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Osho Quotes on Love

Osho Quotes on Love-ओशो का प्रेम पर उपदेश

Osho-वास्‍तवमें, हर चीज हर दूसरी चीज के प्रेम में होती है. जब तुम पहुंचते हो शिखर पर, तुम देख पाओगे कि हर चीज हर दूसरी चीज को प्रेम करती है. जब कि तुम प्रेम की तरह की भी कोई चीज नहीं देख पाते. जब तुम धृणा अनुभव करते हो-धृणा का अर्थ ही इतना होता है कि प्रेम गलत पड़ गया है. और कुछ नहीं...

Osho in hindi speech

जब तुम उदासीनता अनुभव करते हो, इसका केवल यही अर्थ होता है कि प्रेम प्रस्‍फुटित होने के लिए पर्याप्‍त रूप से साहसी नहीं रहा है. जब तुम्‍हें किसी बंद व्‍यक्‍ति का अनुभव होता है,उसका केवल इतना अर्थ होता है कि वह बहुत ज्‍यादा भय अनुभव करता है. बहुत ज्‍यादा असुरक्षा-वह पहला कदम नहीं उठा पाया. लेकिन प्रत्‍येक चीज प्रेम है...

Osho quotes in Hindi about life

सारा अस्‍तित्‍व प्रेममय है. वृक्ष प्रेम करते है पृथ्‍वी को. वरना कैसे वे साथ-साथ अस्‍तित्‍व रख सकते थे. कौन सी चीज उन्‍हें साथ-साथ पकड़े हुए होगी? कोई तो एक जुड़ाव होना चाहिए. 

Osho thoughts in hindi about love

केवल जड़ों की ही बात नहीं है, क्‍योंकि यदि पृथ्‍वी वृक्ष के साथ गहरे प्रेम में न पड़ी हो तो जड़ें भी मदद न देंगी. एक गहन अदृष्‍य प्रेम अस्‍तित्‍व रखता है. संपूर्ण अस्‍तित्‍व, संपूर्ण ब्रह्मांड घूमता है प्रेम के चारों और. प्रेम ऋतम्‍भरा है. इस लिए कल कहा था मैंने सत्‍य और प्रेम का जोड़ है ऋतम्भरा. अकेला सत्‍य बहुत रूखा-रूखा होता है...

Osho on buddha in hindi

केवल एक प्रेमपूर्ण आलिंगन में पहली बार देह एक आकार लेती है. प्रेमी का तुम्‍हें तुम्‍हारी देह का आकार देती है. वह तुम्‍हें एक रूप देती है. वह तुम्‍हें एक आकार देती है. वह चारों और तुम्‍हें घेरे रहती है. तुम्‍हें तुम्‍हारी देह की पहचान देती है. प्रेमिका के बगैर तुम नहीं जानते तुम्‍हारा शरीर किस प्रकार का है...

Osho quotes in Hindi about life

तुम्‍हारे शरीर के मरुस्थल में मरू धान कहां है, फूल कहां है? कहां तुम्‍हारी देह सबसे अधिक जीवंत है, और कहां मृत है? तुम नहीं जानते. तुम अपरिचित बने रहते हो. कौन देगा तुम्‍हें वह परिचय? वास्‍तव में जब तुम प्रेम में पड़ते हो और कोई तुम्‍हारे शरीर से प्रेम करता है तो पहली बार तुम सजग होते हो. अपनी देह के प्रति कि तुम्‍हारे पास देह है...

Osho Hindi collection

प्रेमी एक दूसरे की मदद करते है अपने शरीरों को जानने में. काम तुम्‍हारी मदद करता है दूसरे की देह को समझने में-और दूसरे के द्वारा तुम्‍हारे अपने शरीर की पहचान और अनुभूति पाने में. कामवासना तुम्‍हें देहधारी बनाती है. शरीर में बद्धमूल करती है. और फिर प्रेम तुम्‍हें स्‍वयं का, आत्‍मा का स्‍वय का अनुभव देता है-वह है दूसरा वर्तुल. और फिर प्रार्थना तुम्‍हारी मदद करती है अनात्‍म को अनुभव करने में,या ब्रह्म को, या परमात्‍मा को अनुभव करने में...

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ये तीन चरण है: कामवासना से प्रेम तक, प्रेम से प्रार्थना तक. और प्रेम के कई आयाम होते है. क्‍योंकि यदि सारी ऊर्जा प्रेम है तो फिर प्रेम के कई आयाम होने ही चाहिए. जब तुम किसी स्‍त्री से या किसी पुरूष से प्रेम करते हो तो तुम परिचित हो जाते हो अपनी देह के साथ. तब तुम परिचित हो जाते हो अपने साथ. अपनी सत्‍ता के साथ और उस परिचित द्वारा, अकस्‍मात तुम संपूर्ण के प्रेम में पड़ जाते हो...

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परमात्‍मा का अकस्‍मात तुम संपूर्ण में जा पहुंचते हो,

और तुम जाते हो अस्‍तित्‍व के अंतरतम मर्म में...

ओशो—पतंजलि: योग-सूत्र

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