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patriotic poems in hindi

desh bhakti kavita

देशभक्ति पर प्रसिद्ध कविओं की कविताएं

desh bhakti poems in hindi by rabindranath tagore
जन गण मन


जन गण मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
पंजाब, सिन्ध, गुजरात, मराठा
द्राविड़, उत्कल, बंग
विन्ध्य, हिमाचल, यमुना, गंगा
उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशिष मागे
गाहे तव जय गाथा
जन गण मंगल दायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे

अहरह तव आह्वान प्रचारित,
शुनि तव उदार वाणी
हिन्दु बौद्ध शिख जैन पारसिक
मुसलमान क्रिस्टानी
पूरब पश्चिम आसे
तव सिंहासन-पाशे
प्रेमहार हय गाथा।
जनगण-ऐक्य-विधायक जय हे
भारत भाग्य विधाता!
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे

पतन-अभ्युदय-वन्धुर-पंथा,
युगयुग धावित यात्री,
हे चिर-सारथी,
तव रथ चक्रेमुखरित पथ दिन-रात्रि
दारुण विप्लव-माझे
तव शंखध्वनि बाजे,
संकट-दुख-श्राता,
जन-गण-पथ-परिचायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे

घोर-तिमिर-घन-निविङ-निशीथ
पीङित मुर्च्छित-देशे
जाग्रत दिल तव अविचल मंगल
नत नत-नयने अनिमेष
दुस्वप्ने आतंके
रक्षा करिजे अंके
स्नेहमयी तुमि माता,
जन-गण-दुखत्रायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे

रात्रि प्रभातिल उदिल रविच्छवि
पूरब-उदय-गिरि-भाले,
साहे विहन्गम, पून्नो समीरण
नव-जीवन-रस ढाले,
तव करुणारुण-रागे
निद्रित भारत जागे
तव चरणे नत माथा,
जय जय जय हे, जय राजेश्वर,
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे

देशभक्ति कविता 2018


सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा 

— अल्लामा इक़बाल
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा

ग़ुर्बत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा

परबत वह सबसे ऊँचा, हम्साया आसमाँ का
वह संतरी हमारा, वह पासबाँ हमारा

गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियाँ
गुल्शन है जिनके दम से रश्क-ए-जनाँ हमारा

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वह दिन हैं याद तुझको?
उतरा तिरे किनारे जब कारवाँ हमारा

मज़्हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोसिताँ हमारा

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-व-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा

इक़्बाल! कोई महरम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा!

jan gan man lyrics and jan gan man in hindi



सैनिकों पर हिंदी में देशभक्ति कविता

अरुण यह मधुमय देश हमारा 

— जयशंकर प्रसाद

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।।
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा।।
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा।।
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा।।

देशभक्ति कविता बच्चों के लिए

पुष्प की अभिलाषा

— माखनलाल चतुर्वेदी

चाह नहीं, मैं सुरबाला के 
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!

भारत पर कविता

भारत महिमा
— जयशंकर प्रसाद
हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार 
उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक-हार 

जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक 
व्योम-तम पुँज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक 

विमल वाणी ने वीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत 
सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत 

बचाकर बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत 
अरुण-केतन लेकर निज हाथ, वरुण-पथ पर हम बढ़े अभीत 

सुना है वह दधीचि का त्याग, हमारी जातीयता विकास 
पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरा इतिहास 

सिंधु-सा विस्तृत और अथाह, एक निर्वासित का उत्साह 
दे रही अभी दिखाई भग्न, मग्न रत्नाकर में वह राह 

धर्म का ले लेकर जो नाम, हुआ करती बलि कर दी बंद 
हमीं ने दिया शांति-संदेश, सुखी होते देकर आनंद 

विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम 
भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम 

यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि 
मिला था स्वर्ण-भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि 

किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं 
हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं 

जातियों का उत्थान-पतन, आँधियाँ, झड़ी, प्रचंड समीर 
खड़े देखा, झेला हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर 

चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न 
हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न 

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव 
वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा मे रहती थी टेव 

वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान 
वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य-संतान 

जियें तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष 
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष

desh bhakti kavita in hindi for class 10

भारतमाता

— सुमित्रानंदन पंत

भारत माता
ग्रामवासिनी।
खेतों में फैला है श्यामल
धूल भरा मैला सा आँचल,
गंगा यमुना में आँसू जल,
मिट्टी कि प्रतिमा
उदासिनी।

दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन,
अधरों में चिर नीरव रोदन,
युग युग के तम से विषण्ण मन,
वह अपने घर में
प्रवासिनी।

तीस कोटि संतान नग्न तन,
अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्र जन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत मस्तक
तरु तल निवासिनी!

स्वर्ण शस्य पर -पदतल लुंठित,
धरती सा सहिष्णु मन कुंठित,
क्रन्दन कंपित अधर मौन स्मित,
राहु ग्रसित
शरदेन्दु हासिनी।

चिन्तित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित,
नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित,
आनन श्री छाया-शशि उपमित,
ज्ञान मूढ़
गीता प्रकाशिनी!

सफल आज उसका तप संयम,
पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम,
हरती जन मन भय, भव तम भ्रम,
जग जननी
जीवन विकासिनी।

desh bhakti kavita in hindi for class 4

भारती वन्दना

— सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

भारति, जय, विजय करे
कनक-शस्य-कमल धरे!

लंका पदतल-शतदल
गर्जितोर्मि सागर-जल
धोता शुचि चरण-युगल
स्तव कर बहु अर्थ भरे!

तरु-तण वन-लता-वसन
अंचल में खचित सुमन
गंगा ज्योतिर्जल-कण
धवल-धार हार लगे!

मुकुट शुभ्र हिम-तुषार
प्राण प्रणव ओंकार
ध्वनित दिशाएँ उदार
शतमुख-शतरव-मुखरे!

desh bhakti kavita in hindi for class 6


मेरा देश बड़ा गर्वीला

— गोपाल सिंह नेपाली

मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतु-रंग-रंगीली
नीले नभ में बादल काले, हरियाली में सरसों पीली

यमुना-तीर, घाट गंगा के, तीर्थ-तीर्थ में बाट छाँव की 
सदियों से चल रहे अनूठे, ठाठ गाँव के, हाट गाँव की 
                                    
शहरों को गोदी में लेकर, चली गाँव की डगर नुकीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतु-रंग-रंगीली

खडी-खड़ी फुलवारी फूले, हार पिरोए बैठ गुजरिया
बरसाए जलधार बदरिया, भीगे जग की हरी चदरिया

तृण पर शबनम, तरु पर जुगनू, नीड़ रचाए तीली-तीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतु-रंग-रंगीली

घास-फूस की खड़ी झोपड़ी, लाज सम्भाले जीवन-भर की
कुटिया में मिट्टी के दीपक, मंदिर में प्रतिमा पत्थर की

जहाँ वास कँकड़ में हरि का, वहाँ नहीं चाँदी चमकीली 
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतु-रंग-रंगीली 

जो कमला के चरण पखारे, होता है वह कमल-कीच में
तृण, तंदुल, ताम्बूल, ताम्र, तिल के दीपक बीच-बीच में

सीधी-सदी पूजा अपनी, भक्ति लजीली मूर्ति सजीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतुरंग-रंगीली 

बरस-बरस पर आती होली, रंगों का त्यौहार अनोखा 
चुनरी इधर-उधर पिचकारी, गाल-भाल पर कुमकुम फूटा

लाल-लाल बन जाए काले, गोरी सूरत पीली-नीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतुरंग-रंगीली

दिवाली -- दीपों का मेला, झिलमिल महल-कुटी-गलियारे
भारत-भर में उतने दीपक, जितने जलते नभ में तारे

सारी रात पटाखे छोडे, नटखट बालक उम्र हठीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतुरंग-रंगीली

खंडहर में इतिहास सुरक्षित, नगर-नगर में नई रौशनी
आए-गए हुए परदेशी, यहाँ अभी भी वही चाँदनी 

अपना बना हजम कर लेती, चाल यहाँ की ढीली-ढीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतुरंग-रंगीली

मन में राम, बाल में गीता, घर-घर आदर रामायण का
किसी वंश का कोई मानव, अंश साझते नारायण का

ऐसे हैं बहरत के वासी, गात गठीला, बाट चुटीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतुरंग-रंगीली

आन कठिन भारत की लेकिन, नर-नारी का सरल देश है
देश और भी हैं दुनिया में, पर गाँधी का यही देश है

जहाँ राम की जय जग बोला, बजी श्याम की वेणु सुरीली 
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतु-रंग-रंगीली

लो गंगा-यमुना-सरस्वती या लो मंदिर-मस्जिद-गिरजा
ब्रह्मा-विष्णु-महेश भजो या जीवन-मरण-मोक्ष की चर्चा

सबका यहीं त्रिवेणी-संगम, ज्ञान गहनतम, कला रसीली 
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतु-रंग-रंगीली


देश भक्ति बाल कविताछोटी देशभक्ति कविताएँसरफ़रोशी की तमन्ना  

— बिस्मिल अज़ीमाबादी

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है

करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है

ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है

खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है

patriotic poems in hindi by ramdhari singh dinkarभारत का यह रेशमी नगर

— रामधारी सिंह "दिनकर"
दिल्ली फूलों में बसी, ओस-कण से भीगी, दिल्ली सुहाग है, सुषमा है, रंगीनी है,
प्रेमिका-कंठ में पड़ी मालती की माला, दिल्ली सपनों की सेज मधुर रस-भीनी है।

बस, जिधर उठाओ दृष्टि, उधर रेशम केवल, रेशम पर से क्षण भर को आंख न हटती है,
सच कहा एक भाई ने, दिल्ली में तन पर रेशम से रुखड़ी चीज न कोई सटती है।

हो भी क्यों नहीं? कि दिल्ली के भीतर जाने, युग से कितनी सिदि्धयां समायी हैं।
औ` सबका पहुंचा काल तभी जब से उन की आंखें रेशम पर बहुत अधिक ललचायी हैं।

रेशम से कोमल तार, क्लांतियों के धागे, हैं बंधे उन्हीं से अंग यहां आजादी के,
दिल्ली वाले गा रहे बैठ निश्चिंत मगन रेशमी महल में गीत खुरदुरी खादी के।

वेतनभोगिनी, विलासमयी यह देवपुरी, ऊंघती कल्पनाओं से जिस का नाता है,
जिसको इसकी चिन्ता का भी अवकाश नहीं, खाते हैं जो वह अन्न कौन उपजाता है।

उद्यानों का यह नगर कहीं भी जा देखो, इसमें कुम्हार का चाक न कोई चलता है,
मजदूर मिलें पर, मिलता कहीं किसान नहीं, फूलते फूल, पर, मक्का कहीं न फलता है।

क्या ताना है मोहक वितान मायापुर का, बस, फूल-फूल, रेशम-रेशम फैलाया है,
लगता है, कोई स्वर्ग खमंडल से उड़कर, मदिरा में माता हुआ भूमि पर आया है।

ये, जो फूलों के चीरों में चमचमा रहीं, मधुमुखी इन्द्रजाया की सहचरियां होंगी,
ये, जो यौवन की धूम मचाये फिरती हैं, भूतल पर भटकी हुई इन्द्रपरियां होंगी।

उभरे गुलाब से घटकर कोई फूल नहीं, नीचे कोई सौंदर्य न कसी जवानी से,
दिल्ली की सुषमाओं का कौन बखान करे? कम नहीं कड़ी कोई भी स्वप्न कहानी से।

गंदगी, गरीबी, मैलेपन को दूर रखो, शुद्धोदन के पहरेवाले चिल्लाते हैं,
है कपिलवस्तु पर फूलों का शृंगार पड़ा, रथ-समारूढ़ सिद्धार्थ घूमने जाते हैं।

सिद्धार्थ देख रम्यता रोज ही फिर आते, मन में कुत्सा का भाव नहीं, पर, जगता है,
समझाये उनको कौन, नहीं भारत वैसा दिल्ली के दर्पण में जैसा वह लगता है।

भारत धूलों से भरा, आंसुओं से गीला, भारत अब भी व्याकुल विपत्ति के घेरे में।
दिल्ली में तो है खूब ज्योति की चहल-पहल, पर, भटक रहा है सारा देश अँधेरे में।

रेशमी कलम से भाग्य-लेख लिखनेवालों, तुम भी अभाव से कभी ग्रस्त हो रोये हो?
बीमार किसी बच्चे की दवा जुटाने में, तुम भी क्या घर भर पेट बांधकर सोये हो?

असहाय किसानों की किस्मत को खेतों में, कया जल मे बह जाते देखा है?
क्या खाएंगे? यह सोच निराशा से पागल, बेचारों को नीरव रह जाते देखा है?

देखा है ग्रामों की अनेक रम्भाओं को, जिन की आभा पर धूल अभी तक छायी है?
रेशमी देह पर जिन अभागिनों की अब तक रेशम क्या? साड़ी सही नहीं चढ़ पायी है।

पर तुम नगरों के लाल, अमीरों के पुतले, क्यों व्यथा भाग्यहीनों की मन में लाओगे?
जलता हो सारा देश, किन्तु, होकर अधीर तुम दौड़-दौड़कर क्यों यह आग बुझाओगे?

चिन्ता हो भी क्यों तुम्हें, गांव के जलने से, दिल्ली में तो रोटियां नहीं कम होती हैं।
धुलता न अश्रु-बुंदों से आंखों से काजल, गालों पर की धूलियां नहीं नम होती हैं।

जलते हैं तो ये गांव देश के जला करें, आराम नयी दिल्ली अपना कब छोड़ेगी?
या रक्खेगी मरघट में भी रेशमी महल, या आंधी की खाकर चपेट सब छोड़ेगी।

चल रहे ग्राम-कुंजों में पछिया के झकोर, दिल्ली, लेकिन, ले रही लहर पुरवाई में।
है विकल देश सारा अभाव के तापों से, दिल्ली सुख से सोयी है नरम रजाई में।

क्या कुटिल व्यंग्य! दीनता वेदना से अधीर, आशा से जिनका नाम रात-दिन जपती है,
दिल्ली के वे देवता रोज कहते जाते, `कुछ और धरो धीरज, किस्मत अब छपती है।´

किस्मतें रोज छप रहीं, मगर जलधार कहां? प्यासी हरियाली सूख रही है खेतों में,
निर्धन का धन पी रहे लोभ के प्रेत छिपे, पानी विलीन होता जाता है रेतों में।

हिल रहा देश कुत्सा के जिन आघातों से, वे नाद तुम्हें ही नहीं सुनाई पड़ते हैं?
निर्माणों के प्रहरियों! तुम्हें ही चोरों के काले चेहरे क्या नहीं दिखाई पड़ते हैं?

तो होश करो, दिल्ली के देवो, होश करो, सब दिन तो यह मोहिनी न चलनेवाली है,
होती जाती है गर्म दिशाओं की सांसें, मिट्टी फिर कोई आग उगलनेवाली है।

हों रहीं खड़ी सेनाएं फिर काली-काली मेंघों-से उभरे हुए नये गजराजों की,
फिर नये गरुड़ उड़ने को पांखें तोल रहे, फिर झपट झेलनी होगी नूतन बाजों की।

वृद्धता भले बंध रहे रेशमी धागों से, साबित इनको, पर, नहीं जवानी छोड़ेगी,
सिके आगे झुक गये सिद्धियों के स्वामी, उस जादू को कुछ नयी आंधियां तोड़ेंगी।

ऐसा टूटेगा मोह, एक दिन के भीतर, इस राग-रंग की पूरी बर्बादी होगी,
जब तक न देश के घर-घर में रेशम होगा, तब तक दिल्ली के भी तन पर खादी होगी।

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