Motivational Story on Common Sense in Hindi |
Motivational Story on Common Sense in Hindi- Sense is a Great Friend
प्रेरक कथा: विवेक पर प्रेरक कथा
प्रेरक कथा बहुत पुराने समय की है. तुलसीदास जी की रामकथा का बड़ा चलन था. कथा बांचने वाले लोगों की बड़ी कमी थी इसलिए जो थोड़े से लोग थे, उनके पास बहुत भीड़ जुटती. इन पंडित जी के पास भीड़ इसलिए भी जुटती क्योंकि वे श्रोताओं को अवसर देते कि अगर कुछ समझ में न आया तो पूछ लो, शंका समाधान कर लो.
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कथा उनके लिए सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं थी बल्कि ज्ञान का स्रोत भी थी. एक दिन कथावाचक पंडित जी ने ‘रामचरित्र मानस‘ पर महीने भर तक प्रवचन किये. समापन-समारोह के दिन अन्तिम प्रवचन के बाद नियमानुसार कुछ समय शंका-समाधान के लिए दिया गया, क्योंकि ज्ञानियों के साथ चर्चा करने से तत्त्वबोध होता है.
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विभिन्न शंकाओं के समाधान किये भी गये, परन्तु एक नियमित श्रोता ने प्रवचनों की खूब प्रशंसा करते हुए एक प्रश्न प्रस्तुत किया- ‘पंडितजी ! मुझे एक बात समझ नहीं आई। कृपया समझाने का कष्ट करें कि रामायण के पात्रों में राक्षस कौन था-राम या रावण?‘
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प्रश्न सुनते ही पंडितजी ने अपना माथा ठोकते हुए कहा- ‘अरे भाई! राक्षस न तो राम थे और न रावण ही था. असली राक्षस तो मैं स्वयं ही हूं, जिसे प्रवचन करते समय यह विवेक नहीं रहता कि श्रोताओं का स्तर कैसा है. पंडित जी को समझ में आ गया था कि अविवेक ही हमारा दुश्मन है।
Moral of The Story शिक्षा: अविवेक से बढ़कर प्राणियों में कोई दूसरा शत्रु नहीं है।
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