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Osho On Mahatma Gandhi-महात्मा गांधी पर ओशो के विचार

Motivational Speech of Osho

Osho Stories in Hindi

महात्मा गांधी पर ओशो के विचार-महात्मा या बनिया?

उस समय मैं केवल दस साल का था. मेरी मां यानी मेरी नानी ने मुझे तीन रूपये देते हुए कहा कि स्टेमशन बहुत दूर है और तुम भोजन के समय तक शायद वापस घर न पहुच सको और इन गाड़ियों का कोई भरोसा नहीं है. बारह-तेरह घंटे देर से आना तो इनके लिए आम बात है. इसलिए ये तीन रूपये अपने पास रख लो। भारत में उन दिनों तीन रुपयों को तो एक अच्छा खासा खजाना माना जाता था. तीन रुपयों में तो एक आदमी तीन महीने तक अच्छी तरह से रह सकता था.



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मेरी नानी ने मुझसे कहा कि अगर मैं महात्मा गांधी को देखना चाहता हूं तो मुझे वहां जाना चाहिए और उन्हों ने बहुत पतले मलमल का बड़ा कुर्ता बनवाया। मलमल बहुत ही सुदंर और बहुत पुराना कपड़ा है. उन्हों ने बहुत अच्छा मलमल लिया. वह बहुत ही पतला और पारदर्शी था. गाड़ी हमेशा की तरह तेरह घंटे लेट आई. बाकी सभी लोग चले गए थे. सिवाय मेरे. तुम तो जानते है कि मैं कितना जिद्दी हूं. स्टेशन मास्टर ने भी मुझसे कहा: बेटा तुम्हारा तो कोई जवाब नहीं है. सब लोग चले गए हैं किंतु तुम तो शायद रात को भी यहीं पर ठहरने के लिए तैयार हो. और अभी भी गाड़ी के आने को कुछ पता नहीं है और तुम सुबह चार बजे से उसका इंतजार कर रहे हो.

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स्‍टेशन पर चार बजे पहुंचने के लिए मुझे अपने घर से आधीरात को ही चलना पडा था. फिर भी मुझे अपने उन तीन रुपयों को खर्च ने की जरूरत नहीं पड़ी थी क्योंकि स्टेशन पर जितने लोग थे सब कुछ न कुछ लाए थे और वे सब इस छोटे लड़के की देखभाल कर रहे थे. वे मुझे फल, मिठाइयों और मेवा खिला रहे थे. सो मुझे भूख लगने का कोई सवाल ही नहीं था. आखिर जब गाड़ी आई तो अकेला मैं ही वहां खड़ा था. बस एक दस बरस का लड़का स्टेशन मास्टर के साथ वहां खड़ा था.


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स्टेशन मास्टर ने महात्मा गांधी से मुझे मिलवाते हुए कहा: इसे केवल छोटा सा लड़का ही मत समझिए. दिन भर मैंने इसे देखा है और कई विषयों पर इससे चर्चा की है, क्योंकि और कोई काम तो था नहीं. बहुत लोग आए थे और बहुत पहले चले गए, किंतु यह लड़का कहीं गया नहीं. सुबह से आपकी गाड़ी का इंतजार कर रहा है. मैं इसका आदर करता हूं, क्योंकि मुझे पता है कि अगर गाड़ी न आती तो यह यहां से जानेवाला नहीं था. यह यहीं पर रहता. अस्तित्व के अंत तक यह यहीं रहता. अगर ट्रेन न आती तो यह कभी नहीं जाता.

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महात्मा गांधी बूढे आदमी थे. उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और मुझे देखा परंतु वे मेरी और देखने के बजाए मेरी जेब की और देख रहे थे. बस उनकी इसी बात ने मुझे उनसे हमेशा के लिए विरक्त कर दिया। उन्हों ने कहा: यह क्या है? 

मैंने कहा: तीन रूपये।

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इस पर तुरंत उन्होंने मुझसे कहा, इनको दान कर दो. उनके पास एक दान पेटी होती थी, जिसमें सूराख बना हुआ था. दान में दिए जाने वाले पैसों को उस सूराख से पेटी के भीतर डाल दिया जाता था. चाबी तो उनके पास रहती थी. बाद में वे उसे खोल कर उसमें से पैसे निकाल लेते थे.

मैंने कहा: अगर आप में हिम्मत है तो आप इन्हें ले लीजिए, जेब भी यहां है रूपये भी यहां है, लेकिन क्या मैं आप से पूछ सकता हूं कि ये रूपये आप किस लिए इक्कठा कर रहे हैं. 

उन्होंने कहा: गरीबों के लिए।

मैंने कहा: तब यह बिलकुल ठीक है. तब मैंने स्वयं उन तीन रुपयों को उस पेटी में डाल दिया, लेकिन आश्चंर्य तो उन्हें होना था क्योंकि जब मै वहां से चला तो उस पेटी को उठा कर चल पड़ा. 

उन्होंने कहा: अरे, यह तुम क्या कर रहे हो? यह तो गरीबों के लिए है.

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मैंने उत्तर दिया: हां, मैंने सुन लिया है, आपको फिर से कहने की जरूरत नहीं है. मैं भी तो गरीबों के लिए ही ले जा रहा हूं. मेरे गांव में बहुत से गरीब है. अब मेहरबानी करके मुझे इसकी चाबी दे दीजिए, नहीं तो इसको खोलने के लिए मुझे किसी चोर को बुलाना पड़ेगा क्योंकि चोर ही बंद ताले को खोलने की कला जानते है.

उन्होंने कहा: यह अजीब बात है....उन्होंने अपने सैक्रेटरी की और देखा. वह गूंगा बना था जैसे की सैक्रेटरी होते है अन्यथा वे सैक्रेटरी ही क्यों बने? उन्हों ने कस्तूरबा, अपनी पत्नी की ओर देखा. कस्तूरबा ने उनसे कहा: अच्छा हुआ, अब आपको अपने बराबरी का व्यक्ति मिला. आप सबको बेवकूफ बनाते हो, अब यह लड़का आपका बक्सा ही उठा कर ले जा रहा है. अच्छा हुआ. बहुत अच्छा हुआ, मैं इस बक्से को देख-देख कर तंग आ गई हूं.


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परंतु मुझे उन पर दया आ गई और मैंने उस पेटी को वहीं पर छोड़ते हुए कहा: आप सबसे गरीब मालूम होते है. आपके सैक्रेटरी को तो कोई अक्ल नहीं है. न आपकी पत्नी का आपसे कोई प्रेम दिखाई देता है. मैं यह बक्सा नहीं ले जा सकता, इसे आप अपने पास ही रखिए परंतु इतना याद रखिए कि मैं तो आया था एक महात्मा से मिलने परंतु मुझे मिला एक बनिया.

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