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ओशो के प्रवचन— कैसे करें ध्यान?
Osho पुतलियों को घुमाएं बिना एकटक घूरते रहो. मेहर बाबा की विधि थी. वर्षो वे अपने कमरे की छत को घूरते रहे, निरंतर ताकते रहे. वर्षो वह जमीन पर मृतवत पड़े रहे और पुतलियों को, आंखों को हिलाए बिना छत को एक टक देखते रहे. ऐसा वे लगातार घंटो बिना कुछ किए घूरते रहते थे. टकटकी लगाकर देखते रहते थे.
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आंखों से घूरना अच्छा है. क्योंकि उससे तुम फिर तीसरी आँख मैं स्थित हो जाते हो. और एक बार तुम तीसरी आँख में थिर हो गए तो चाहने पर भी तुम पुतलियों को नहीं घूमा सकते हो. वे भी थिर हो जाती है—अचल.
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मेहर बाबा इसी घूरने के जरिए उपलब्ध हो गए. और तुम कहते हो कि इन छोटे-छोटे अभ्यासों से क्या होगा. लेकिन मेहर बाबा लगातार तीन वर्षों तक बिना कुछ किए छत को घूरते रहे थे.
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तुम सिर्फ तीन मिनट के लिए ऐसी टकटकी लगाओ और तुमको लगेगा कि तीन वर्ष गुजर गये. तीन मिनट भी बहुत लंबा समय मालूम होगा. तुम्हें लगेगा की समय ठहर गया है. और घड़ी बंद हो गई है. लेकिन मेहर बाबा घूरते रहे, घूरते रह, धीरे-धीरे विचार मिट गए.
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और गति बंद हो गई. मेहर बाबा मात्र चेतना रह गए. वे मात्र घूरना बन गए. टकटकी बन गए. और तब वे आजीवन मौन रह गए. टकटकी के द्वारा वे अपने भीतर इतने शांत हो गए कि उनके लिए फिर शब्द रचना असंभव हो गई.
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मेहर बाबा अमेरिका में थे. वहां एक आदमी था जो दूसरों के विचार को, मन को पढ़ना जानता था. और वास्तव में वह आदमी दुर्लभ था—मन के पाठक के रूप में. वह तुम्हारे सामने बैठता, आँख बंद कर लेता और कुछ ही क्षणों में वह तुम्हारे साथ ऐसा लयवद्ध हो जाता कि तुम जो भी मन में सोचते, वह उसे लिख डालता था. हजारों बार उसकी परीक्षा ली गई.
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और वह सदा सही साबित हुआ. तो कोई उसे मेहर बाबा के पास ले गया. वह बैठा और विफल रहा. और यह उसकी जिंदगी की पहली विफलता थी. और एक ही. और फिर हम यह भी कैसे कहें कि यह उसकी विफलता हुई.
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वह आदमी घूरता रहा, घूरता रहा, और तब उसे पसीना आने लगा. लेकिन एक शब्द उसके हाथ नहीं लगा. हाथ में कलम लिए बैठा रहा और फिर बोला—किसी किस्म का आदमी है. यह, मैं नहीं पढ़ पाता हूं, क्योंकि पढ़ने के लिए कुछ है ही नहीं.
यह आदमी तो बिलकुल खाली है. मुझे यह भी याद नहीं रहता की यहां कोई बैठा है. आँख बंद करने के बाद मुझे बार-बार आँख खोल कर देखना पड़ता है कि यह व्यक्ति यहां है कि नहीं. या यहां से हट गया है. मेरे लिए एकाग्र होना भी कठिन हो गया है.
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क्योंकि ज्यों ही मैं आँख बंद करता हूं कि मुझे लगता है कि धोखा दिया जा रहा है. वह व्यक्ति यहां से हट जाता है. मेरे सामने कोई भी नहीं है. और जब मैं आँख खोलता हूं तो उसको सामने ही पाता हूं. वह तो कुछ भी नहीं सोच रहा है.
उस टकटकी ने, सतत टकटकी ने मेहर बाबा के मन को पूरी तरह विसर्जित कर दिया था. अगर तुम कुछ मिनटों के लिए भी ठहर गए तो पाओगे कि सब कुछ बदल गया. लेकिन हम हिलने लगते है. यदि मन में कोई आवेग उठता है तो शरीर हिलने लगता है.
उदासी आती है, तो भी शरीर हिलता है. इसे आवेग इसीलिए कहते है कि यह शरीर में वेग पैदा करता है. मृतवत महसूस करो—और आवेगों को शरीर हिलाने इजाजत मत दो. वे भी वहां रहे और तुम भी वहां रहो. स्थिर, मृतवत. कुछ भी हो, पर हलचल नहीं हो, गति नहीं हो. बस ठहरे रहो. यह ठहरना बहुत सुंदर है.
तंत्र-सूत्र.ओशो
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सतगुरु के चरणों में कोटि-कोटि नमन आप जैसा सद्गुरु आपसे ना तो पहले था न कोई होगा अफसोस ही रह गया कि हम दर्शन नहीं कर पाए आपके लेकिन आप सपनों में जरूर दर्शन दिए हैं मैं आपका पूर्व शिष्य बनना चाहता हूं
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