विक्रम और बेताल की बेताल पच्चीसी— आरंभिक कथा
Vikram Betal Story- विक्रम और बेताल की कहानियां बहुत मशहूर है. दरअसल विक्रम और बेताल की कथाएं बेताल पच्चीसी नाम की एक पुस्तक का हिस्सा है, जिसमें कुल 25 कहानियां को संग्रहित किया गया है.
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मूल रूप से बेताल पच्चीसी प्रख्यात संस्कृत ग्रंथ कथा सरित सागर का हिस्सा है. इस कथा में प्रतापी राजा विक्रमादित्य बेताल को एक योगी के पास पंहुचाने के लिए उसे हमेशा अपने कंधों पर उठाते हैं. बेताल राजा के सामने एक शर्त रखता है कि उसे पूरे रास्ते कुछ नहीं बोलना होगा और अगर वह बोला तो एक बार फिर वह लौटकर उसी पेड़ पर चला जाएगा, जहां से राजा उसे उतार कर लाया है.
विक्रम और बेताल की प्रारंभिक कथा
प्राचीन काल में धारा नाम की एक नगरी थी. गंधर्व सेन नाम का राजा वहां राज किया करता था. गंधर्व सेन की चार रानियां थी, जिनसे उसे छह प्रतापी बेटे प्राप्त हुए. लंबे समय तक शासन करने के बाद राजा गंधर्वसेन की मृत्यु हो गई तो उसका सबसे बड़ा पुत्र शंख धारा का शासक बना. धारा की प्रजा शंख की जगह कहीं अधिक प्रतापी छोटे भाई विक्रमादित्य को राजा के स्वरूप में देखना चाहती थी.
राज्य के लिए शंख और विक्रम के बीच युद्ध हुआ. शंख पराजित हुआ और मारा गया. राजा बनने के बाद विक्रमादित्य के हृदय में साम्राज्य विस्तार की लालसा पैदा हुई. दुनिया जीतने के विक्रमादित्य निकल पड़े और राजकार्य संभालने के लिए अपने छोटे भाई भर्तृहरि को राजा बना दिया.
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इसी बीच धारा में एक ब्राह्मण को अपनी तपस्या के परिणामस्वरूप एक ऐसे फल की प्राप्ति हुई जिसे खाने वाला व्यक्ति अमर हो जाएगा. यह फल ब्राह्मण ने ले जाकर अपनी पत्नी को दिया. पत्नी ने समझाया कि वे गरीब और गरीब व्यक्ति अमर होकर क्या करेगा. आप इसे ले जाकर राजा को दे दें और बदले में कुछ धन ले आए.
ब्राह्मण वह फल लेकर राजा भर्तृहरि के पास पहुंचा और उन्हें अमरता वाला फल दिया. राजा ने प्रसन्न होकर ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देकर विदा किया. राजा भर्तृहरि अपनी रानी से बहुत प्रेम किया करते थे. उन्होंने स्वयं अमर होने के बजाय अपनी रानी को यह फल दे दिया. रानी दरअसल धोखेबाज थी और वह शहर के कोतवाल से प्रेम करती थी इसलिए उसने यह फल शहर कोतवाल को दे दिया.
शहर कोतवाल उस शहर की वेश्या को प्रेम को करता था तो उसने वह फल ले जाकर वेश्या को दे दिया. वेश्या ने सोचा कि वह स्वयं इतना घृणित जीवन जी रही है, उसे अमर होकर क्या करना है. यह फल तो इस देश के राजा धर्मात्मा भर्तृहरि के पास होना चाहिए. वेश्या ने वह फल राजा के पास भिजवा दिया.
राजा को जब फल मिला तो उसने रानी से सारा सच कहने को कहा. रानी के प्रेम में दिए गए धोखे से राजा भर्तृहरि का दुनिया से मोहभंग हो गया. राजा ने राजपाठ छोड़कर सन्यास ग्रहण कर लिया. विक्रम को जब अपने भाई के महात्मा बनने की खबर मिली तो वह लौटकर धारा नगरी आया. इस बीच इन्द्र ने धारा की रक्षा के लिए अपने एक देव को वहां नियुक्त कर दिया.
विक्रम जब धारा नगरी के द्वार पर पहुंचा तो क्या देखता है कि एक देव नगरी के द्वार पर पहरा दे रहा है. विक्रम जब अंदर जाने लगा तो उसने रास्ता रोक लिया. दोनो के बीच भीषण युद्ध हुआ लेकिन विक्रमादित्य ने अपने पराक्रम से देव को हरा दिया. हारने के बाद देव ने अपना परिचय दिया और कहा कि वह स्वर्ग में रहने वाला देवता है और विक्रमादित्य से प्रसन्न है. इस प्रसन्नता कि वजह से वह विक्रमादित्य की प्राण रक्षा के लिए एक गुप्त बात बताने जा रहा है.
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देव ने बताया कि पिछले जन्म में एक योगी के श्राप के वजह से उसके सहित तीन भाइयों ने इस जन्म में एक ही नक्षत्र में जन्म लिया है. विक्रमादित्य ने राजा के घर, उसके दूसरे भाई ने तेली के घर और तीसरे भाई ने कुम्हार के घर में जन्म लिया है.
शर्त यह है कि तीनों मंे से जो आखिर तक जीवित रहेगा वह विश्वविजयी होगा. उसके तेली भाई ने कुम्हार भाई की हत्या कर दी है और उसे पिशाच बनाकर श्मशान में एक सिरस के पेड़ पर लटका दिया है और अब वह तुम्हारी हत्या करने वाला है, इससे बचकर रहना, यह कहकर देव अंर्तध्यान हो गए.
विक्रमादित्य ने देव की बात याद रखी. इसी बीच एक योगी एक दिन राजा के पास आया और उन्हें एक फल दिया. राजा को देव की बात याद थी इसलिए उन्हांेने वह फल ग्रहण नहीं किया और उसे अपने एक सेवक को रखने के लिए दे दिया. योगी अगले दिन फिर आया और राजा को एक बार फिर से फल दिया. राजा ने फिर फल नहीं खाया और अपने सेवक को दे दिया. ऐसा करते हुए कई दिन बीत गये लेकिन योगी ने फल देना बंद नहीं किया. राजा ने भी फल ग्रहण नहीं किया.
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एक दिन राजा अस्तबल में था और अपने अश्वों का निरीक्षण कर रहा था तभी योगी वहां आया और राजा को फल दिया. राजा को क्रोध आ गया और उसने वह फल फेंक दिया. उस फल को एक बंदर ने उठा लिया और खाने के लिए उसे तोड़ा तो उसमें से एक चमत्कारी पत्थर निकला जिसके प्रकाश से सबकी आंखें बंद हो गई. राजा ने जौहरियों को बुलाकर पत्थर दिखाया तो उन्होंने बताया कि यह लाल है और इस पत्थर की कीमत एक राज्य के बराबर है. राजा ने अपने सेवक को बुलाकर सभी फलों को तुड़वाया तो उन सभी में से कीमती लाल निकला.
योगी जब अगले दिन राजा विक्रमादित्य को फल देने आया तो राजा ने इसका कारण पूछा. योगी ने बताया कि वह तंत्र सिद्ध कर रहा है और वह चाहता है कि राजा उसके लिए श्मशान में सिरस के पेड़ पर लटक रहे पिशाच को उसके पास लेकर आए ताकि वह अपनी तंत्र साधना पूरी कर सके. राजा विक्रमादित्य उस योगी को वचन देता है कि वह पिशाच को उसके पास लेकर आएगा.
रात को जब सब जगह घना अंधकार व्याप जाता है तो राजा उस भूतों और डाकिनियों से भरे श्मशान में पहुंचता है. चारों तरफ आत्माएं विचर रही होती हैं और दृश्य बहुत ही भयानक होता है लेकिन विक्रम तो प्रतापी थे, उन्हें तनीक भी भय नहीं लगता. विक्रम सिरस के उस पेड़ पर के पास पहुंचते हैं तो क्या देखते हैं कि सन जैसे सफेद बालों को लटकाए एक पेड़ से उल्टा लटका हुआ है.
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विक्रम उस पेड़ पर चढ़ कर पिशाच का उतार कर अपने कंधे पर बिठा लेते हैं. पिशाच जोर से हंसता है और राजा से कहता है कि हे राजन! मेरा नाम बेताल है और मैं आपके साथ उस तांत्रिक के पास चलूंगा लेकिन मेरी भी एक शर्त है कि आपको पूरे रास्ते अपने मुख से कोई शब्द नहीं निकालना है, अन्यथा मैं वापस इसी पेड़ पर लौट आउंगा.
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विक्रम बेताल की शर्त स्वीकार कर लेते हैं और उसे लेकर चलने लगते हैं तो बेताल कहता है कि राजन क्यों न रास्ता काटने के लिए एक सुंदर कथा आपको सुनाउं और कथा के अंत में मैं आपसे एक प्रश्न करूंगा अगर आपने उसका गलत उत्तर दिया तो आपका सिर फट जाएगा. बेताल कथा प्रारंभ करता है.
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