महाभारत की कहानियां—लाख का घर
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महाभारत की कहानियों में यह कथा सबसे ज्यादा कही सुनी जाती है. युधिष्ठिर की लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही थी. प्रजा अब जल्दी से जल्दी युधिष्ठिर को राजा के रूप में देखना चाहती थी. पांडवों की बढ़ती लोकप्रियता से दुर्योधन बहुत परेशान था और कोई ऐसी युक्ति निकालना चाहता था जिससे पांडवों की हत्या की जा सके. कर्ण ने इसका विरोध किया और पांडवों से सीधे युद्ध का प्रस्ताव रखा लेकिन दुर्योधन जानता था कि पांडवों से सीधे युद्ध में जीतना संभव नहीं है. उसने अपने धूर्त मामा शकुनी से उपाय बताने को कहा.
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शकुनी ने अपने धूर्त दिमाग से एक विचार दुर्योधन को बताया कि वह किसी न किसी बहाने खांडवप्रस्थ में लगने वाले मेले में पांडवों को भिजवा दे. वहां पर उनके रूकने के लिए जो भवन बनाया जाएगा वह लाख का होगा. जिसमें एक चिंगारी से ऐसी आग लगेगी कि सब कुछ जल कर भस्म हो जाएगा. दुर्योधन को यह विचार पसंद आया. इस कार्य के लिए उसने अपने विश्वासपात्र पुरोचन को चुना जो भवन निर्माण का माहिर था. वह तत्काल खांडवप्रस्थ रवाना हो गया.
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दुर्योधन ने अपने पिता धृतराष्ट्र को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह पांडवों को खांडवप्रस्थ जाने का आदेश दे. धृतराष्ट्र पुत्रमोह में अंधे हो चुके थे. उन्होंने दुर्योधन की इस बात को स्वीकार कर लिया. विदुर को इस बात का पता चल गया कि दुर्योधन पांडवों के खिलाफ कोई षड़यंत्र रच रहा है. उन्होंने खांडवप्रस्थ रवाना होने से पहले युधिष्ठिर को कूट भाषा में एक संदेश दे दिया जिसमें उन्हें अग्नि से सावधान रहने के लिए कहा गया था.
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पांडवों के पहुंचने से पहले पुरोचन ने एक सुंदर लाख के भवन का निर्माण करवाया. पांडवों के आने के बाद उनका स्वागत सत्कार किया गया. उन्हें उस भवन में ठहराया गया. पांडव विदुर जी के संदेश की वजह से सावधान थे. युधिष्ठिर के आदेश पर रात में बारी—बारी से कोई न कोई पांडव जाग कर पहरेदारी करता. पुरोचन को इस वजह से भवन में आग लगाने का मौका नहीं मिलता. विदुर ने इस बीच एक खनिक को युधिष्ठिर के पास भेजा.
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उस खनिक ने भवन से लेकर जंगल तक एक सुरंग का निर्माण कर दिया ताकि आग लगने की स्थिति में पांडव उस सुरंग के रास्ते सुरक्षित रूप से बाहर निकल सकें. जब सुरंग का काम पूरा हो गया तो युधिष्ठिर ने एक उत्सव का आयोजन किया. उस उत्सव में पूरे नगर को आमंत्रित किया गया. सारा नगर देर रात तक उत्सव मनाता रहा. रात में पुरोचन जब शराब पीकर सो रहा था तो पांडवों ने भवन में आग लगा दी.
सारा भवन जल कर राख हो गया. हस्तिनापुर की प्रजा को जब यह पता लगा कि पांडव जल कर भस्म हो गए हैं तो सारा शहर शोक में डूब गया. सब दुर्योधन पर इसका लांछन लगाने लगे. पांडव तो सुरंग के रास्ते बाहर निकल चुके थे. विदुर जी ने युधिष्ठिर को सलाह दी कि समय अनुकूल होने तक छिप कर रहना ही बेहतर है नहीं तो दुर्योधन उनको फिर से मारने की चेष्टा कर सकता है.
विदुर ने पितामह भीष्म को इस बारे में थोड़ा बहुत बताया ताकि वे शोक के भंवर से बाहर निकल सके. इधर पांडव उस भवन से निकल कर जंगल में मारे—मारे फिरने लगे. पांडवों के लिए यह बुरा समय था. लाक्षागृह की घटना की वजह से अब वे हस्तिनापुर के महल में किसी पर विश्वास नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होंन लौटना ठीक नहीं समझा. उधर धृतराष्ट्र ने दुर्योधन को हस्तिनापुर का युवराज घोषित कर दिया.
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