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Vikram Betal Hindi Stories - बेताल पच्चीसी - तीसरी कहानी-पुण्य किसका ?
विक्रम और बेताल की कहानी में अब तक आपने पढ़ा...
एक तांत्रिक की साधना पूरी करने के लिए विक्रम श्मशान से बेताल को लेकर उसके पास जा रहा है. बेताल की शर्त है कि वह तभी तक उसके साथ रहेगा जब तक राजा मौन रहेगा लेकिन रास्ते में बेताल उसे एक कथा सुनाता है और न्याय पूछता है, न्याय न बताने पर राजा का सिर फट जाएगा. ऐसे में विक्रम उसे न्याय बताता है और बेताल उसे छोड़कर उड़ जाता है और उसी पेड़ पर लटक जाता है, जहां से विक्रम उसे लेकर आया था. विक्रम उसे पकड़ने के लिए पीछे दौड़ता है...
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विक्रम एक बार फिर बेताल को पकड़ कर अपनी पीठ पर लादता है और उसे लेकर तांत्रिक की ओर चल पड़ता है. बेताल फिर से विक्रम को एक कथा सुनाना शुरू करता है.
एक समय की बात है कि जब वर्धमान नगर में रूपसेन नाम का राजा शासन किया करता था. उसकी न्यायप्रियता और दयालुता के सब लोग कायल थे. एक बार उसके दरबार में वीरवर नामक योद्धा आया और उसने अपने युद्ध कौशल से राजा का हृदय जीत लिया. राजा ने उससे अपनी सेवा में लेने का आदेश दिया. वीरवर ने कहा कि वह राजा की सेवा तभी करेगा जब उसे वेतन के तौर पर रोज हजार सोने की मुहरे दी जाए.
राजा ने उसकी वीरता देखी थी और उसकी बहादुरी और निष्ठा देखकर राजा ने वीरवर को हजार मुहरे देने का वचन दिया. वीरवर बहुत ही दयालु और स्वामिभक्त था. उसके परिवार में उसकी पत्नी के अलावा उसकी बेटी और बेटा थे. सभी वीरवर की भांति ही धर्मनिष्ठ और स्वामिभक्त थे. वीरवर रोज खजाने से 1000 सोने की मोहरे लेता. इनमें से आधे वह मंदिरों में दान कर देता, बाकि बचे मोहरे में से आधे से गरीबों को भोजन करवाता. शेष बचे पैसों में से सन्यासियों को दान—दक्षिणा देता और उसके बाद बचे पैसों से परिवार के पालन का प्रबंध करता.
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अपने स्वामी की सेवा वह तत्परता से करता. रात भर पहरेदारी करता और दिन में जब राजा याद करते, दौड़ा चला आता. राजा वीरवर की स्वामिभक्ति और सेवा भावना से बहुत प्रसन्न थे. एक दिन रात को जब राजा सो रहे थे और वीरवर उनकी रक्षा में अपनी ढाल और तलवार लेकर मुस्तैद था, तभी उसे एक स्त्री के रोने की आवाज सुनाई दी. आवाज राजा के उद्यान से आ रही थी. वीरवर को लगा कोई स्त्री संकट में है. उसे बचाने जब वह उद्यान में पहुंचा तो उसने देखा कि एक दिव्य स्त्री जो गहनो से लदी हुई थी, वह जोर—जोर से रो रही थी लेकिन उसकी आंखों से आंसू नहीं निकल रहे थे.
वीरवर ने जब उसका परिचय पूछा तो स्त्री ने बताया कि वह राज्य लक्ष्मी है और राजा पर घोर संकट आने वाला है क्योंकि राजदरबार के कुछ लोग उनके खिलाफ षड़यंत्र कर रहे हैं. इससे राजा का कोष रिक्त हो जाएगा और राजा इस दुख को सह नहीं पाएगा. एक माह के भीतर ही उसकी मृत्यु हो जाएगी. यह सुनकर वीरवर अपने स्वामी के लिए चिंतित हो गया. उसने राजलक्ष्मी से पूछा कि राजा को इससे बचाने का कोई उपाय है तो बताएं.
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राजलक्ष्मी ने बताया कि अगर उसे राजा को बचाना है तो उसे अपने पुत्र का शीश कुल देवी के चरणों में अर्पित करना होगा. ऐसा करने पर राजा पर आई विपदा टल जाएगी. यह सुनकर वीरवर अपने घर पहुंचा और अपनी पत्नी को सारा वृतांत कह सुनाया. पत्नी ने कहा कि आपकी स्वामीभक्ति की रक्षा के लिए मैं अपने पुत्र के बलिदान को तैयार हूं. पुत्र ने कहा कि देवी की सेवा में यह शरीर काम आए मेरे लिए यह सौभाग्य की बात है. परिवार की स्वीकृति मिलने के बाद वीरवर सपरिवार मंदिर पहुंचा.
उसने देवी से अपने राजा के लिए मंगलकामना की. इसके बाद तलावर से अपने पुत्र का शीश अर्पित किया. पुत्री ने अपने भाई को इस हाल में देखा तो उसने प्राण त्याग दिए. मां ने भी अपनी संतानों की राह ली. वीरवर ने भी यह दृश्य देखकर फैसला किया कि अब उसका जीवन भी किस काम का है और अपने सिर को धड़ से अलग कर दिया.
राजा को जब यह बात पता चली तो वह मंदिर पहुंचा और यह जानकर दुखी हो गया कि उसकी प्राणरक्षा के लिए पूरे परिवार को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा. राजा को वैराग्य हो गया और उसने अपने प्राण देने के लिए तलवार उठाई तभी देवी प्रकट हो गई और राजा को रोक लिया. देवी ने राजा को वर मांगने को कहा. राजा ने कहा कि उसका सेवक तथा पूरा परिवार जीवित हो जाए. देवी ने अमृत प्रभाव से वीरवर और उसके पूरे परिवार को जिंदा कर दिया.
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बेताल ने विक्रम से पूछा, बता राजन किस का त्याग सबसे महान था. वीरवर का, उसकी पत्नी का या फिर पुत्र का. विक्रम ने उत्तर दिया कि सबसे महान त्याग राजा का था क्योंकि सेवक तो अपना धर्म निभा रहा था, त्याग को राजा ने किया इसलिए वही महान हुआ. बेताल ने कहा कि सही उत्तर और वह उड़ कर उस पेड़ पर जा लटका जहां से विक्रम ने उसे उठाया था.
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