osho pravachan in hindi-Sadhu aur Satya |
Motivational Stories of Osho
Osho Stories in Hindi
ओशो की प्रेरक कहानियां— साधु और सत्य
एक साधु का अंतिम क्षण आ गया था मृत्यु का. जीवनभर उसके भक्त, उसे पूजने वाले, उसकी तरफ आंख उठाकर देखने वाले--उसके शिष्यों ने बार-बार उससे कहा था कि तुम अपने जीवन के अनुभव एक किताब में लिख दो. वह साधु हमेशा टालता रहा था. अंतिम दिन, लाखों लोग इकट्ठे हुए थे. उसने घोषणा कर दी थी कि आज सूरज के डूबने के साथ मैं समाप्त हो जाऊंगा. हजारों लोग उसके दर्शन को आए थे.
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सुबह ही सुबह उठकर उसने कहा कि मुझसे बहुत बार कहा गया था कि मैं कोई किताब लिख दूं. मैंने वह किताब अंततः लिख दी. और जो उसका सबसे प्यारा निकटतम मित्र था, उससे उसने कहा कि यह तुम किताब सम्हालो, इसे सम्हालकर रखना.
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यह बहुत बहुमूल्य है. इसमें मैंने सब कुछ लिख दिया है, जो सत्य है. और यह हजारों वर्ष तक मनुष्य के लिए बड़ी ऊंची संपदा सिद्ध होगी. यह कहकर उसने अपने मित्र और शिष्य के हाथ में वह किताब दी. लोगों ने जय-जयकार किया, तालियां पीटीं, उनकी वर्षों की आकांक्षा पूरी हो गई थी.
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लेकिन उस शिष्य ने, जिसे किताब दी गई थी, किताब हाथ में लेकर पास में जलती अंगीठी में डाल दी. झट से किताब जल गई. सारे लोग हैरान रह गए, सारे लोग परेशान हो गए कि यह क्या किया. इतने वर्षों की प्रार्थना के बाद किताब लिखी गई थी और खुद गुरु ने कहा सम्हालकर रखना और इसने आग में डाल दी!
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लेकिन गुरु की आंखों में खुशी के आंसू आ गए. उसने उस युवक को अपनी छाती से लगा लिया. और उसने कहा कि मैं खुश हूं. कम से कम एक आदमी मुझे समझ सका है. मैंने जीवनभर यही कहा कि किताबों से सत्य नहीं मिल सकता है. अगर तुम किताब को सम्हालकर रख लेते, तो मैं दुखी मरता. मैं सोचता एक भी आदमी मुझे नहीं समझा.
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तुमने आग में डाल दी बात, तुमने किताब आग में फेंक दी, मैं बहुत आनंदित हूं इस अंतिम क्षण में. और आखिर में तुम्हें बताए देता हूं कि उस किताब में मैंने कुछ भी नहीं लिखा था, क्योंकि सत्य लिखा नहीं जा सकता है. वह किताब कोरी थी. अगर तुम बचा भी लेते, तो कोई खतरा नहीं हो सकता था, वह किताब शास्त्र नहीं बन सकती थी.
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लेकिन मैं आपसे कह सकता हूं कि वह गुरु गलती में भी हो सकता था. क्योंकि भक्त ऐसे हैं कि किताब खोलकर कभी देखते नहीं कि उसमें लिखा क्या है. वह गुरु गलती में भी हो सकता था. हो सकता था वह किताब भी शास्त्र बन जाती. उसकी भी पूजा चलती और घोषणाएं चलतीं कि हमारी किताब में सबसे बड़ा सत्य है.
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झगड़े चलते, हत्याएं हो जातीं. और शायद यह भी हो सकता था कोई खोलकर देखता ही नहीं कि वहां कोरे पन्ने हैं, वहां कुछ भी नहीं है. और अगर आप कोई भी शास्त्र खोलकर देखेंगे, तो पाएंगे वहां भी कोरे पन्ने हैं, वहां भी कुछ नहीं है. कोई सत्य वहां नहीं है.
स्याही के धब्बों से थोड़े ही सत्य मिल सकता है. कागज के पन्नों पर थोड़े ही सत्य लिखा जा सकता है. सत्य तो जीवंत अनुभूति है, जो अपने हृदय के द्वार खोलता है उसे उपलब्ध होता है. कागजों पर आंखें गड़ा लेने से नहीं, बल्कि जीवन में आंखें खोलने से.
ओशो, असंभव क्रांति
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