महाभारत की कथा में सबसे प्रसिद्ध और गरिमामय पात्र पितामह भीष्म का है. उन्होनें आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की लेकिन एक स्वयंवर ही उनकी मृत्यु का कारण बना. राजकुमारी अंबा के प्रतिशोध के फलस्वरूप भीष्म को अपने प्राण त्यागने पड़े. भीष्म और अंबा के सम्बन्ध में महर्षि वेदव्यास लिखित महाभारत में एक कथा का वर्णन आता है जो यहां दिया जा रहा है.
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राजा शांतनू और रानी सत्यवती को दो पुत्र चित्रागंद और विचित्रवीर्य हुए. चित्रांगद बहुत वीर थे और एक गंधर्व के साथ युद्ध के दौरान वे वीरगति को प्राप्त हो गए. ऐसे में उनके छोटे भाई विचित्रवीर्य को हस्तिनापुर के राजसिंहासन पर बैठने का सौभाग्य मिला. विचित्रवीर्य अल्पायु थे इसलिए राज काज का सारा भार भीष्म के कंधों पर आ पड़ा. भीष्म को अपने भाई के विवाह की चिंता हुई. इसी दौरान काशी नरेश ने अपनी तीन पुत्रियों अंबा, अम्बिका और अम्बालिका के स्वयंवर का आयोजन किया.mahabharat katha hindi pdf
भीष्म भी अपने भाई के लिए कन्या हेतु काशीराज के दरवाजे पहुंचे लेकिन काशीराज ने उनका अपमान किया और उन्हें प्रतिज्ञा का स्मरण करवाया. काशीराज ने भीष्म के स्थान पर विचित्रवीर्य को स्वयंवर में आने के लिए कहा. भीष्म क्रोधित हो गए और उन्होंने बल पुर्वक कन्याओं का हरण कर लिया. काशीराज का सबसे बड़ी पुत्री अंबा शौभदेश के राजा शाल्व से प्रेम करती थी.
शाल्व ने भीष्म का मार्ग रोकने का प्रयास किया लेकिन महाबली भीष्म के आगे उसकी एक न चली और उसे पराजय का मूंह देखना पड़ा. हस्तिनापुर पहुंचने के बाद जब अंबा ने अपने प्रेम के बारे में भीष्म को बताया तो भीष्म ने उन्हें सम्मानपुर्वक राजा शाल्व के पास भिजवा दिया लेकिन शाल्व ने अंबा से विवाह करने से इंकार कर दिया.
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अंबा पुन: भीष्म के पास पहुंची तो भीष्म ने विचित्रवीर्य से अंबा का विवाह करवाने का प्रयास किया लेकिन विचित्रवीर्य ने दूसरे से प्रेम करने वाली कुमारी से विवाह करने से मना कर दिया. भीष्म और शाल्व के बीच अंबा 6 वर्ष तक घूमती रही. आखिर में उसने भीष्म से विवाह का अनुरोध किया लेकिन भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा का हवाला देते हुए विवाह से इंकार कर दिया.
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अंबा ने भीष्म से प्रतिशोध लेने का प्रण लिया. वे बारी—बारी से भारत देश के सभी राजाओं के पास गई लेकिन भीष्म की शक्ति के कारण उनसे लड़ने का साहस कोई न दिखा सका. थक हार कर अंबा परशुराम जी के पास गई. परशुराम जी ने अंबा को न्याय दिलवाने के लिए भीष्म को युद्ध के लिए ललकारा. कई दिनों तक युद्ध चला और परशुराम को हार माननी पड़ी. उसी दिन उन्होंने शपथ ली कि वे किसी क्षत्रिय को शस्त्र विद्या प्रदान नहीं करेंगे क्योंकि भीष्म भी उनके ही शिष्य थे.
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अंबा ने इसके बाद भी हार नहीं मानी और कठिन तपस्या की. अपने तप के बल पर दूसरे जन्म में उन्होंने पुरूष का रूप धारण किया और अपना नाम शिखंडी रखा. भीष्म यह बात जानते थे और महाभारत के दौरान जब शिखंडी अर्जुन के रथ पर सवार हो कर उनके सामने आए तो उन्होंने हथियार रख दिए और अर्जुन ने उन्हें शरशैया पर लिटा दिया, जहां उन्होंने अपने प्राण त्यागे.
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