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विक्रम और बेताल की बेताल पच्चीसी— पहली कहानी

vikram betal विक्रम ने बेताल को अपने कंधों पर उठाया तो बेताल ने अपनी शर्त दोहराई, महाराज आपको कहानी सुनाता हूं लेकिन आपको कुछ बोलना नहीं है. कहानी के अंत में मैं आपसे एक प्रश्न करूंगा अगर आपने उसका उत्तर गलत दिया तो आपके सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे.

बेताल ने कथा प्रांरभ की.

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काशी नगर में एक प्रतापी राजा प्रतापमुकुट राज किया करता था. उसके पुत्र का नाम वज्रमुकुट था. वज्रमुकुट की मित्रता राज्य के दिवान के पुत्र से थी जो उसका परम हितैषी और स्वामी भक्त था.


एक संध्या को दोनों मित्र आखेट के लिए जंगल में गए और एक हिरन का पीछा करते हुए काफी दूर निकल गए. घने जंगल में उन्हें एक तालाब दिखाई दिया जो कि बहुत रमणीक था. उन्होंने वहीं अपने हाथ-पैर धोए और पास ही के शिव मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए चले गए.


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जब दोनों मंदिर से बाहर निकले तो क्या देखते हैं कि एक राजकुमारी अपनी सखियों के साथ 
तालाब पर स्नान करने आई है. दीवान पुत्र तो मंदिर में ही रूक गया लेकिन राजपुत्र वज्रमुकुट से नहीं रूका गया और वह राजकुमारी से मिलने चला गया.


राजकुमारी के सौन्दर्य को देखकर वह मोहित हो गया. राजकुमारी ने जब उस सुंदर युवक को देखा तो उसने अपने जूड़े से एक कमल का फूल निकाला, अपने कान से उसे स्पर्श किया, अपने दांतो से उसे काटा, अपने पैरो से कुचला और फिर आखिर में अपने सीने से लगा कर राजकुमार को दे दिया.


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असमंजस की स्थिति में राजकुमार अपने दीवान मित्र के पास पहुंचा और कहा कि उसे राजकुमारी से प्रेम हो गया है लेकिन उसने इस कमल के फूल के अतिरिक्त उसे कुछ भी नहीं बताया. अब उससे मिलना कैसे संभव हो सकेगा.


दीवान के पुत्र ने उत्तर दिया कि राजकुमारी बहुत चतुर है और आपको सबकुछ सांकेतिक भाषा मे बता कर गई है. उसने जुड़े से कमल का फूल निकाल कर कान से लगाया कि क्योंकि वह कर्नाटक की रहने वाली है, दांत से काटा क्योंकि उसके पिता राजा दंतवर्ण है और पैर से कुचला क्योंकि उसका ना पद्मिनी है और दिल से लगाया क्योंकि वह आपसे प्रेम करने लगी है.

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बेताल ने कहा कि हे राजा विक्रम प्रेम में पड़ा हुआ व्यक्ति किसी सीमा को नहीं मानता.


राजकुमार ने अपने मित्र के साथ कर्नाटक जाने का निश्चय किया और कई दिनों की यात्रा के बाद वे कर्नाटक राजमहल पहंुचे तो उन्होंने वहां बुढ़िया को देखा जो सूत कात रही थी. दोनों कुमारों ने बुढ़िया से कहा कि वे दूर से देश से आए व्यापारी है और रहने के लिए कुछ जगह चाहते हैं. अगर बुढ़िया उन्हें वहां रहने देती है तो वह उन्हें धन देंगे. 


इस पर बुढ़िया सहर्ष तैयार हो गई.


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बुढ़िया ने बताया कि उसका पुत्र राज सेवक है और वह भी पहले राजकुमारी की प्रमुख सेविका थी लेकिन उम्र ज्यादा हो जाने से अब वह नियमित सेवा में नहीं है लेकिन दिन में एक बार वह जरूर राजकुमारी से मिलने जाती है. यह सुनकर राजकुमार प्रसन्न हो गया. 


उसने बुढ़िया से कहा कि वह जाकर राजकुमारी को यह संदेश दे दे कि जिस राजकुमार को उसने कमल का फूल उपहार में दिया है वह नगर में उससे मिलने के लिए आया हुआ है.


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बुढ़िया जब यह संदेश लेकर राजकुमारी के पास पहुंची और राजकुमारी को राजकुमार के बारे में बताया तो राजकुमारी ने चंदन के लेप में अपनी दसों अंगुलिया भीगाकार बुढ़िया के गालों पर लगा दिया और उसे बाहर निकाल दिया. यह बात वापस आकर बुढ़िया ने राजकुमार को बताई तो राजकुमार निराश हो गया. 


दीवान पुत्र ने कहा कि उसे निराश होने की जरूरत नहीं है. दरअसल अभी दस दिनों तक रात में चांदनी रहेगी और उजाले में अगर आप राजकुमारी से मिलने जाएंगे तो पकड़े जाएंगे इसलिए उन्होंने आपसे दस अंगुलिया या दस दिन तक इंतजार करने को कहा है.


इसके बाद दस दिन भी गुजर गए तो राजकुमार ने बुढ़िया को एक बार फिर संदेशा देकर भेजा. अबकि बार राजकुमारी ने केसर के रस में तीन अंगुलिया भीगाकर बुढ़िया के माथे से लगाया और फिर निकाल दिया. राजकुमार को जब यह पता लगा तो वह फिर निराश हो गया. दीवान के पुत्र ने समझाया कि राजकुमारी ने कहा कि अभी तीन दिन तक वह मासिक धर्म के कारण राजकुमार से नहीं मिल सकती. 


तीन दिन बाद राजकुमार ने बुढ़िया को एक बार फिर संदेश देकर भेजा. अबकि बार राजकुमारी ने बुढ़िया को खिड़की के रास्ते बाहर निकाल दिया. राजकुमार फिर निराश हो गया. दीवान पुत्र ने समझाया कि राजकुमारी ने उसे खिड़की के रास्ते अपने भवन में प्रवेश करने का संकेत दिया है. रात को अंधेरा होते ही राजकुमार खिड़की के रास्ते राजकुमारी के पास पहुंच गया.


राजकुमारी राजकुमार के साथ रात व्यतीत करती और अगले दिन सुबह राजकुमार को छुपा देती. इस तरह एक मास बीस गया. राजकुमार ने एक रात को कहा कि अब उसे वापस लौटना होगा क्योंकि उसका मित्र उसका इंतजार कर रहा है. 

राजकुमार ने बताया कि उसके दीवान मित्र की वजह से ही वह राजकुमारी के संकेतों को समझ पाया. राजकुमारी को जब यह बात पता चली तो उसने आग्रह किया कि वह उसके मित्र को अपने हाथों से बना भोजन खिलाना चाहती है इसलिए वह जाने से पहले उसके हाथों से बना भोजन अपने मित्र के लिए ले जाए.


राजकुमारी ने भोजन बनाया और उसके मित्र के लिए दिया. राजकुमार अपने मित्र के पास पहुंचा और उससे सारी बात कह बताई और यह भी बताया कि राजकुमारी ने उसकी प्रतिभा को जानकर स्वयं अपने हाथों से बना भोजन उसके लिए भिजवाया है. यह जानकर दीवान पुत्र दुखी हो गया. 

उसने अपने मित्र से कहा कि उसे यह राजकुमारी को नहीं बताना चाहिए था. वह नहीं चाहती की मैं जीवित रहूं ताकि वह तुम पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर ले. ऐसा कहके उसने भोजन का एक टुकड़ा एक कुत्ते को खाने के लिए दे दिया. राजकुमारी ने भोजन में जहर मिलाया था इसलिए कुत्ता मर गया.


राजकुमार निराश हो गया. दीवान पुत्र ने कहा कि निराश होने की कोई जरूरत नहीं है. अब मैं जैसा कहूं वैसा ही करते जाओगे तो राजकुमारी से तुम्हारा विवाह भी हो जाएगा और जीवन भर वह तुम्हारे वश में भी रहेगी. ऐसा करो आज रात जो जाओ और राजकुमारी के सारे गहने चुरा लाओ और उसकी जांघ पर एक त्रिशूल का निशान बना आओ.


राजकुमार ने वैसा ही किया. वह राजकुमारी की जांघ पर त्रिशूल का निशान बना कर उसके गहने चुरा ले आया. दीवान पुत्र ने इसके बाद जंगल में जाकर एक कुटिया बनाई और राजकुमार से कहा कि वह शहर जाकर इन गहनों को बेच दे और कोई पूछे यह गहने कहां से आए तो कह देना मेरे गुरू ने दिए है और उसे मेरे पास ले आना.


राजकुमार गहने बेचने शहर गया तो शहर के जौहरी ने पहचान लिया कि यह गहने राजकुमारी के है. उसने कोतवाल को खबर कर दी. कोतवाल ने जब राजकुमार से पूछा कि उसे यह गहने कहां से मिले तो उसने कहा कि उसके गुरू ने दिए है और वह कोतवाल को अपने मित्र के पास ले गया.


कोतवाल उसके मित्र को लेकर राजा के पास पहुंचा और गहनों के चोरी होने की जानकारी दी. जब राजा ने दीवान पुत्र से पूछा कि यह गहने उसे कहां से मिले तो उसने बताया कि वह एक तांत्रिक है और उसने डाकिनी विद्या सिद्ध कर रखी है. एक डाकिनी ने उसे यह गहने दिए है और उसने उस डाकिनी के जांघ पर एक त्रिशूल का निशान बना दिया है.


राजा ने अपनी रानी से कहा कि वह यह देखे की राजकुमारी की जांघ पर क्या कोई त्रिशूल का निशान बना हुआ है तो रानी ने बताया कि तांत्रिक सत्य कह रहा है. राजा को जब यह पता चला कि उसकी पुत्री डाकिनी है तो उसने तांत्रिक बने दीवान पुत्र से उससे छुटकारा पाने का उपाय पूछा. तांत्रिक ने बताया कि ऐसी लड़की को देश से बाहर वन में छोड़ देना चाहिए. राजा के आदेश पर कोतवाल ने राजकुमारी को वन में एकांत में छोड़ दिया जहां उसे राजकुमार मिल गया और दोनो ने विवाह कर लिया.


बेताल ने पूछा कि बताओ राजन इस कथा में पापी कौन है? जल्दी से उत्तर दो, अन्यथा तुम्हारा सिर फट जाएगा. विक्रम ने उत्तर दिया कि इस कथा में राजा पापी है क्योंकि उसने बिना जाने समझे राजकुमारी को देश से निकाल दिया. बेताल ने कहा सही उत्तर लेकिन आपने अपने मौन रहने के संकल्प को तोड़ दिया है इसलिए मैं वापस अपने सिरस के पेड़ पर जा रहा हूं, ये कहकर बेताल उड़ गया और विक्रम उसके पीछे उसे पकड़ने के दौड़ा.

Moral of the Story - बिना विचारे कोई काम नहीं करना चाहिए.

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