अमर प्रेम कहानियां— साहिबा-मिर्जा की अमर प्रेम कहानी
Sahiba-Mirza साहिबा—मिर्जा की प्रेम कहानी दुनिया की अमर प्रेम कथाओं में से एक है. साहिबा जमींदार खेवा खां की बेटी, जिसके नाम पर खेवा गांव बसा हुआ था. मिर्जा फतेह बीबी का लड़का जिसके घर में फांकाकशी का दौर था. फतेह बीबी ने अपने बेटे मिर्जा को जहीन बनाने के लिए साहिबा के गांव पढ़ने के लिए भेजा.
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इसी गांव में मिर्जा को साहिबा का साथ मिला. साथ पढ़ते हुए दोनों बड़े हुए. मिर्जा और साहिबा दोनों के भीतर प्रेम का अंकुर अभी फूटा नहीं था. साथ—साथ थे लेकिन अभी दोनों ने एक दूसरे को पहचाना नहीं था. इसी तरह बचपन रूखसत हुआ और जवानी आई. साहिबा के हुस्न के चर्चे हर खासो आम के जुबान पर था. तो मिर्जा भी खासा गबरू था. गांव की लड़किया उसे देख आहें भरती.
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मिर्जा अपनी तीरंदाजी के लिए मशहूर हुआ. लोग कहते हैं कि मिर्जा का तीर कभी नहीं चूकता. लेकिन इस तीरंदाज को एक दिन सब्जी खरीदती साहिबा के आंखों के तीर ने घायल कर दिया. ऐसा घायल किया कि उसे करार न आया. एक दिन मिर्जा ने साहिबा को अपने दिल की बात बताई. साहिबा उसे पहले से मोहब्बत करती थी.
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दोनो जवां दिल एक दूसरे के प्यार में डूब गए. ऐसे डूबे की पार हो गए. प्रेम का दरिया अलबेला, जो डूबा सो पार. दोनों छुप—छुप कर मिलने लगे. जमाने को पता चला तो दुश्मन हो गया. बाप—भाईयों को पता चला तो उन्होंने मिर्जा को गांव से निकाल दिया. अपनी आन के लिए साहिबा की शादी ताहिर खान के साथ तय कर दी.
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साहिबा को पता चला तो वह बिखर गई. अपने मिर्जा के साथ के अलावा उसको कुछ भी गंवारा न था. उसने मिर्जा को खबर भिजवाई. मिर्जा को जब पता चला तो वह साहिबा के गांव पहुंच गया और अपनी प्रेमिका को भगा ले गया. घोड़े पर मिर्जा और साहिबा तब तक भागते रहे, जब तक थक कर चूर न हो गए.
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उधर घर पर जब यह पता लगा तो घर वाले लाव—लश्कर लेकर निकल पड़े. मिर्जा ने अपना घोड़ा बांधा और तीर—कमान संभाली. साहिबा से कहा कि मत घबरा दुनिया में ऐसी कोई छाती नहीं बनी जिसे मिर्जा का तीर न भेद पाए. ऐसा कह कर मिर्जा सो गया. साहिबा को नींद नहीं, उसे अपने भाइयों के तीर से छलनी छाती दिखाई देने लगी.
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साहिबा ने मिर्जा का तरकश उठाया और सारे तीर तोड़ दिए. कुछ देर में भाई आए तो मिर्जा देखता है कि उसका तरकश खाली है. तभी एक तीर उसकी गरदन में आ धंसा.
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उसकी आंखे साहिबा से पूछने लगी कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया. तभी दूसरे तीर ने उसकी छाती में धड़क रहे दिल को बेध दिया. साहिबा ने उसी तीर को अपने सीने में घुसा लिया और दोनों प्रेमी एक साथ इस दुनिया को छोड़ गए.
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कहते हैं उसके बाद उस धरती में कोई प्रेम का बीज नहीं पनपा, सब लोग प्रेम से खाली हो गए लेकिन मिर्जा साहिबा की कहानी इस तरह अमर हो गई कि लोगों ने कहावत बना ली. मन मिर्जा तन साहिबा.
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