Osho Stories in Hindi |
Motivational Stories of Osho- ओशो की प्रेरक कहानियां
Osho-बर्नार्ड शा के पिता की मृत्यु हुई तो बर्नार्ड शा ने अपने मित्रों को कहा कि आज मैं बहुत डरा—डरा हुआ हो गया हूं. तब तो उसकी उम्र भी साठ के पार हो चुकी थी. उन्होंने कहा. 'डरे—डरे हो गये, मतलब क्या?'
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उन्होंने कहा ' आज पिता साथ नहीं, यद्यपि वर्षों से हम साथ न थे, पिता अपने गांव पर थे, मैं यहां था. लेकिन फिर भी पिता थे तो मैं बच्चा था, एक भरोसा था कि कोई आगे है. आज पिता चल बसे, आज मैं अकेला रह गया.
आज डर लगता है. आज कुछ भी करूंगा तो मेरा ही जुम्मा है. आज कुछ भी करूंगा तो भूल—चूक मेरी है. आज कोई डांटने—डपटने वाला न रहा. आज कोई चिंता करने वाला न रहा. आज बिलकुल अकेला हो गया हूं.’
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नास्तिक अशांत हो जाता है, क्योंकि कोई परमात्मा नहीं! तुम नास्तिक की पीड़ा समझो, उसकी तपश्चर्या बड़ी है! वह नरक भोग लेता है. क्योंकि कोई नहीं है, खुद ही को सब सम्हालना है.
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और इतना विराट सब जाल है और इस विराट जाल में अकेला पड जाता है. और सब तरफ संघर्ष ही संघर्ष है, कांटे ही कांटे हैं, उलझनें ही उलझनें हैं और कुछ सुलझाये नहीं सुलझता. बात इतनी बड़ी है, हमारे सुलझाये सुलझेगा भी कैसे!
आस्तिक परम सौभाग्यशाली है. वह कहता है तुम बनाये, तुम जानो, तुम चलाओ. तुमने मुझे बनाया, तुम्हीं मुझे उठा लोगे एक दिन. तुम्हीं मेरी सांसों में, तुम्हीं मेरी धड़कन में. मैं क्यों चिंता करूं?
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और तुम जरा गौर करो, तुम आंख झपते हो? यह तुम्हारा कृत्य है? आंख अपने से झपक रही है. अगर तुम्हें झपकनी और खोलनी पड़े, बुरी तरह थक जाओ, दिन भर में थक जाओ, करोड़ों बार झपकती है. यह तो अपने से हो रहा है.
Osho quotes in Hindi about life
एक मक्खी आंख की तरफ भागी आती है तो तुम झपते थोड़े ही हो, झपक जाती है. क्योंकि अगर तुम झेपो तो देर लग जाये, उतनी देर में तो मक्खी टकरा जाये. इसको तो वैज्ञानिक कहता है. रिफ्लैक्स है. यह अपने से हो रहा है. वैज्ञानिक इसको रिफ्लैक्स कहता है.
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यह अपने से हो रहा है. यह तुम कर नहीं रहे हो. धार्मिक इसको कहता है प्रभु कर रहा है. श्वास तुम थोड़े ही ले रहे हो, चल रही है. इसलिए तो तुम सो जाते हो, तब भी चलती रहती है, नहीं तो किसी दिन भूल गये नींद में तो बस.. सुबह फिर न उठे. यह तुम पर छोड़ा ही नहीं है. तुम बेहोश भी पड़े रहो तो भी श्वास चलती रहती है, प्रभु लेता रहता है.
जीवन का जो भी महत्वपूर्ण है, तुम पर कहां छोड़ा है! जन्म तुमसे पूछा था कि लेना चाहते हो? जवानी तुमसे पूछी थी कि अब जवान होने की इच्छा है या नहीं न: जन्म हुआ, बचपन हुआ, जवानी आई, हजार—हजार वासनाएं उठीं—तुमसे किसी ने पूछा नहीं कि चाहते भी हो कि नहीं? सब हुआ.
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बुढ़ापा आ गया, मौत आने लगी, मौत भी आ जायेगी. सब हो रहा है. इस होने में काश तुम अपने को बीच में न डालो तो कैसी अपूर्व शांति न फल जाये! इस होने में तुम कर्ता बनते हो, इससे अशांत हो जाते हो. तुम जितना ही सोचते हो, मुझे करना है, उतनी उलझन बढ़ती है, क्योंकि करने को इतना है!
अब तुम जरा सोचो, तुम भोजन कर लेते हो, फिर अगर तुम्हें पचाना भी हो.. गले के नीचे उतरा कि तुम भूले. और जिसको नहीं भूलता उसका पेट खराब हो जाता है. तुम एक दिन प्रयोग करके देखो, चौबीस घंटे कोशिश करो.
भोजन कर लिया, अब याद रखो कि पच रहा है कि नहीं, पक्वाशय में पहुंचा कि आमाशय में पहुंचा कि कहां गया, क्या हो रहा है भीतर! जरा खयाल रखो, पगला जाओगे और पेट खराब हो जायेगा अलग. दूसरे दिन तुम पाओगे गड़बड़ी हो गई, डायरिया हो गया कि कब्जियत हो गई, कि पेट में दर्द उठ आया.
तुम तो जान कर हैरान होओगे कि जब आदमी मर जाता है, तब भी पेट पचाने का काम चौबीस घंटे तक करता रहता है. चौबीस घंटे का मौका मान कर चलता है कि शायद लौट आये, क्या पता! चौबीस घंटा पेट का काम जारी रहता है.
सांस बंद हो जाती है. मस्तिष्क तो चार मिनिट के बाद समाप्त हो जाता है. इधर श्वास बंद हुई उधर मस्तिष्क चार मिनिट के भीतर समाप्त हो गया. फिर उसको लौटाया नहीं जा सकता.
इसलिए जो लोग अचानक हृदय के धक्के से मरते हैं, अगर चार मिनिट के भीतर जिला लिए जायें तो ही जिलाये जा सकते हैं, अन्यथा गये तो गये. क्योंकि फिर तब तक चार मिनिट के बाद मस्तिष्क की स्मृति डावांडोल हो गई; मस्तिष्क के तंतु बहुत छोटे हैं, वे टूट गये. मस्तिष्क बहुत कमजोर है.
लेकिन पेट की बड़ी हिम्मत है. चौबीस घंटे बाद भी पेट अपना काम जारी रखता है, पचाता रहता है, रस पहुंचाता रहता है, कि क्या पता! तुम रात सो जाते हो, तब भी पेट पचाता रहता है.
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कोमा में पड़े हुए आदमी महीनों पड़े रहते बेहोशी में, तब भी पेट पचाता रहता है. मर जाने पर भी चौबीस घंटे तक पचाता है. तुम पर नहीं छोड़ा है. कोई विराट हाथ सब सम्हाले हुए है.
तुम जरा देखो, इन हाथों को जरा पहचानो! कोई विराट हाथ तुम्हारे पीछे खड़े हैं! तुम नाहक परेशान हुए जा रहे हो. तुम्हारी हालत वैसी है जैसे कि एक छोटा बच्चा अपने बाप के साथ जा रहा है और परेशान हो रहा है. उसे परेशान होने की कोई जरूरत ही नहीं. बाप साथ है, परेशानी का कोई कारण नहीं.
अष्टावक्र: महागीता ओशो
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great spiritual master i have no words to say about osho because love doesnt need any words or any language.
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