Osho Quotes on Love-प्यार पर ओशो के प्रवचन |
Motivational Speech of Osho
ओशो के प्रवचन— प्रेम का स्तर
प्रेम का सबसे पहला स्तर है मोह
वस्तुओं के प्रति, मकान के प्रति, सामानों के प्रति, स्थानों के प्रति जो हमारी पकड़ है वह भी प्रेम का ही एक स्थूल रूप है. उसे हम कहते हैं मोह, अटैचमेंट. यह मेरा सामान है, यह मेरा मकान, मेरी कार, मेरा फर्नीचर, मेरे गहने; यह जो मेरे की पकड़ है वस्तुओं के ऊपर, यह सर्वाधिक निम्न कोटि का प्रेम है. लेकिन है तो वह भी प्रेम ही. उसे इंकार नहीं किया जा सकता है कि वह प्रेम नहीं है. वह भी प्रेम है. राजनीति पद व शक्ति के प्रति प्रेम है, लोभ धन-संपत्ति के प्रति प्रेम है.
Osho in hindi speech
उससे ऊपर है, दूसरे तल पर देह का प्रेम
जो कामवासना का रूप ले लेता है. तो पहला प्रकार हुआ वस्तुओं के प्रति प्रेम जो मोह का रूप ले लेता है और दूसरे प्रकार का प्रेम हुआ देह के प्रति प्रेम जो वासना का रूप ले लेता है.
Osho quotes in Hindi about life
तीसरा प्रेम है विचारों का, मन का प्रेम.
जिसे हम कहते हैं मैत्री भाव. यहाँ देह का सवाल नहीं है. वस्तु का भी सवाल नहीं है. मन आपस में मिल गए तो मित्रता हो जाती है. मन के तल का प्रेम, विचार के तल का प्रेम दोस्ती है.
Osho thoughts in hindi about love
चौथा है हृदय के तल पर, जिसे हम कहते हैं- प्रीति.
सामान्यतः हम इसे ही भावनात्मक प्रेम कहते हैं. उसे यहाँ बीच में रख सकते हैं, चौथे सोपान पर; क्योंकि तीन रंग उसके नीचे हैं, तीन रंग उसके ऊपर हैं.
तो चौथा है हृदय के तल पर प्रीति का भाव; अपने बराबर वालों के साथ हृदय का जो संबंध है- भाई-भाई के बीच, पति-पत्नी के बीच, पड़ोसियों के बीच. इसके दो प्रकार और हैं- अपने से छोटों के प्रति वात्सल्य भाव है, स्नेह है. अपने से बड़ों के प्रति आदर का भाव है; ये भी प्रीति के ही रूप हैं.
Osho quotes in Hindi about life
पांचवें प्रकार का प्रेम आत्मा के तल का प्रेम है.
इसमें भी दो प्रकार हो सकते हैं. जब हमारी चेतना का प्रेम स्वकेंद्रित होता है तो उसका नाम ध्यान है. और जब हमारी चेतना परकेंद्रित होती है, उसका नाम श्रद्धा है. गुरु के प्रति प्रेम श्रद्धा बन जाता है.
Osho Hindi collection
छठवें तल का प्रेम ब्रह्म से
चेतना के बाद छठवें तल का प्रेम घटता है जब हम ब्रह्म से, परमात्मा से परिचित होते हैं. वहाँ समाधि घटित होती है.
वह भी प्रेम का एक रूप है. अतिशुद्ध रूप. अब वहाँ वस्तुएं न रहीं, देह न रही. विचारों के पार, भावनाओं के भी पार पहुंच गए. तो समाधि को कहें पराभक्ति, परमात्मा के प्रति अनुरक्ति.
Osho Pravachan hindi
उसके बाद अंतिम एवं सातवां प्रकार है- अद्वैत की अनुभूति.
कबीर कहते हैं- प्रेम गली अति सांकरी ता में दो न समाई. जब अद्वैत घटता है तो न मैं रहा, न तू रहा; न भगवान रहा, न भक्त बचा. कोई भी न बचा. वह प्रेम की पराकाष्ठा है.
ये सात रंग हैं प्रेम के इंद्रधनुष के, ऐसा समझें.
— ओशो
ओशो के सभी प्रवचन की सूची के लिए क्लिक करें
No comments:
Post a Comment