Motivational Story Thomas Alva Edison |
Motivational Story of Edison by Osho
ओशो के प्रवचन-एडीसन की प्रेरक कथा
एडीसन एक छोटे-से गांव में गया था. एडीसन ने अपने जीवन में एक हजार आविष्कार किये हैं. शायद किसी वैज्ञानिक ने इतने आविष्कार कभी नहीं किये हैं– एक हजार! विद्युत के लिए, इलेक्ट्रीसिटी के लिए उससे बड़ा कोई तत्ववेत्ता नहीं था. कोई नहीं था, जो इतना जानता हो विद्युत के संबंध में जितना एडीसन.
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वह एक छोटे-से गांव में गया है. गांव के लोगों को पता भी नहीं कि वह कौन है. गांव के स्कूल में, एक छोटी-सी एक्जीबीशन, एक प्रदर्शनी चल रही है. स्कूल के बच्चों ने बहुत-से खेल-खिलौने बनाये हैं. स्कूल के विज्ञान के विद्यार्थियों ने बिजली के भी खेल-खिलौने बनाये हैं. छोटी नाव बनायी हैं, रेलगाड़ी बनायी है, मोटरगाड़ी बनायी है.
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और बच्चे बड़े आनंद से, प्रदर्शनी को जो भी लोग देखने आये हैं, उन्हें समझा रहे हैं एक-एक चीज को. एडीसन भी घूमता हुआ उस प्रदर्शनी में पहुंच गया. वह विज्ञान के हिस्से में चला गया. छोटे-छोटे बच्चे उसे समझा रहे हैं कि नाव विद्युत से चलती है. यह गाड़ी विद्युत से चलती है. वह खुशी से देख रहा है–अवाक, विस्मय से भरा हुआ. वे बच्चे और भी खुश होकर उसे समझा रहे हैं.
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तब अचानक उस बूढ़े ने उन बच्चों से पूछा, यह तो ठीक है कि तुम कहते हो कि ये विद्युत से चलती हैं–यह मशीन, यह नाव, यह गाड़ी. लेकिन मैं अगर तुमसे पूछूं तो तुम बता सकोगे क्या? एक छोटा-सा सवाल मेरे मन में आ गया है, व्हाट इज इलेक्ट्रीसिटी? विद्युत क्या है, बिजली क्या है?’
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बच्चे बोले, “बिजली! हम नाव तो चलाना जानते हैं बिजली से, लेकिन बिजली क्या है, यह हमें पता नहीं. हम अपने शिक्षक को बुला लाते हैं.
वे अपने शिक्षक को बुला लाये हैं और एडीसन ने उनसे भी पूछा है, व्हाट इज इलेक्ट्रीसिटी?
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शिक्षक भी हैरान हो गया. वह विज्ञान का स्नातक है, ग्रेज्युएट है. उसने कहा, यह तो हमें पता है कि विद्युत कैसे काम करती है, लेकिन यह हमें कुछ भी पता नहीं कि विद्युत क्या है. लेकिन आप ठहरें, हमारा प्रिंसिपल तो डी. एस सी. है, वह तो विज्ञान का बहुत बड़ा विद्वान है. हम उसे बुला लाते हैं.
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वे अपने प्रिंसिपल को बुला लाये हैं. और एडीसन का किसी को पता नहीं कि सामने जो आदमी खड़ा है, वह विद्युत को सबसे ज्यादा जानने वाला आदमी है. वह प्रिंसिपल आ गया है, उसने समझाने की कोशिश की है. लेकिन एडीसन पूछता है, “मैं यह नहीं पूछता कि बिजली कैसे काम करती हैं, मैं यह नहीं पूछता कि बिजली किन-किन चीजों से मिलकर बनी है, मैं यह पूछता हूं कि बिजली क्या है?’
उस प्रिंसिपल ने कहा “क्षमा करें. इसका तो हमें कुछ पता नहीं. ‘ वे सब बड़े पशोपेश में, बड़ी चिंता में पड़ गये. तब वह बूढ़ा हंसने लगा और उसने कहा, “शायद तुम्हें पता नहीं, मैं एडीसन हूं और मैं भी नहीं जानता हूं कि बिजली क्या है.‘
यह विनम्रता, यह ह्युमिलिटी सत्य के शोधक के लिए पहली शर्त है. एडीसन कह सकता है कि मैं भी नहीं जानता हूं कि विद्युत क्या है. यह धार्मिक चित्त का लक्षण है, “रिलीजियस माइंड’ का लक्षण है कि वह जीवन के इस अनंत रहस्य को स्वीकार करता है.
जो व्यक्ति जीवन के रहस्य को स्वीकार करता है, वह व्यक्ति अपने ज्ञानी होने को स्वीकार नहीं कर सकता है. क्योंकि ये दोनों बातें आपस में विरोधी हैं. जब कोई कहता है कि मैं ज्ञानी हूं, तब वह यह कहता है कि जीवन में अब कोई रहस्य नहीं, मैंने जान लिया हैं. जिस बात को हम जान लेते हैं, उसमें फिर कोई रहस्य, कोई मिस्ट्री नहीं रह जाती.
जो व्यक्ति कहता है, मैं नहीं जानता हूं; वह यह कह रहा है, जीवन एक रहस्य है, जीवन एक अनंत रहस्य है.
व्यक्ति के अज्ञान पर मेरा इतना जोर क्यों है? यह जोर इसलिए है, ताकि जीवन की रहस्यमयता, जीवन का मिस्टीरियस होना आपके स्मरण में आ सके.
ज्ञानी के लिए कोई रहस्य नहीं है. जहां हमने जान लिया, वहां रहस्य समाप्त हो जाता है. हजारों वर्षों से धर्म-शास्त्रियों ने मनुष्य के रहस्य की हत्या की है. वे हर चीज को ऐसा समझते हुए मालूम पड़ते हैं, जैसे जानते हों! उनसे अगर पूछो कि दुनिया किसने बनायी तो उनके पास रेडिमेड उत्तर तैयार है!
वे कहते हैं कि ईश्वर ने बनायी है! और वे यहां तक बताते हैं, उनमें से कुछ कि छह दिन तक उसने दुनिया बनायी, फिर सातवें दिन विश्राम किया! उनमें से कुछ यह भी कहते हैं–कि तिथि, तारीख भी बताते हैं कि आज से इतने हजार वर्ष पहले फलां सन में, फलां तिथि में, ईसा से चार हजार वर्ष पहले पृथ्वी बनायी गयी है, जीवन बनाया गया! वे हर चीज का उत्तर देने के लिए हमेशा तैयार हैं!
मनुष्य कैसे जान सकता है कि जीवन कब बनाया गया और कैसे बनाया गया? मनुष्य तो जीवन के बीच में स्वयं आता है, वह जीवन के प्रारंभ को कैसे जान सकता है? सागर की एक लहर कैसे जान सकती है कि सागर कब बना होगा? सागर के होने पर ही लहरें उठती हैं. सागर जब नहीं था, तब लहर भी नहीं हो सकती है–तो लहर कैसे जान सकती है, मनुष्य कैसे जान सकता है? कोई भी कैसे जान सकता है कि जीवन कब और कैसे पैदा हुआ?
लेकिन नहीं, ज्ञानियों का दंभ बहुत मजबूत है. वे हर चीज का उत्तर देने को हमेशा तैयार हैं. ऐसा कोई प्रश्न नहीं, जिसके लिए वे इनकार करें. ऐसा कोई प्रश्न नहीं, जिसके लिए वे कहें कि हम नहीं जानते हैं. आप कोई भी प्रश्न लेकर चले जायें, धर्म-शास्त्रियों के पास हमेशा उत्तर हैं तैयार!
इसलिए मैं आपसे कहता हूं कि एक वैज्ञानिक तो शायद कभी जीवन के सत्य के करीब पहुंच जाये, क्योंकि वैज्ञानिक के मन में एक ह्युमिलिटी है, एक विनम्रता है. लेकिन धर्मों के पंडित कभी परमात्मा के पास नहीं पहुंच सकते हैं, क्योंकि उनके पास हर बात का उत्तर है, हर बात का ज्ञान है. वे सर्वज्ञ हैं, वे सभी कुछ जानते हैं! उनकी सर्वज्ञता जीवन के रहस्य को नष्ट कर रही है, इसका उन्हें कोई ख्याल नहीं. आदमी के जीवन से धर्म इसी तरह धीरे-धीरे क्षीण होता गया है.
अगर मनुष्य को वापस धर्म की दिशा में ले जाना हो तो उसके रहस्य को फिर से जन्म देने की जरूरत है.
ओशो, सत्य की खोज (नेति—नेति,प्रव.-3)
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