व्रत कथा— शीतलाष्टमी की व्रत कथा
चैत्र कृष्ण पक्ष में शीतला अष्टमी आती है. इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है और ठंडा भोजन किया जाता है. मां शीतला की पूजा को विधिवत सम्पन्न करने के लिए शीतला माता की व्रत कथा बांची जाती है. यहां हम शीतलाष्ठमी को पढ़ी जाने वाली व्रत कथा अपने पाठकों को उपलब्ध करवा रहे हैं. जिसे आप डाउनलोड कर सकते हैं.
शीतला माता कथा
एक बुढ़िया थी. वह बासोड़ा के दिन शीतला माता की पूजा कर ठंडा भोजन ग्रहण करती थी. उस गांव में अन्य कोई ऐसा नहीं करता था. एक दिन किसी कारण से गांव में आग लग गई. बुढ़िया की झोंपड़ी को छोड़कर सभी के घर जल गए.
यह खबर जब राजा के पास पहुंची, तो राजा ने मंत्रियों को भेजकर बुढ़िया माई को बुलवाया.
बुढ़िया जब राजा के पास पहुँचती, तो राजा ने उससे पूछा कि 'हे बुढ़िया माई, सारे गांव में आग लग गई, परन्तु तुम्हारी झोपड़ी नहीं जली इसका क्या कारण है?'
बुढ़िया माई बोली- ‘महाराज, मैं बासोड़ा के दिन शीतला माता की पूजा करती हूं तथा एक दिन पहले का बना ठंडा भोजन करती हूं. माता की कृपा से मेरी झोंपड़ी बच गई. राजा ने तत्काल गांव में घोषणा करवा दी कि हर कोई बासोड़ा के दिन शीतला मात की पूजा करे तथा ठंडा भोजन खाए.
शीतला माता मंत्र
'वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बरराम्,
मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्।'
शीतला माता की आरती
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता,
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता। जय शीतला माता...
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता,
ऋद्धि-सिद्धि चंवर ढुलावें, जगमग छवि छाता। जय शीतला माता...
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता,
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता । जय शीतला माता...
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा,
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता। जय शीतला माता...
घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता,
करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता। जय शीतला माता...
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,
भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता। जय शीतला माता...
जो भी ध्यान लगावें प्रेम भक्ति लाता,
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता। जय शीतला माता...
रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता,
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता। जय शीतला माता...
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता,
ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता। जय शीतला माता...
शीतल करती जननी तू ही है जग त्राता,
उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता। जय शीतला माता...
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता,
भक्ति आपनी दीजे और न कुछ भाता।
जय शीतला माता...।
शीतला माता चालीसा
जय जय माता शीतला तुमही धरे जो ध्यान। होय बिमल शीतल हृदय विकसे बुद्धी बल ज्ञान।।
घट घट वासी शीतला शीतल प्रभा तुम्हार। शीतल छैंय्या शीतल मैंय्या पल ना दार।।
चौपाई :-
जय जय श्री शीतला भवानी। जय जग जननि सकल गुणधानी।।
गृह गृह शक्ति तुम्हारी राजती। पूरन शरन चंद्रसा साजती।।
विस्फोटक सी जलत शरीरा। शीतल करत हरत सब पीड़ा।।
मात शीतला तव शुभनामा। सबके काहे आवही कामा।।
शोक हरी शंकरी भवानी। बाल प्राण रक्षी सुखदानी।।
सूचि बार्जनी कलश कर राजै। मस्तक तेज सूर्य सम साजै।।
चौसट योगिन संग दे दावै। पीड़ा ताल मृदंग बजावै।।
नंदिनाथ भय रो चिकरावै। सहस शेष शिर पार ना पावै।।
धन्य धन्य भात्री महारानी। सुर नर मुनी सब सुयश बधानी।।
ज्वाला रूप महाबल कारी। दैत्य एक विश्फोटक भारी।।
हर हर प्रविशत कोई दान क्षत। रोग रूप धरी बालक भक्षक।।
हाहाकार मचो जग भारी। सत्यो ना जब कोई संकट कारी।।
तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा। कर गई रिपुसही आंधीनी सूपा।।
विस्फोटक हि पकड़ी करी लीन्हो। मुसल प्रमाण बहु बिधि कीन्हो।।
बहु प्रकार बल बीनती कीन्हा। मैय्या नहीं फल कछु मैं कीन्हा।।
अब नही मातु काहू गृह जै हो। जह अपवित्र वही घर रहि हो।।
पूजन पाठ मातु जब करी है। भय आनंद सकल दुःख हरी है।।
अब भगतन शीतल भय जै हे। विस्फोटक भय घोर न सै हे।।
श्री शीतल ही बचे कल्याना। बचन सत्य भाषे भगवाना।।
कलश शीतलाका करवावै। वृजसे विधीवत पाठ करावै।।
विस्फोटक भय गृह गृह भाई। भजे तेरी सह यही उपाई।।
तुमही शीतला जगकी माता। तुमही पिता जग के सुखदाता।।
तुमही जगका अतिसुख सेवी। नमो नमामी शीतले देवी।।
नमो सूर्य करवी दुख हरणी। नमो नमो जग तारिणी धरणी।।
नमो नमो ग्रहोंके बंदिनी। दुख दारिद्रा निस निखंदिनी।।
श्री शीतला शेखला बहला। गुणकी गुणकी मातृ मंगला।।
मात शीतला तुम धनुधारी। शोभित पंचनाम असवारी।।
राघव खर बैसाख सुनंदन। कर भग दुरवा कंत निकंदन।।
सुनी रत संग शीतला माई। चाही सकल सुख दूर धुराई।।
कलका गन गंगा किछु होई। जाकर मंत्र ना औषधी कोई।।
हेत मातजी का आराधन। और नही है कोई साधन।।
निश्चय मातु शरण जो आवै। निर्भय ईप्सित सो फल पावै।।
कोढी निर्मल काया धारे। अंधा कृत नित दृष्टी विहारे।।
बंधा नारी पुत्रको पावे। जन्म दरिद्र धनी हो जावे।।
सुंदरदास नाम गुण गावत। लक्ष्य मूलको छंद बनावत।।
या दे कोई करे यदी शंका। जग दे मैंय्या काही डंका।।
कहत राम सुंदर प्रभुदासा। तट प्रयागसे पूरब पासा।।
ग्राम तिवारी पूर मम बासा। प्रगरा ग्राम निकट दुर वासा।।
अब विलंब भय मोही पुकारत। मातृ कृपाकी बाट निहारत।।
बड़ा द्वार सब आस लगाई। अब सुधि लेत शीतला माई।।
यह चालीसा शीतला पाठ करे जो कोय। सपनें दुख व्यापे नही नित सब मंगल होय।।
बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल भाल भल किंतू। जग जननी का ये चरित रचित भक्ति रस बिंतू।।
॥ इतिश्री शीतला माता चालीसा समाप्त॥
शीतला माता का इतिहास
शीतला माता को चेचक की देवी माना जाता है. उनका वर्णन स्कंद पुराण में आता है. उनके हाथ में सूप, कलश, मार्जन और नीम के पत्ते हैं, जिसकी मदद से चेचक रोग को हर लेती हैं. उनकी सवारी गर्दभ है. चेचक हो जाने पर रोगी के परिवारजनों द्वारा शीतला माता की पूजा की जाती है.
शीतला माता मंदिर गुड़गांव
शीतला माता का मंदिर हरियाणा के गुड़गांव में स्थित है. यह मंदिर काफी प्राचीन है और एक अनुमान के मुताबिक करीब 500 साल पुराना है. महाभारत की एक उत्तर कथा को इस मंदिर से जोड़ा जाता है. महाभारत की इस कथा के अनुसार कृपाचार्य की बहिन और द्रोणाचार्य की पत्नी कृपी यहीं पर सत्ती हुई थी. उनके प्रताप से यहां आने वाले लोगों की मनोकामना पूरी होती है. यहां साल में दो बार मेला लगता है.
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