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motivational hindi story-Value of Time

Motivational Story on Time in Hindi-समय का पता नहीं...

बहुत पुरानी बात है. एक शहर में एक अमीर सेठ रहा करते थे. ईश्वर में उनकी आस्था बहुत गहरी थी. व्यापार भी वे बहुत ईमानदारी से किया करते थे. राजा से ज्यादा सम्मान सेठजी का हुआ करता था. लोग कहते थे कि व्यापारी के रूप में किसी संत ने ही जन्म लिया है. 

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सेठजी बडे़ सत्संग-प्रेमी थे. उनका परिवार भी उनके प्रभाव में सत्संग और भक्ति में लीन रहता था. पूरे परिवार में धार्मिक ज्ञान-चर्चा का रस लिया-दिया जाता रहता था. इस ज्ञान चर्चा में सेठ जी के परिवार के साथ ही उनके नौकर और दासी भी हिस्सा लेते थे और उन्हें भी प्रश्न करने और उत्तर जानने का पूरा अधिकार दिया गया था.

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यह सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा और एक दिन ऐसा समय आया कि जब परिवार के सभी सदस्य परमज्ञान को प्राप्त हो गए और सेठ जी का पूरा परिवार ही संत हो गया. वे प्रश्नों के गुढ़ उत्तर देने लग गए और उनकी ख्याती दूर—दूर तक फैल गई. 

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एक दिन सेठजी ने कहा-‘मेरा जीवन सात दिन का हैं मैं जैसा चाहिये वैसा परोपकार नहीं कर सका. अब शीघ्र कर लेना चाहता हूं. जहां सामान्य परिवारजन इस बात को सुनकर दुख का इजहार करते वहीं सेठानी बोली- ‘सात दिन की क्या बात? रात को जो मनुष्य सोता है, वह प्रातःकालीन सूर्य देखेगा भी या नहीं? यह नहीं कहा जा सकता. 

इस पर सेठ जी की कन्या बोली- जिस प्रकार पिताजी नहीं समझते, माताजी भी नहीं समझतीं, दो घड़ी बाद ही क्या होगा? मैं नहीं जानती. इस पर एक दासी भला क्यों चुप रहतीं? बोली- न तो पिता और माता समझते हैं और न कन्या ही कुछ समझती है. जो श्वास बाहर निकल गई, सो निकल गई. वह लौटेगी भी या नहीं अर्थात् सांस छोड़ने के बाद सांस ली भी जा सकेगी या नहीं? सो नहीं कहा जा सकता. अतः सेठजी को जो भी परोपकार करना हो, तत्काल प्रारम्भ कर देना चाहिये.

सेठ जी को दासी का बात सुनते ही ज्ञान प्राप्त हो गया और वे व्यापार छोड़कर परोपकार के मार्ग पर चल निकले. 

Moral of the Story शिक्षाः शिक्षा: सत्संग का लाभ किसी से भी मिले, ले लेना चाहिए, अच्छी बात किसी पद या प्रतिष्ठा का गुलाम नहीं है. वह किसी के माध्यम से प्राप्त हो सकता है.
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