कौरवो तथा पांडवों को समझाया कि इससे उनके राज्य का विनाश हो जाएगा. उन्होंने ही राज्य सभा में द्रौपदी वस्त्र हरण का विरोध किया.
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विदुर ने महाभारत के युद्ध में हिस्सा लेने से इंकार कर दिया क्योंकि वे अधर्म के साथ युद्ध नहीं करना चाहते थे और उन्होंने हस्तिनापुर को अपनी सेवाएं दी थी इसलिए वे पांडवों की तरफ से हस्तिनापुर के खिलाफ नहीं जा सकते थे इसलिए उन्होंने युद्ध से दूरी बनाए रखी.
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विदुर ने अपना आखिरी समय यमुना नदी के किनारे मैत्रेय ऋषि के आश्रम में बिताए. जब पांडवों ने हिमालय के प्रयाण किया तो विदुर ने भी अपना शरीर त्याग दिया.
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