essay on neev in hindi |
नींव की ईंट
- रामवृक्ष बेनीपुरी
वह जो चमकीली, सुंदर, सुघड़ इमारत आप देख रहे हैं; वह किसपर टिकी है ? इसके कंगूरों (शिखर) को आप देखा करते हैं, क्या आपने कभी इसकी नींव की ओर ध्यान दिया है?
दुनिया चकमक देखती है, ऊपर का आवरण देखती है, आवरण के नीचे जो ठोस सत्य है, उसपर कितने लोगों का ध्यान जाता है ?
ठोस 'सत्य' सदा 'शिवम्' होता ही है, किंतु वह हमेशा 'सुंदरम्' भी हो यह आवश्यक नहीं है.
सत्य कठोर होता है, कठोरता और भद्दापन साथ-साथ जन्मा करते हैं, जिया करते हैं.
हम कठोरता से भागते हैं, भद्देपन से मुख मोड़ते हैं - इसीलिए सत्य से भी भागते हैं.
neev ki eent summary
नहीं तो इमारत के गीत हम नींव के गीत से प्रारंभ करते.
वह ईंट धन्य है, जो कट-छँटकर कंगूरे पर चढ़ती है और बरबस लोक-लोचनों को आकृष्ट करती है.
किंतु, धन्य है वह ईंट, जो ज़मीन के सात हाथ नीचे जाकर गड़ गई और इमारत की पहली ईंट बनी!
क्योंकि इसी पहली ईंट पर उसकी मज़बूती और पुख़्तेपन पर सारी इमारत की अस्ति-नास्ति निर्भर करती है.
उस ईंट को हिला दीजिए, कंगूरा बेतहाशा ज़मीन पर आ गिरेगा.
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कंगूरे के गीत गानेवाले हम, आइए, अब नींव के गीत गाएँ.
वह ईंट जो ज़मीन में इसलिए गड़ गई कि दुनिया को इमारत मिले, कंगूरा मिले!
वह ईंट जो सब ईंटों से ज़्यादा पक्की थी, जो ऊपर लगी होती तो कंगूरे की शोभा सौ गुनी कर देती!
किंतु जिसने देखा कि इमारत की पायदारी (टिकाऊपन) उसकी नींव पर मुनहसिर (निर्भर) होती है, इसलिए उसने अपने को नींव में अर्पित किया.
वह ईंट जिसने अपने को सात हाथ ज़मीन के अंदर इसलिए गाड़ दिया कि इमारत सौ हाथ ऊपर तक जा सके.
neev ki eent meaning in english
वह ईंट जिसने अपने लिए अंधकूप इसलिए कबूल किया कि ऊपर के उसके साथियों को स्वच्छ हवा मिलती रहे, सुनहली रोशनी मिलती रहे.
वह ईंट जिसने अपना अस्तित्व इसलिये विलीन कर दिया कि संसार एक सुंदर सृष्टि देखे.
सुंदर सृष्टि! सुंदर सृष्टि हमेशा से ही बलिदान खोजती है, बलिदान ईंट का हो या व्यक्ति का.
essay on neev in hindi
सुंदर समाज बने इसलिए कुछ तपे-तपाए लोगों को मौन-मूक शहादत का लाल सेहरा पहनना है.
शहादत और मौन-मूक! जिस शहादत को शोहरत मिली, जिस बलिदान को प्रसिद्धि प्राप्त हुई, वह इमारत का कंगूरा है, मंदिर का कलश है.
हाँ, शहादत और मौन-मूक! समाज की आधारशिला यही होती है.
ईसा की शहादत ने ईसाई धर्म को अमर बना दिया, आप कह लीजिए. किंतु मेरी समझ से ईसाई धर्म को अमर बनाया उन लोगों ने, जिन्होंने उस धर्म के प्रचार में अपने को अनाम उत्सर्ग (कुर्बान) कर दिया.
Neev Ki Eent
उनमें से कितने ज़िंदा जलाए गए, कितने सूली पर चढ़ाए गए, कितने वन-वन की ख़ाक छानते हुए जंगली जानवरों का शिकार हुए, कितने उससे भी भयानक भूख-प्यास के शिकार हुए.
उनके नाम शायद ही कहीं लिखे गए हों - उनकी चर्चा शायद ही कहीं होती हो.
किंतु ईसाई धर्म उन्हीं के पुण्य प्रताप से फल-फूल रहा है.
वे नींव की ईंट थे, गिरजाघर के कलश उन्हीं की शहादत से चमकते हैं.
आज हमारा देश आज़ाद हुआ सिर्फ़ उनके बलिदानों के कारण नहीं, जिन्होंने इतिहास में स्थान पा लिया है.
देश का शायद ही कोई ऐसा कोना हो, जहाँ कुछ ऐसे दधीचि नहीं हुए हों, जिनकी हड्डियों के दान ने ही विदेशी वृत्रासुर का नाश किया.
कक्षा 9 नींव की ईंट
हम जिसे देख नहीं सकें वह सत्य नहीं है, यह है मूढ़ धारणा! ढूँढ़ने से ही सत्य मिलता है. हमारा काम है, धर्म है, ऐसी नींव की ईटों की ओर ध्यान देना.
सदियों के बाद हमने नई समाज की सृष्टि की ओर कदम बढ़ाया है.
इस नए समाज के निर्माण के लिये भी हमें नींव की ईंट चाहिए.
अफ़सोस कंगूरा बनने के लिए चारों ओर होड़ा-होड़ी मची है, नींव की ईंट बनने की कामना लुप्त हो रही है.
सात लाख़ गाँवों का नव-निर्माण! हज़ारों शहरों और कारखानों का नव-निर्माण! कोई शासक इसे संभव नहीं कर सकता. ज़रूरत है ऐसे नौजवानों की, जो इस काम में अपने को चुपचाप खपा दें.
जो एक नई प्रेरणा से अनुप्राणित हों, एक नई चेतना से अभीभूत, जो शाबाशियों से दूर हों, दलबंदियों से अलग.
जिनमें कंगूरा बनने की कामना न हो, कलश कहलाने की जिनमें वासना न हो. सभी कामनाओं से दूर - सभी वासनाओं से दूर.
उदय के लिये आतुर हमारा समाज चिल्ला रहा है. हमारी नींव की ईंटें किधर हैं?
देश के नौजवानों को यह चुनौती है!
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