hindi ki kahani, kahani in hindi, kahani hindi me, hindi story, hindi song, hindi kahani download, kahani hindi mai, hindi prem kahani, story in hindi, kahaniya hindi, hindi khani, kahani for child in hindi, kahani hindi mai, hindi kahani cartoon, bolti kahani

Full width home advertisement


Premchand Stories

Love Stories

Post Page Advertisement [Top]


premchand ki kahani-Izzat ka Khun

इज्ज़त का ख़ून


- प्रेमचंद

premchand ki kahani

मैंने कहानियों और इतिहासों में तकदीर के उलट फेर की अजीबो- गरीब दास्ताने पढ़ी हैं. शाह को भिखमंगा और भिखमंगें को शाह बनते देखा है तकदीर एक छिपा हुआ भेद हैं. गलियों में टुकड़े चुनती हुई औरते सोने के सिंहासन पर बैठ गई और वह ऐश्वर्य के मतवाले जिनके इशारे पर तकदीर भी सिर झुकाती थी, आन की शान में चील कौओं का शिकार बन गये है. पर मेरे सर पर जो कुछ बीती उसकी नजीर कहीं नहीं मिलती. आह उन घटानाओं को आज याद करती हूं तो रोगटे खड़े हो जाते है और हैरत होती है  कि अब तक मै क्यो और क्योंकर जिन्दा हूँ.

premchand stories in hindi

सौन्दर्य लालसाओं का स्रोत है. मेरे दिल में क्या लालसाएं न थीं पर आह, निष्ठूर भाग्य के हाथों में मिटीं. मै क्या जानती थी कि वह आदमी जो मेरी एक-एक अदा पर कुर्बान होता था एक दिन मुझे इस तरह जलील और बर्बाद करेगा. आज तीन साल हुए जब मैने इस घर में कदम रक्खा उस वक्त यह एक हरा भरा चमन था. मैं इस चमन की बुलबूल थी, हवा में उड़ती डालियों पर चहकती थी, फूलों पर सोती थी. सईद मेरा था. मै सईद की थी. 

premchand hindi story

इस संगमरमर के हौज के किनारे हम मुहब्बत के पासे खेलते थे. तुम मेरी जान हो. मैं उनसे कहती थी –तुम मेरे दिलदार हो. हमारी जायदाद लम्बी चौड़ी थी. जमाने की कोई फ्रिक, जिन्दगी का कोई गम न था. हमारे लिए जिन्दगी सशरीर आनन्द एक अनन्त चाह और बहार का तिलिस्म थी, जिसमें मुरादे खिलती थी और खुशियॉँ हंसती थी जमाना हमारी इच्छाओं पर चलने वाला था. आसमान हमारी भलाई चाहता था और तकदीर हमारी साथी थी.

story of premchand

एक दिन सईद ने आकर कहा- मेरी जान , मै तुमसे एक विनती करने आया हूँ. देखना इन मुस्कराते हुए होठों पर इनकार का हर्फ न आये. मै चाहता हूँ कि अपनी सारी मिलकियत, सारी जायदाद तुम्हारे नाम चढ़वा दूँ मेरे लिए तुम्हारी मुहब्बत काफी है. यही मेरे लिए सबसे बड़ी नेमत है मै अपनी हकीकत को मिटा देना चाहता हूँ. चाहता हूँ कि तुम्हारे दरवाजे का फकीर बन करके रहूँ. तुम मेरी नूरजहॉँ बन जाओं, मैं तुम्हारा सलीम बनूंगा, और तुम्हारी मूंगे जैसी हथेली के प्यालों पर उम्र बसर करुंगा.

munshi premchand stories

मेरी आंखें भर आयी. खुशिंयां चोटी पर पहुँचकर आंसु की बूंद बन गयीं.

पर अभी पूरा साल भी न गुजरा था कि मुझे सईद के मिजाज में कुछ तबदीली नजर आने लगी. हमारे दरमियान कोई लड़ाई-झगड़ा या बदमजगी न हुई थी मगर अब वह सईद न था. जिसे एक लमहे के लिए भी मेरी जुदाई दूभर थी वह अब रात की रात गायब रहता. उसकी आंखो में प्रेम की वह उंमग न थी न अन्दाजों में वह प्यास, न मिजाज में वह गर्मी.

premchand biography in hindi

कुछ दिनों तक इस रुखेपन ने मुझे खूब रुलाया. मुहब्बत के मजे याद आ आकर तड़पा देते. मैने पढ़ा था कि प्रेम अमर होता है. क्या, वह स्रोत इतनी जल्दी सूख गया? आह, नहीं वह अब किसी दूसरे चमन को शादाब करता था. आखिर मै भी सईद से आंखे चुराने लगी. बेदिली से नहीं, सिर्फ इसलिए कि अब मुझे उससे आंखे मिलाने की ताव न थी. उस देखते ही मुहब्बत के हजारों करिश्मे नजरो के सामने आ जाते और आंखे भर आती. 

premchand story in hindi

मेरा दिल अब भी उसकी तरफ खिचंता था कभी – कभी बेअख्तियार जी चाहता कि उसके पैरों पर गिरुं और कहूं –मेरे दिलदार, यह बेरहमी क्यों? क्या तुमने मुझसे मुहं फेर लिया है. मुझसे क्या खता हुई? लेकिन इस स्वाभिमान का बुरा हो जो दीवार बनकर रास्ते में खड़ा हो जाता.
यहां तक कि धीर-धीरे दिल में भी मुहब्बत की जगह हसद ने ले ली. निराशा के धैर्य ने दिल को तसकीन दी . 

premchand short stories

मेरे लिए सईद अब बीते हुए बसन्त का एक भूला हुआ गीत था. दिल की गर्मी ठण्डी हो गयी. प्रेम का दीपक बुझ गया. यही नही, उसकी इज्जत भी मेरे दिल से रुखसत हो गयी. जिस आदमी के प्रेम के पवित्र मन्दिर मे मैल भरा हुआ हो वह हरगिज इस योग्य नही कि मैं उसके लिए घुलूं और मरुं.

munsi premchand

एक रोज शाम के वक्त मैं अपने कमरे में पंलग पर पड़ी एक किस्सा पढ़ रही थी, तभी अचानक एक सुन्दर स्त्री मेरे कमरे मे आयी. ऐसा मालूम हूआ कि जैसे कमरा जगमगा उठा. रुप की ज्योति ने दरो दीवार को रोशान कर दिया. गोया अभी सफेदी हुई है उसकी अलंकृत शोभा, उसका खिला हुआ फूल जैसा लुभावना चेहरा उसकी नशीली मिठास, किसी तारीफ करुं मुझ पर एक रोब सा छा गया. मेरा रुप का घमंड धूल में मिल गया है. 

munshi premchand story

मै आश्चर्य में थी कि यह कौन रमणी है और यहां क्योंकर आयी. बेअख्तियार उठी कि उससे मिलूं और पूछूं कि सईद भी मुस्कराता हुआ कमरे में आया मैं समझ गयी कि यह रमणी उसकी प्रेमिका है. मेरा गर्व जाग उठा. मैं उठी जरुर पर शान से गर्दन उठाए हुए आंखों में हुस्न के रौब की जगह घृणा का भाव आ बैठा. मेरी आंखों में अब वह रमणी रुप की देवी नहीं डसने वाली नागिन थी. 

godan premchand

मैं फिर चारपाई पर बैठ गई और किताब खोलकर सामने रख ली- वह रमणी एक क्षण तक खड़ी मेरी तस्वीरों को देखती रही तब कमरे से निकली चलते वक्त उसने एक बार मेरी तरफ देखा उसकी आंखों से अंगारे निकल रहे थे. जिनकी किरणों में हिंसप्रतिशोध की लाली झलक रही थी. मेरे दिल में सवाल पैदा हुंआ- सईद इसे यहां क्यों लाया? क्या मेरा घमण्ड तोड़ने के लिए?

premchand books

जायदाद पर मेरा नाम था पर वह केवल एक भ्रम था, उस पर अधिकार पूरी तरह सईद का था. नौकर भी उसीको अपना मालिक समझते थें और अक्सर मेरे साथ ढिठाई से पेश आते. मैं सब्र के साथ जिन्दगी के दिन काट रही थी. जब दिल में उमंगे न रहीं तो पीड़ा क्यों होती?

premchand ki kahaniya

सावन का महीना था, काली घटा छायी हुई थी, और रिमझिम बूंदें पड़ रही थी. बगीचे पर हसद का अंधेरा और सिहास दराख्तों पर जुंगनुओं की चमक ऐसी मालूम होती थी. जैसे कि उनके मुंह से चिनगारियों जैसी आहें निकल रही हैं. मै देर तक हसद का यह तमाशा देखती रही. कीड़े एक साथ चमकते थे और एक साथ बुझ जाते थे, गोया रोशनी की बाढें छूट रही है. मुझे भी झूला झूलने और गाने का शौक हुआ. 

about premchand

मौसम की हालतें हसंद के मारे हुए दिलों परभरी अपना जादु कर जाती है. बगीचे में एक गोल बंगला था. मै उसमें आयी और बरागदे की एक कड़ी में झूला डलवाकर झूलने लगी. मुझे आज मालूम हुआ कि निराशा में भी एक आध्यात्मिक आनन्द होता है, जिसकी हाल उसको नहीं मालूम जिसकी इच्छा पूर्ण है. मैं चाव से मल्हार गाने लगी सावन विरह और शोक का महीना है. गीत में एक वियोग. हृदय की गाथा की कथा ऐसे दर्द भरे शब्दों बयान की गयी थी कि बरबस आंखों से आंसू टपकने लगे. इतने में बाहर से एक लालटेन की रोशनी नजर आयी. सईद और हसीना दोनों चले आ रहे थे. हसीना ने मेरे पास आकर कहा-आज यहां नाच रंग की महफिल सजेगी और शराब के दौर चलेगें.

munshi premchand stories in hindi

मैंने घृणा से कहा – मुबारक हो.

हसीना - बारहमासे और मल्हार की ताने उड़ेगी साजिन्दे आ रहे हैं.

मैं– शौक से.

हसीना - तुम्हारा सीना हसद से चाक हो जाएगा.

stories of premchand

सईद ने मुझसे कहा- जुबैदा तुम अपने कमरे में चली रही जाओ, यह इस वक्त आपे में नहीं है.
हसीना ने मेरी  तरफ लाल–लाल आखों  निकालकर कहा- मैं तुम्हें अपने पैरो की धूल के बराबर भी नही समझती.

मुझे फिर जब्त न रहा. अकड़कर बोली – और मै क्या समझाती हूं एक कुतिया, दुसरों की उगली हुई हडिडयों को चिचोड़ती फिरती है.

अब सईद के भी तेवर बदले मेरी तरफ भयानक आंखो से देखकर बोले- जुबैदा, तुम्हारे सर पर शैतान तो नही सवार है??

premchand wikipedia premchand ke fate jute

सईद का यह जुमला मेरे जिगर में चुभ गया, तपड़ उठी, जिन होठों से हमेशा मुहब्बत और प्यार की बातें सुनी हो, उन्हीं से यह जहर निकले और बिल्कुल बेकसूर! क्या मै ऐसी नाचीज और हकीर हो गयी हूँ कि एक बाजारु औरत भी मुझे छेड़कर गालियां दे सकती है और मेरा जबान खोलना मना! मेरे दिल में साल भर से जो बुखार हो रहा था, वह उछल पड़ा. मैं झूले से उतर पड़ी और सईद की तरफ शिकायत-भरी निगाहों से देखकर बोली– शैतान मेरे सर पर सवार हो या तुम्हारे सर पर, इसका फैसला तुम खुद कर सकते हों. 

munshi premchand ka jeevan parichay

सईद, मैं तुमको अब तक शरीफ और गैरतवाला समझती थी, तुम खुद कर सकते हो. बेवफाई की, इसका मलाल मुझे जरुर था, मगर मैंने सपनों में भी यह न सोचा था कि तुम गैरत से इतने खाली हो कि हया-फरोश औरत के पीछे मुझे इस तरह जलीज करोगें. इसका बदला तुम्हें खुदा से मिलेगा.

हसीना ने तेज होकर कहा- तू मुझे हया फरोश कहती है?

मैं- बेशक कहती हूँ.

सईद –और मै बेगैरत हूँ . ?

मैं – बेशक ! बेगैरत ही नहीं शोहदेबाज, मक्कार पापी सब कुछ .यह अल्फाज बहुत घिनौने है लेकिन मेरे गुस्से के इजहार के लिए काफी नहीं.

मैं यह बातें कह रही थी कि यकायक सईद के लम्बे तगड़े, हटटे कटटे नौकर ने मेरी दोनो बाहें पकड़ ली और पलक मारते भर में हसीना ने झूले की रस्सियां उतार कर मुझे बरामदे के एक लोहे के खम्भे से बांध दिया.

इस वक्त मेरे दिल में क्या ख्याल आ रहे थे. यह याद नहीं पर मेरी आंखो के सामने अंधेरा छा गया था. ऐसा मालूम होताथा कि यह तीनो इंसान नहीं यमदूत हैं. गूस्से की जगह दिल में डर समा गया था. इस वक्त अगर कोई रौबी ताकत मेरे बन्धनों को काट देती, मेरे हाथों में आबदार खंजर दे देती तो भी तो जमीन पर बैठकर अपनी जिल्लत और बेकसी पर आंसु बहाने के सिवा और कुछ न कर सकती. मुझे ख्याल आता था कि शायद खुदा की तरफ से मुझ पर यह कहर नाजिल हुआ है. 

शायद मेरी बेनमाजी और बेदीनी की यह सजा मिल रहा है. मैं अपनी पिछली जिन्दगी पर निगाह डाल रही थी कि मुझसे कौन सी गलती हुई हौ जिसकी यह सजा है. मुझे इस हालत में छोड़कर तीनो सूरते कमरे में चली गयीं. मैने समझा मेरी सजा खत्म हुई लेकिन क्या यह सब मुझे यों ही बधां रक्खेगे? लौडियां मुझे इस हालत में देख ले तो क्या कहें? नहीं अब मैं इस घर में रहने के काबिल ही नही. मैं सोच रही थी कि रस्सियां क्योंकर खोलूं मगर अफसोस मुझे न मालूम था कि अभी तक जो मेरी गति हुई है वह आने वाली बेरहमियो का सिर्फ बयाना है . 

मैं अब तक न जानती थी कि वह छोटा आदमी कितना बेरहम, कितना कातिल है. मैं अपने दिल से बहस कर रही थी कि अपनी इस जिल्लत मुझ पर कहां तक है. अगर मैं हसीना की उन दिल जलाने वाली बातों को जबाव न देती तो क्या यह नौबत न आती? आती और जरुर आती. वह काली नागिन मुझे डसने का इरादा करके चली थी इसलिए उसने ऐसे दिल दुखाने वाले लहजे में ही बात शुरु की थी. मै गुस्से मे आकर उसको लानत मलानत करुँ और उसे मुझे जलील करने का बहाना मिल जाय.

पानी जोर से बरसने लगा, बौछारों से मेरा सारा शरीर तर हो गया था. सामने गहरा अंधेरा था. मैं कान लगाये सुन रही थी कि अन्दर क्या मिसकौट हो रही है, मगर मेह की सनसनाहट के कारण आवाजे साफ न सुनायी देती थी. इतने लालटेन फिर से बरामदे में आयी और तीनों डरावनी सूरते फिर सामने आकर खड़ी हो गयी. अब की उस खून परी के हाथो में एक पतली सी कमची थी उसके तेवर देखकर मेरा खून सर्द हो गया. 

उसकी आंखो मे एक खून पीने वाली वहशत एक कातिल पागलपन दिखाई दे रहा था. मेरी तरफ शरारत –भरी नजरो सेदेखकर बोली बेगम साहबा, मैं तुम्हारी बदजबानियो का ऐसा सबक देना चाहती हूं. जो तुम्हें सारी उम्र याद रहे और मेरे गुरु ने बतलाया है कि कमची से ज्यादा देर तक ठहरने वाला और कोई सबक नहीं होता.

यह कहकर उस जालिम ने मेरी पीठ पर एक कमची जोर से मारी. मैं तिलमिया गयी मालूम हुआ कि किसी ने पीठ पर आग की चिंगारी रख दी. मुझसे जब्त न हो सका मॉँ बाप ने कभी फूल की छड़ी से भी न मारा था. जोर से चीखे मार मारकर रोने लगी. स्वाभिमान, लज्जा सब लुप्त हो गयी. कमची की डरावनी और रौशन असलियत के सामने और भावनाएं गायब हो गयीं. उन हिन्दु देवियों के दिल शायद लोहे के होते होंगे जो अपनी आन पर आग में कुद पड़ती थी. मेरे दिल पर तो इस दिल पर तो इस वक्त यही खयाल छाया हुआ था कि इस मुसीबत से क्योंकर छुटकारा हो.

सईद तस्वीर की तरह खामोश खड़ा था. मैं उसकी तरफ फरियाद की आंखे से देखकर बड़े विनती के स्वर में बोली – सईद खुदा क लिए मुझे इस जालिम से बचाओ, मैं तुम्हारे पैरों पड़ती हूँ, तुम मुझे जहर दे दो, खंजर से गर्दन काट लो लेकिन यह मुसीबत सहने की मुझमें ताब नहीं. उन दिलजोइयों को याद करों, मेरी मुहब्बत का याद करो, उसी के सदके इस वक्त मुझे इस अजाब से बचाओ, खुदा तुम्हें इसका इनाम देगा.

सईद इन बातो से कुछ पिंघला. हसीना की तरह डरी हुई आंखों से देखकर बोला- जरीना मेरे कहने से अब जाने दो. मेरी खातिर से इन पर रहम करो.

ज़रीना तेवर बदल कर बोली- तुम्हारी ख़ातिर से सब कुछ कर सकती हूं, गालियां नहीं बर्दाश्त कर सकती.

सईद –क्या अभी तुम्हारे खयाल में गालियों की काफी सजा नहीं हुई?

जरीना- तब तो आपने मेरी इज्जत की खूब कद्र की! मैने रानियों से चिलमचियां उठवायी है, यह बेगम साहबा है किस ख्याल में? मै इसे अगर कुछ छुरी से काटूँ तब भी इसकी बदजबानियों की काफ़ी सजा न होगी.

सईद-मुझसे अब यह जुल्म नहीं देखा जाता.

ज़रीना-आंखे बन्द कर लो.

सईद- जरीना, गुस्सा न दिलाओ, मैं कहता हूँ, अब इन्हें माफ़ करो.

ज़रीना ने सईद को ऐसी हिकारत-भरी आंखों से देखा गोया वह उसका गुलाम है. खुदा जाने उस पर उसने क्या मन्तर मार दिया था कि उसमें ख़ानदानी ग़ैरत और बड़ाई ओ इन्सानियत का ज़रा भी एहसास बाकी न रहा था. वह शायद उसे गुस्से जैसे मर्दाना जज्बे के क़ाबिल ही न समझती थी. हुलिया पहचानने वाले कितनी गलती करते हैं क्योंकि दिखायी कुछ पड़ता है, अन्दर कुछ होता है! बाहर के ऐसे सुन्दर रुप के परदे में इतनी बेरहमी, इतनी निष्ठुरता! कोई शक नहीं, रुप हुलिया पहचानने की विद्या का दुश्मन है. 

बोली – अच्छा तो अब आपको मुझ पर गुस्सा आने लगा! क्यों न हो, आखिर निकाह तो आपने बेगम ही से किया है. मैं तो हया- फरोश कुतिया ही ठहरी!

सईद- तुम ताने देती हो और मुझसे यह खून नहीं देखा जाता.

ज़रीना – तो यह क़मची हाथ में लो, और इसे गिनकर सौ लगाओ. गुस्सा उतर जाएगा, इसका यही इलाज है.

ज़रीना – फिर वही मजाक़.

ज़रीना- नहीं, मैं मज़ाक नहीं करती.

सईद ने क़मची लेने को हाथ बढ़ाया मगर मालूम नहीं जरीना को कया शुबहा पैदा हुआ, उसने समझा शायद वह क़मची को तोड़ कर फेंक देंगे. कमची हटा ली और बोली- अच्छा मुझसे यह दगा! तो लो अब मैं ही हाथों की सफाई दिखाती हूँ. यह कहकर उसे बेदर्द ने मुझे बेतहाशा कमचियां मारना शुरु कीं. मैं दर्द से ऐंठ-ऐंठकर चीख रही थी. उसके पैरों पड़ती थी, मिन्नते करती थी, अपने किये पर शर्मिन्दा थी, दुआएं देती थी, पीर और पैगम्बर का वास्ता देती थी, पर उस क़ातिल को ज़रा भी रहम न आता था. 

सईद काठ के पुतले की तरह दर्दो सितम का यह नजारा आंखो से देख रहा था और उसको जोश न आता था. शायद मेरा बड़े-से-बड़े दुश्मन भी मेरे रोने-धोने पर तरस खाता मेरी पीठ छिलकर लहू-लुहान हो गयी, जख़म पड़ते थे, हरेक चोट आग के शोले की तरह बदन पर लगती थी. मालूम नहीं उसने मुझे कितने दर्रे लगाये, यहां तक कि क़मची को मुझ पर रहम आ गया, वह फटकर टूट गयी. लकड़ी का कलेजा फट गया मगर इन्सान का दिल न पिघला.

मुझे इस तरह जलील और तबाह करके तीनों ख़बीस रुहें वहां से रुखसत हो गयीं. सईद के नौकर ने चलते वक्त मेरी रस्सियां खोल दीं. मैं कहां जाती? उस घर में क्योंकर क़दम रखती?
मेरा सारा जिस्म नासूर हो रहा था लेकिन दिल के फफोले उससे कहीं ज्यादा जान लेवा थे. सारा दिल फफोलों से भर उठा था. अच्छी भावनाओं के लिए भी जगह बाक़ी न रही थी. 

उस वक्त मैं किसी अंधे को कुंए में गिरते देखती तो मुझे हंसी आती, किसी यतीम का दर्दनाक रोना सुनती तो उसका मुंह चिढ़ाती. दिल की हालत में एक ज़बर्दस्त इन् कालाब हो गया था. मुझे गुस्सा न था, गम न था, मौत की आरजू न थी, यहां तक कि बदला लेने की भावना न थी. उस इन्तहाई जिल्लत ने बदला लेने की इच्छा को भी खत्म कर दिया थरा. हालांकि मैं चाहती तो कानूनन सईद को शिकंजे में ला सकती थी, उसे दाने-दाने के लिए तरसा सकती थी लेकिन यह बेइज्ज़ती, यह बेआबरुई, यह पामाली बदले के खयाल के दायरे से बाहर थी. 

बस, सिर्फ़ एक चेतना बाकी थी और वह अपमान की चेतना थी. मैं हमेशा के लिए ज़लील हो गयी. क्या यह दाग़ किसी तरह मिट सकता था ? हरगिज नहीं. हां, वह छिपाया जा सकता था और उसकी एक ही सूरत थी कि जिल्लत के काले गड्डे में गिर पडूँ ताकि सारे कपड़ों की सियाही इस सियाह दाग को छिपा दे. क्या इस घर से बियाबान अच्छा नहीं जिसके पेंदे में एक बड़ा छेद हो गया हो? इस हालत में यही दलील मुझ पर छा गयी. 

मैंने अपनी तबाही को और भी मुकम्मल, अपनी जिल्लत को और भी गहरा, आने काले चेहरे को और भी काला करने का पक्का इरादा कर लिया. रात-भर मैं वहीं पड़ी कभी दर्द से कराहती और कभी इन्हीं खयालात में उलझती रही. यह घातक इरादा हर क्षण मजबूत से और भी मजबूत होता जाता था. घर में किसी ने मेरी खबर न ली. पौ फटते ही मैं बाग़ीचे से बाहर निकल आयी, मालूम नहीं मेरी लाज-शर्म कहां गायब हो गयी थी. जो शख्स समुन्दर में ग़ोते खा चुका हो उसे ताले- तलैयों का क्या डर? मैं जो दरो-दीवार से शर्माती थी, इस वक्त शहर की गलियों में बेधड़क चली जा रही थी-चोर कहां, वहीं जहां जिल्लत की कद्र है, जहां किसी पर कोई हंसने वाला नहीं, जहां बदनामी का बाज़ार सजा हुआ है, जहां हया बिकती है और शर्म लुटती है!

इसके तीसरे दिन रुप की मंडी के एक अच्छे हिस्से में एक ऊंचे कोठे पर बैठी हुई, मैं उस मण्डी की सैर कर रही थी. शाम का वक्त था, नीचे सड़क पर आदमियों की ऐसी भीड़ थी कि कंधे से कंधा छिलता था. आज सावन का मेला था, लोग साफ़-सुथरे कपड़ पहने क़तार की क़तार दरिया की तरफ़ जा रहे थे. हमारे बाज़ार की बेशकीमती जिन्स भी आज नदी के किनारे सजी हुई थी. कहीं हसीनों के झूले थे, कहीं सावन की मीत, लेकिन मुझे इस बाज़ार की सैर दरिया के किनारे से ज्यादा पुरलुत्फ मालूम होती थी, ऐसा मालूम होता है कि शहर की और सब सड़कें बन्द हो गयी हैं, सिर्फ़ यही तंग गली खुली हुई है और सब की निगाहें कोठों ही की तरफ़ लगी थीं ,गोया वह जमीन पर नहीं चल रहें हैं, हवा में उड़ना चाहते हैं. 

हां, पढ़े-लिखे लोगों को मैंने इतना बेधड़क नहीं पाया. वह भी घूरते थे मगर कनखियों से. अधेड़ उम्र के लोग सबसे ज्यादा बेधड़क मालूम होते थे. शायद उनकी मंशा जवानी के जोश को जाहिर करना था. बाजार क्या था एक लम्बा-चौड़ा थियेटर था, लोग हंसी-दिल्लगी करते थे, लुत्फ उठाने के लिए नहीं, हसीनों को सुनाने के लिए. मुंह दूसरी तरफ़ था, निगाह किसी दूसरी तरफ़. बस, भांडों और नक्कालों की मजलिस थी.

यकायक सईद की फिंटन नजर आयी. मैं रउस पर कई बार सैर कर चुकी थी. सईद अच्छे कपड़े पहने अकड़ा हुआ बैठा था. ऐसा सजीला, बांका जवान सारे शहर में न था, चेहरे-मोहरे से मर्दानापन बरसता था. उसकी आंख एक बार मेरे कोठे की तरफ़ उठी और नीचे झुक गयी. उसके चेहरे पर मुर्दनी- सी छा गयी जेसे किसी जहरीले सांप ने काट खाया हो. उसने कोचवान से कुछ कहा, दम के दम में फ़िटन हवा हो गयी. इस वक्त उसे देखकर मुझे जो द्वेषपूर्ण प्रसन्नता हुई, उसके सामने उस जानलेवा दर्द की कोई हक़ीक़त न थी. 

मैंने जलील होकर उसे जलील कर दिया. यक कटार कमचियों से कहीं ज्यादा तेज थी. उसकी हिम्मत न थी कि अब मुझसे आंख मिला सके. नहीं, मैंने उसे हरा दिया, उसे उम्र-भर के दिल कैद में डाल दिया. इस कालकोठरी से अब उसका निकलना गैर-मुमकिन था क्योंकि उसे अपने खानदान के बड़प्पन का घमण्ड था.

दूसरे दिन भोर में खबर मिली कि किसी क़ातिल ने मिर्जा सईद का काम तमाम कर दिया. उसकी लाश उसी बागीचे के गोल कमरे में मिलीं सीने में गोली लग गयी थी. नौ बजे दूसरे खबर सुनायी दी, जरीना को भी किसी ने रात के वक्त़ क़त्ल कर डाला था. उसका सर तन जुदा कर दिया गया. बाद को जांच-पड़ताल से मालूम हुआ कि यह दोनों वारदातें सईद के ही हाथों हुई. उसने पहले जरीना को उसके मकान पर क़त्ल किया और तब अपने घर आकर अपने सीने में गोली मारी. इस मर्दाना गैरतमन्दी ने सईद की मुहब्बत मेरे दिल में ताजा कर दी.

शाम के वक्त़ मैं अपने मकान पर पहुँच गयी. अभी मुझे यहां से गये हुए सिर्फ चार दिन गुजरे थे मगर ऐसा मालूम होता था कि वर्षों के बाद आयी हूँ. दरोदीवार पर हसरत छायी हुई थी. मैने घर में पांव रक्खा तो बरबस सईद की मुस्कराती हुई सूरत आंखों के सामने आकर खड़ी हो गयी. वही मर्दाना हुस्न, वहीं बांकपन, वहीं मनुहार की आंखे. बेअख्तियार मेरी आंखे भर आयी और दिल से एक ठण्डी आह निकल आयी. ग़म इसका न था कि सईद ने क्यों जान दे दी. नहीं, उसकी मुजरिमाना बेहिसी और रुप के पीछे भागना, इन दोनों बातों को मैं मरते दम तक माफ़ न करुंगी. गम यह था कि यह पागलपन उसके सर में क्यों समाया? 

इस वक्त दिल की जो कैफ़ियत है उससे मैं समझती हूँ कि कुछ दिनों में सईद की बेवफाई और बेरहमी का घाव भर जाएगा, अपनी जिल्लत की याद भी शायद मिट जाय, मगर उसकी चन्दरोजा मुहब्बत का नक्श बाकी रहेगा और अब यही मेरी जिन्दगी का सहारा है.

यह भी पढ़िए:

पंचतंत्र की कहानियां

No comments:

Post a Comment

Bottom Ad [Post Page]