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Zen Story-झेन कथा-लाओत्से की कथा

लाओत्से कौन था


महान दार्शनिक लाओत्से नाम का एक बहुत अदभुत फकीर चीन में हुआ. वह इतना विनम्र और सरल व्यक्ति था, इतना अदभुत व्यक्ति था! उसकी एक—एक अंतर्दृष्टि बहुमूल्य है. उसके एक—एक शब्द में इतना अमृत है, उसके एक-एक शब्द में इतना सत्य है, जिसका कोई हिसाब नहीं है. लेकिन आदमी वह बहुत सीधा और सरल था. 

लाओत्से ओशो- Osho on Laotse


खुद सम्राट के कानों तक उसकी खबर पहुंची और सम्राट ने कहा, मैंने सुना है कि लाओत्से नाम का जो व्यक्ति है बहुत अति असाधारण है, बहुत एक्सट्रा— आर्डिनरी है. असामान्य ही नहीं, बहुत असामान्य है, बहुत असाधारण है. उसके वजीरों ने कहा, ‘यह बात तो सच है. उससे ज्यादा असाधारण व्यक्ति इस समय पृथ्वी पर दूसरा नहीं है.


लाओत्से के विचार Laotzu Quotes hindi 


‘सम्राट उसे देखने गया! सम्राट देखने गया, तो उसने सोचा था कि वह बहुत महिमाशाली, कोई बहुत प्रकाश को युक्त, कोई बहुत अदभुत व्यक्तित्वक का कोई प्रभावशाली व्यक्ति होगा. लेकिन जब वह द्वार पर पहुंचा, तो उस झोपड़े के बाहर ही एक छोटी—सी बगिया थी, और लाओत्से उस बगिया में अपनी कुदाली लेकर मिट्टी खोद रहा था.

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सम्राट ने उससे पूछा, ‘बागवान’ लाओत्से कहां है?’ क्योंकि यह तो कोई खयाल ही नहीं कर सकता कि यही लाओत्से होगा! फटे से कपड़े पहने हुए, बाहर मिट्टी खोद रहा हो, इसकी तो कल्पना नहीं हो सकती थी. सीधा—सादा किसान जैसा मालूम होता था. लाओत्से ने कहा, ‘ भीतर चलें, बैठें. मैं अभी लाओत्से को बुलाकर आ जाता हूं. ‘ सम्राट भीतर जाकर बैठा और प्रतीक्षा करने लगा. वह जो लाओत्से था, जो बगीचे में मिट्टी खोद रहा था, वह पीछे के रास्ते से गया, झोपड़े में से अंदर आया. 



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आकर नमस्कार किया और कहा, ‘मैं ही लाओत्से हूं. ‘ राजा बहुत हैरान हुआ. उसने कहा, ‘तुम तो वही बागवान मालूम होते हो, जो बाहर था?’ उसने कहा, ‘मैं ही लाओत्से हूं. कसूर माफ करें! क्षमा करें कि मैं छोटा—सा काम कर रहा था. लेकिन आप कैसे आये?’ उस राजा ने कहा, ‘मैंने तो सुना कि तुम बहुत असाधारण व्यक्ति हो, लेकिन तुम तो साधारण मालूम होते हो!’ लाओत्से बोला, ‘मैं बिलकुल ही साधारण हूं. आपको किसी ने गलत खबर दे दी है. ‘

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राजा वापस लौट गया. अपने मंत्रियों से जाकर उसने कहा कि ‘तुम कैसे नासमझ हो! एक साधारण जन के पास मुझे भेज दिया!’ उन सारे लागों ने कहा, ‘उस आदमी की यही असाधारणता है कि वह एकदम साधारण है. ‘ मंत्रियों ने कहा, ‘उस आदमी की यही खूबी है कि वह एकदम साधारण है.

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साधारण से साधारण आदमी भी यह स्वीकार करने को राजी नहीं होता कि वह साधारण है. उस आदमी की यही खूबी है, यही विशिष्टता है कि उसने कुछ भी असाधारण होने की इच्छा नहीं की है, वह एकदम साधारण हो गया है.

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राजा दुबारा गया. और उसने लाओत्से से पूछा कि ‘ तुम्हें यह साधारण होने का खयाल कैसे पैदा हुआ? तुम साधारण कैसे बने?’ उसने कहा, ‘ अगर मैं कोशिश करके साधारण बनता, तो फिर साधारण बन ही नहीं सकता था, क्योंकि कोशिश करने में तो आदमी असाधारण बन जाता है. नहीं, मुझे तो दिखायी पड़ा, और मैं एकदम साधारण था. मैंने अनुभव कर लिया—बना नहीं. मैंने जाना कि मैं साधारण हूं; मैं बना नहीं हूं साधारण. क्योंकि बनने की कोशिश में तो आदमी असाधारण बन जाता है. मैं बना नहीं, मैंने तो जाना जीवन को—पहचाना.

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मैंने पाया; मुझे न मृत्यु का पता है, न जन्म का पता है. मैंने पाया, यह श्वास क्यों चलती है, यह मुझे पता नहीं है, खून क्यों बहता है, मुझे पता नहीं है. मुझे भूख क्यों लगती है, मुझे प्यास क्यों लगती है—यह मुझे पता नहीं है. मैंने पाया, मैं तो बिलकुल अज्ञानी हूं. फिर मैंने पाया कि मैं तो बिलकुल अशक्त हूं—मेरी कोई शक्ति नहीं. फिर मैंने पाया; मैं तो कुछ विशिष्ट नहीं हूं. जैसी दो आंखें दूसरों को हैं, वैसी दो आंखें मेरे पास हैं. दो हाथ दूसरों के पास हैं, वैसे दो हाथ मेरे पास हैं. मैं तो एक अति सामान्य व्यक्ति हूं यह मैंने देखा, पहचाना. मैं साधारण हूं मैं बड़ा नहीं हूं. यह तो देखा और समझा और मैंने पाया कि मैं साधारण हूं.

लेकिन यह घटना ऐसे घटी कि मैं एक जंगल गया था—लाओत्से ने कहा—और वहा मैंने लोगों को लकड़ियां काटते देखा. बड़े—बड़े दरख्त काटे जा रहे थे. ऊंचे—ऊंचे दरख्त काटे जा रहे थे. सारा जंगल कट रहा था. बड़े दरख्त लगे हुए थे और जंगल कट रहा था, लेकिन बीच जंगल में एक बहुत बड़ा दरख्त था. इतना बड़ा दरख्त था कि उसकी छाया इतने दूर तक फैल गई थी, वह इतना पुराना था और प्राचीन मालूम होता था कि उसके नीचे एक हजार बैलगाड़ियां विश्राम कर सकती थीं, इतनी उसकी छाया थी. 

तो मैंने अपने मित्रों से कहा कि जाओ और पूछो कि इस दरख्त को कोई क्यों नहीं काटता है? यह दरख्त इतना बड़ा कैसे हो गया? जहा सारा जंगल कट रहा है, वहा इतना बड़ा दरख्त कैसे? जहा सब दरख्त ठूंठ रह गए हैं, जहा नये दरख्त काटे जा रहे हैं रोज, वहा यह इतना बड़ा दरख्त कैसे बच रहा है? वह क्यों लोगों ने छोड़ दिया? तो मेरे मित्र, और मैं, वहा गये. और मैंने वृद्ध बढ़इयों से पूछा, जो लकड़ियां काटते थे कि ‘यह दरख्त इतना बड़ा कैसे हो गया?’ उन्होंने कहा, ‘यह दरख्त बड़ा अजीब है. 

यह दरख्त बिलकुल साधारण है. इसके पत्ते कोई जानवर नहीं खाते. इसकी लकड़ियों को जलाया नहीं जा सकता, वे धुआ करती हैं. इसकी लकड़ियां बिलकुल फ्री—टेढ़ी हैं, इनको काटकर फर्नीचर नहीं बनाया जा सकता. द्वार—दरवाजे नहीं बनाये जा सकते. दरख्त बिलकुल बेकार है, बिलकुल साधारण है. इसलिए इसको कोई काटता नहीं. लेकिन जो दरख्त सीधा है, और ऊंचा गया है, उसे जाता है, उसके खंभे बनाये जाते हैं. ‘



लाओत्से हंसा और वापस लौट आया. और उसने कहा, उस दिन से मैं समझ गया कि अगर सच में तुम्हें जीवन में बड़ा होना है, तो उस दरख्त की भांति हो जाओ, जो बिलकुल साधारण है. जिसके पत्ते भी अर्थ के नहीं, जिसकी लकड़ी भी अर्थ की नहीं. तो उस दिन से मैं वैसा दरख्त हो गया. बेकार. मैंने फिर सारी महत्वाकांक्षा छोड़ दी. बड़ा होने की, ऊंचा होने की, असाधारण होने की सारी दौड़ छोड़ दी, क्योंकि मैंने पाया कि जो ऊंचा होना चाहेगा, वह काटा जायेगा. 

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मैंने पाया कि जो बड़ा होना चाहेगा, वह काट कर छोटा कर दिया जायेगा. मैंने पाया है कि प्रतियोगिता में, प्रतिस्पर्धा में महत्वाकांक्षा में सिवाय मृत्यु के और कुछ भी नहीं है. और तब मैं अति साधारण—जैसा मैं था, न कुछ… चुपचाप वैसे ही बैठा रहा. और जिस दिन मैंने सारी दौड छोड़ दी, उसी दिन मैंने पाया कि मेरे भीतर कोई अदभुत चीज का जन्म हो गया है. उसी दिन मैंने पाया कि मेरे भीतर परमात्मा के अनुभव की शुरुआत हो गयी है.

जो व्यक्ति साधारण से साधारण और सरल से सरल होने को राजी हो जाता है, सत्य खुद उसके द्वार आ जाता है. और जो व्यक्ति असाधारण होने की, विशिष्ट होने की, बडा होने की, महत्वाकांक्षी होने की, अहंकार तृप्त करने की दौड में पड जाता है, उसके जीवन में असत्य घना से घना होता जाता है और सत्य से उसके संबंध सदा के लिए क्षीण होते जाते हैं. 

अंततः उसके पास झूठ का एक ढेर रह जाता है और सत्य की कोई भी किरण नहीं. लेकिन जो सरल हो जाता है, सीधा, साधारण, सामान्य, उसके जीवन में झूठ की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती. उसके जीवन में सत्य की किरण का जन्म होता है और सारा अंधकार समाप्त हो जाता है.



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