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Zen Story-झेन कथा-क्षमा


एक झेन फकीर हुआ, रिंझाई. वह एक गांव के रास्ते से गुजर रहा था तभी एक आदमी पीछे से आया और उसे लकड़ी से मार कर भाग गया. इस भाग-दौड़ में, रिंझाई को चोट पहुंचाने में उसके हाथ से लकड़ी छूट गई और जमीन पर नीचे गिर गई.

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रिंझाई लकड़ी उठाकर पीछे दौड़ा कि मेरे भाई, अपनी लकड़ी तो लेते जाओ. यह सब एक दुकान का मालिक देख रहा था. उसने ऐसी विचित्र बात न देखी थी. दुकान के मालिक ने कहा, पागल हो गए हो? वह आदमी तुम्हें लकड़ी मारकर गया और तुम उसकी लकड़ी लौटाने की चिंता कर रहे हो!

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रिंझाई ने कहा, एक दिन में एक मैं एक वृक्ष के नीचे लेटा हुआ था. वृक्ष से एक शाखा तभी मेरे ऊपर गिर पड़ी. तब मैंने वृक्ष को कुछ भी नहीं कहा. आज इस आदमी के हाथ से लकड़ी मेरे ऊपर गिर पड़ी है, मैं इस आदमी को क्यों कुछ कहूं! उस दुकानदार को रिंझाई की बात समझ में आई क्योंकि उसने तो बचपन से ही दुनिया को प्रतिशोध और प्रतिक्रिया की दृष्टि से देखा.


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उसने कहा, रिंझाई तुम पागल हो! वृक्ष से शाखा का गिरना और बात है. इस आदमी से लकड़ी तुम्हारे ऊपर गिरना वही बात नहीं है. रिंझाई कहने लगा, मेरे लिए तो सदा एक सी ही बात रही है और यह कहकर रिंझाई एक दूसरी घटना सुनाने लगे. एक बार मैं नाव खे रहा था. एक खाली नाव आकर मेरी नाव से टकरा गई. मैंने कुछ भी न कहा.

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रिंझाई ने अपनी कहानी आगे बढ़ाई. एक बार ऐसा हुआ कि मैं किसी और के साथ नाव में बैठा था. और एक नाव, जिसमें कोई आदमी सवार था और चलाता था, आकर टकरा गई. तो वह जो आदमी मेरी नाव चला रहा था, वह दूसरे नाव वाले को गालियां बकने लगा. मैंने उससे कहा, अगर नाव खाली होती, तब तुम गाली बकते या न बकते? तो उस आदमी ने कहा, 
खाली नाव को क्यों गाली बकता!

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रिंझाई ने कहा, गौर से देखो, नाव भी एक हिस्सा है, इस विराट की लीला का. वह आदमी जो बैठा है, वह भी एक हिस्सा है. नाव को माफ कर देते हो, आदमी पर इतने कठोर क्यों हो? शायद वह दुकानदार फिर भी नहीं समझा होगा क्योंकि समझने के लिए बुद्ध हो जाना पड़ता है जो अंगुलीमाल तक को माफ कर दे.  

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हममें से कोई भी नहीं समझ पाता है कि माफ करना होता नहीं है यह तो अंदर से आता है और एक बार घटित हो जाता है तो आप किसी पर दोष ही नहीं लगाते, बस माफ करते हैं क्योंकि रिंझाई कहता है कि सब उस विराट की लीला है. सब उस विराट का हिस्सा है.



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