dharmik kahani-Mahabharat Stories in hindi-raja parikshit ki kahani |
raja parikshit ki katha- राजा परीक्षित की कहानी
राजा परीक्षित की कहानी महाभारत की उत्तर कथा में शामिल है. महाभारत का युद्ध समाप्त होने को था तभी द्रोणाचार्य पुत्र अश्वत्थामा ने अपने तप बल से ब्रह्मास्त्र छोड़कर उत्तरा के गर्भ में पल रहे अर्जुन के प्रपौत्र परीक्षित का वध करना चाहा लेकिन भगवान कृष्ण ने अपने योग बल से उस अस्त्र को निष्फल कर दिया.
raja parikshit ki leela
परीक्षित का जन्म हुआ और उनके किशोर होते ही पांडुओ ने उन्हें सिंहासन पर बैठाकर हिमालय की राह ली. जहां बारी—बारी से उनकी मृत्यु होती चली गई. उस वक्त तक भगवान श्रीकृष्ण भी परमधाम को चले गए थे. ऐसे में परीक्षित ने अपने विवेक से हस्तिनापुर के राज्य में विस्तार किया और एक पराक्रमी सम्राट के तौर पर शासन किया. राजा परीक्षित ने अपने जीवन काल में तीन अश्वमेघ यज्ञ किये. उनके अश्वमेघ यज्ञ को किसी और राजा ने रोकने का साहस न किया.
parichit lila
राजा परीक्षित को एक दिन सपना आया कि कलियुग उनके राज्य में प्रवेश कर रहा है. महाभारत में इस बात का वर्णन मिलता है कि राजा परीक्षित के शासनकाल में ही द्वापर युग समाप्त हुआ और कलियुग ने प्रवेश लिया. राजा परीक्षित ने अपने सपने में देखा कि एक व्यक्ति एक गाय और एक बैल को हांकते हुए आ रहा है. बैल के चार में से तीन पैर टूटे हुए है और वह बड़ी ही कातर दृष्टि से राजा परीक्षित की ओर देख रहा है.
राजा परीक्षित कथा
राजा परीक्षित ने उन तीनो से परिचय पूछा तो गाय ने बताया कि वह स्वयं पृथ्वी है, बैल ने कहा कि मैं धर्म हूं और उस कुरूप व्यक्ति ने बताया कि वह कलियुग है. कलियुग ने धर्म रूपी बैल के तीन पैर सत्य, त्याग और दया को तोड़ दिया था और चौथे पैर दान को तोड़ने की तैयारी कर रहा था. परीक्षित ने कलियुग को चेतावनी दी. कलियुग के साथ परीक्षित का युद्ध शुरू हो गया. परीक्षित के पराक्रम के सामने कलियुग को हार माननी पड़ी. परीक्षित कलियुग का वध कर देते लेकिन कलियुग ने कहा कि अगर आप मेरी हत्या कर देंगे तो विधि का विधान बदल जाएगा. इसलिए आप मुझे अभय दे और आप जहां कहेंगे, मैं वहीं वास करूंगा.
राजा परीक्षित लीला
राजा परीक्षित ने कलियुग को अभय दिया और उसे सिर्फ जुआ, स्त्री, शराब, हिंसा और सोने में रहने की आज्ञा दी. उसे पांच अवगुण मिथ्या, मद, काम, हिंसा और बैर भी दिए. कलियुग ने परीक्षित की बात मान ली लेकिन वह दिन रात इस बात की फिराक में रहता कि कैसे परीक्षित का नाश हो और वह पूरी दुनिया पर अपना शासन कर सके. एक दिन कलियुग को इसका अवसर मिल गया. राजा परीक्षित आखेट के लिए निकले थे और उन्होंने सोने का मुकुट धारण कर रखा था. अपने वचन के मुताबिक कलियुग महाराज परीक्षित के सिर पर सवार हो गया.
परीक्षित बाला बाउल गान
आखेट के दौरान एक मृग का पीछा करते हुए परीक्षित बहुत दूर निकल आए. उन्हें जोर से प्यास लग रही थी लेकिन वहां यह बताने वाला कोई न था कि पानी कहां मिलेगा. भटकते हुए राजा परीक्षित मुनि शमीक के आश्रम में पहुंच गए. मुनि का उस दिन मौन व्रत था, जब राजा ने उनसे जल के लिए पूछा तो मुनि ने कोई जवाब नहीं दिया. चुंकि परीक्षित के सिर पर कलियुग सवार था इसलिए उनका विवेक नष्ट हो गया. उन्हें लगा कि मुनि अपने अभिमान के कारण ऐसा कर रह हैं. उन्होंने आस—पास देखा तो परीक्षित को एक मरा हुआ सांप दिखाई दिया. उन्होंने क्रोधवश मुनि के गले में वह मरा हुआ सांप लपेट दिया और पानी की तलाश में आगे निकल गए.
मुनि के पुत्र ऋषि श्रृंगी जब आश्रम में आये तो उन्होंने देखा कि उसके पिता के गले में मरा हुआ सर्प लटका हुआ है तो क्रोध में आकर उन्होंने परीक्षित को श्राप दे दिया कि जिस व्यक्ति ने भी यह नीच कर्म किया है आज से सात दिन बाद तक्षक नाग के डसने के कारण उसकी मृत्यु हो जाएगी. मुनि को जब यह बात पता लगी तो उन्हें अपने पुत्र की गलती का भान हुआ. श्राप लौटाया नहीं जा सकता था लेकिन वे राजा को सावधान करने के लिए श्राप के बारे में बता आए.
राजा परीक्षित को समझ में आ गया कि अब उनका अंत समय आ गया है. उन्होंने तुरंत अपने पुत्र जनमेजय को राजा बनाया और सन्यास ग्रहण कर अंत समय में शुकदेव जी से भागवत कथा सुनने लगे. उनके पुत्र जनमेजय ने इस श्राप को टालने के लिए चारो तरफ सुरक्षा का कड़ा प्रबंध किया. तक्षक नाग को जब यह पता लगा तो उसने कीड़े का रूप धरकर उन फलों में प्रवेश कर लिया जो महाराज के सेवन के लिए ले जाए जाने वाले थे.
राजा परीक्षित जब उन फलों को खाने के लिए उन्हें काटने लगे तो तक्षक नाग उनसे बाहर निकल आया और उसने राजा परीक्षित को डस लिया. परीक्षित की मृत्यु होते ही कलियुग ने पूरे संसार पर कब्जा कर लिया. परीक्षित के पुत्र ने तक्षक से बदला लेने के लिए नाग यज्ञ का आयोजन किया और सारे सांप तथा नागों को जनमेजय ने नाग यज्ञ में भस्म कर दिया.
यह भी पढ़िए:
No comments:
Post a Comment