जलालुद्दीन रूमी एक दिन अपने शिष्यों को लेकर एक खेत पर गया.
शिष्य बड़े चकित थे कि खेत पर किसलिए ले जाया जा रहा है! सूफी फकीर अक्सर ऐसा करते हैं—शिक्षा देते हैं किसी स्थिति के सहारे, किसी परिस्थिति को आधार बनाते हैं. जलालुद्दीन ले गया उन्हें खेत में और उसने कहा कि देखो खेत की हालत! देख कर वे भी चकित हुए, खेत पूरा बरबाद हो गया था. और बरबादी का कारण यह था कि खेत का मालिक कुआ खोदना चाहता था.
अब कुआ खोदने से खेत बर्बाद नहीं होते; कुआ खोदने से तो खेत हरे— भरे होते हैं. लेकिन खेत का मालिक बडा अधीर था. एक कुआ खोदा, आठ हाथ, दस हाथ गहरा गया और फिर छोड़ दिया, सोचा यहां जलधार नहीं मिलेगी, कंकड़ ही पत्थर, कंकड़ ही पत्थर, यहां कहां जलधार! कुछ आसार भी तो होने चाहिए. सोचा होगा—पूत के लक्षण पालने में! ये कंकड़—पत्थर शुरू से ही हाथ लग रहे हैं, आगे और बड़ी—बड़ी चट्टानें होंगी, पहाड़ होंगे. तर्क तो ठीक था.
दूसरा कुआ खोदा. वह आठ—दस हाथ जो कुआ खोदा था, उसका कूड़ा—करकट सब खेत में भर गया, फिर दूसरा कुआ खोदा, बस आठ—दस हाथ फिर, फिर तीसरा—ऐसे उसने दस कुएं खोद डाले, सारा खेत खोद डाला. और सारा खेत कचरा, मिट्टी, पत्थर से भर गया, फसल जो पहले भी लगती थी हाथ, अब उसका भी लगना मुश्किल हो गया.
जलालुद्दीन ने कहा देखते हो इस खेत के मालिक का अधैर्य! काश, इसने इतनी खुदाई की ताकत एक ही कुएं पर लगाई होती! दस कुएं दस—दस हाथ खोदे, सौ हाथ यह खोद चुका! और ऐसे अगर खोदता रहा तो जिंदगी भर खोदता रहेगा और जलधार नहीं पाएगा. अगर एक ही जगह सतत सौ हाथ की खुदाई की होती तो आज यह खेत हरा— भरा होता, फलों—फूलों से लदा होता.
शिष्यों ने कहा लेकिन यह हमें आप क्यों दिखाते हैं?
जलालुद्दीन ने कहा इसलिए कि इसी तरह के काम में मैं तुम्हें लगाए हुए हूं. भीतर खोदना है कुआ और पहले तो कंकड़—पत्थर ही हाथ लगेंगे. यह तो शुरुआत है. अच्छे लक्षण हैं. कुआ खुदना शुरू हो गया. कंकड़—पत्थर हाथ लगने लगे. नाचो! खुशी मनाओ! लेकिन खुदाई मत छोड़ देना. यही कहीं खोदते रहे, खोदते रहे, तो परमात्मा भी मिलेगा.
क्योंकि प्रेम में खोद कर ही परमात्मा पाया गया है, और तो परमात्मा को पाने का उपाय ही नहीं है. प्रेम की भूमी में ही छिपी है जलधार. यह हो सकता है कहीं पचास हाथ खोदो तो मिलेगी, कहीं साठ हाथ खोदो तो मिलेगी, कहीं सत्तर हाथ खोदो तो मिलेगी, मगर एक बात पक्की है कि अगर खोदते ही रहे तो मिलेगी ही मिलेगी.
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