Prithviraj Chauhan and Sanyogita Love story |
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पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी
पृथ्वीराज चौहान का नाम भारत के महावीरों में लिया जाता है. पृथ्वीराज का सम्बन्ध प्रतापी चौहान वंश से था जिसने राजस्थान में अजमेर नामक नगर की स्थापना की थी. पृथ्वीराज ने राजा बनते ही अपने साम्राज्य विस्तार के लिए युद्ध किए.
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पृथ्वीराज चौहान ने अपनी वीरता से सभी राजाओं को पराजित किया और दिल्ली में चौहान वंश का डंका बजने लगा. जिस पृथ्वीराज से पूरा भारत प्रेम करता था, वह पृथ्वीराज कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री संयोगिता से प्रेम करता था.
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पृथ्वीराज चौहान और जयचंद में घोर शत्रुता थी और पृथ्वीराज की शक्ति के सामने जयचंद को कई बार मुंह की खानी पड़ी थी. ऐसे में यह संभव ही नहीं था कि जयचंद अपनी पुत्री का विवाह पृथ्वीराज चौहान से कर दे.
पृथ्वीराज से वह इतनी नफरत करता था कि उसने पृथ्वीराज की मूर्ति बनवाकर उसे अपने दरबार के द्वार पर एक द्वारपाल के तौर पर रखवा दिया था ताकि वह भारत के सम्राट का अपमान कर सके.
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संयोगिता ने भी पृथ्वीराज चौहान की वीरता की कहानियां सुन रखी थी. इन कहानियों को सुनते-सुनते उसे पता ही नहीं चला कि कब वह पृथ्वीराज से प्रेम करने लगी. संयोगिता के भी रूप के चर्चे देश-विदेश में थे. पृथ्वीराज ने भी संयोगिता के रूप का वर्णन इतना सुना की उन्होंने संयोगिता से विवाह करने का निश्चय किया.
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जयचंद को जब यह मालुम हुआ तो उसने संयोगिता का स्वयंवर करने का निश्चय किया और भारतवर्ष के सभी युवा कुमारों को निमंत्रण भेजा. उसने पृथ्वीराज चैहान का अपमान करने के लिए उन्हें जानबूझकर निमंत्रण नहीं भेजा. पृथ्वीराज चौहान को जब यह मालूम हुआ कि संयोगिता का स्वयंवर हो रहा है तो उन्होंने मुट्ठी भर सैनिको के साथ कन्नौज जाने का निश्चय किया.
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कन्नौज पहुंच कर पृथ्वीराम चौहान अपनी उस प्रतिमा के पीछे छिप गए जो जयचंद ने अपने दरबार के द्वार पर लगा रखी थी. वे यह देखना चाहते थे कि संयोगिता उनसे प्रेम करती है या फिर किसी और कुमार को वर मान लेती है. वे संयोगिता से जबरदस्ती विवाह नहीं करना चाहते थे.
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थोड़ी देर में ही संयोगिता वरमाला लेकर राजदरबार पहुंच गई. संयोगिता जैसी सुंदरी से हर राजकुमार विवाह करना चाहता था लेकिन संयोगिता तो सिर्फ पृथ्वीराज चौहान से ही विवाह करना चाहती थी. संयोगिता अपने हाथ की वरमाला लिए हुए पूरे दरबार में घूमती रही और आखिर में वह बिल्कुल द्वार पर पहुंच गई.
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संयोगिता ने द्वार पर पहुंच कर अपने हाथ की वरमाला पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति में डाल दिया और उन्हें वर के तौर पर चुनने की घोषणा कर दी. ऐसा होते ही दरबार में खलबली मच गई और सभी राजकुमार इसे अपना अपमान बताने लगे.
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यह सब हो ही रहा था कि पृथ्वीराज चौहान अपनी मूर्ति के पीछे से निकल आए और संयोगिता को लेकर वहां से निकल गए. किसी में इतना साहस नहीं हुआ कि वह पृथ्वीराज चौहान का सामना कर सके. इस तरह पृथ्वीराज और संयोगिता एक दूसरे के हो गए.
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आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है
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