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धार्मिक कथा-देवताओं का घमण्ड
यह प्रेरक कथा केन उपनिषद से ली गई है. इस कथा के अनुसार बिना ईश्वर की मर्जी के एक तिनका भी नहीं हिल सकता है. देवताओं और असूरों के बीच महा संग्राम हुआ और देवताओं ने अपने पराक्रम से असूरों का विनाश कर दिया.
धार्मिक कथा सागर
इन्द्र के साथ ही अग्नि और वायु की वीरता की वजह से असुरों का नाश हो गया और उन्हें पाताल लोक के लिए पलायन करना पड़ा. देवताओं के इस विजय से उनकी ख्याती तीनो लोको में फैल गई. असुरों से परेशान लोगों ने देवताओं की स्तुति में गीत गाए और उनकी अर्चना की.
लंबे समय से असुरों से त्रस्त भूलोक और स्वर्गलोक को राहत महसूस हुई. चारों ओर देवताओं की जय-जय कार होने लगी. देवताओं की प्रशंसा इतनी ज्यादा होने लगी कि देवताओं में अभिमान आ गया. इन्द्र की सभा में सिर्फ उनकी प्रशंसा के गीत ही गाए जाने लगे. देवताओं को लगा कि वे अब अजेय हो चुके हैं और उनको किसी बात की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है.
ज्ञान वाली कहानी
इंद्र की सभा में अग्नि और वायु को उच्च स्थान प्रदान किया गया. देवता अपने कर्तव्य से विमुख हो गए. उनका अधिकांश समय विलास में गुजरने लगा. अभिमान ने उनकी आंखों पर पर्दा डाल दिया. देवताओं की प्रतिष्ठा प्रभावित होने लगी लेकिन उन्होंने इसकी कोई परवाह नहीं की.
ईश्वर ने देवताओं को मार्ग पर लाने का निश्चय किया और जब एक दिन इंद्र की सभा सजी हुई थी तो आसमान से एक दैवीय यक्ष पुरूष नीचे उतरा. उसका तेज इतना अधिक था कि देवता उसे अपनी आंखो से देख नहीं पा रहे थे.
यक्ष पुरूष का तेज देवताओं को जलाए दे रहा था. इंद्र ने अग्नि को आदेश किदया कि वह पता करे कि आखिर यह दैवीय पुरूष कौन है जिसके तेज के आगे अग्नि का तेज फीका पड़ गया है. अग्नि यक्ष के पास जाने लगे लेकिन उनकी ज्वाला से अग्नि का शरीर झुलसने लगा.
अग्नि ने यक्ष पुरूष से प्रश्न किया कि वह कौन है? यक्ष पुरूष ने अग्नि से परिचय पूछा तो अग्नि ने कहा कि वह दुनिया को तेज प्रदान करने वाले देवता अग्नि है, जिनकी वजह से यज्ञ कर्म सम्पन्न होते हैं और जिनकी वजह से सूर्य और तारो को अपना तेज मिलता है. अग्नि की वाणी में अहंकार दिख रहा था.
धार्मिक विचार
यक्ष पुरूष ने कहा कि मैं आपकी बात को कैसे मान लूं. ऐसा करें मैं आपको एक तिनका देता हूं इसे जला कर दिखाएं तो आपकी शक्ति का लोहा मानूं और ऐसा कहके उन्होंने एक तिनका अग्नि को दिया. अग्नि ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी लेकिन वे एक चिंगारी पैदा नहीं कर पाए जिससे वह तिनका जल सके. जब यक्ष पुरूष के दिए तिनके को अग्नि नहीं जला सके तो लौट आए.
देवताओ ने देखा कि अग्नि अपना तेज खो चुके हैं. उनका मुख पीला पड़ चुका है. अग्नि का यह हाल देखकर इंद्र ने अपने दूसरे योद्धा वायु से कहा कि वह पता लगाए कि वह यक्ष पुरूष कौन है. वायु यक्ष पुरूष के पास पहुंचे तो उनकी गति भी अग्नि के समान हो गई और यक्ष पुरूष के तेज से उनका शरीर झुलसने लगा. वायु से जब यक्ष पुरूष ने परिचय पूछा तो वायु ने अभिमान से कहा कि वह वायु हैं, जिनकी वजह से पूरी दुनिया में जीवन व्याप्त हैं. वे अगर अपनी गति से चले तो विनाश फैला दे और प्रेम से चले तो जीवन का विस्तार कर दें.
पौराणिक कहानियाँ
यक्ष पुरूष ने वायु से कहा कि अभी थोड़ी देर पहले ही आपके मित्र अग्नि से एक तिनका जल नहीं पाया था. अगर आपमें सामथ्र्य हैं तो इस तिनके को अपने स्थान से हिला दे, मैं आपके सामथ्र्य का लोहा मान जाउंगा. वायु ने प्रचंग वेग धारण किया लेकिन वे तिनके को टस से मस न कर पाए. थोड़ी ही देर में उनकी गति जवाब दे गई और पूरी दुनिया को चलाने वाले वायु देव स्वयं थक कर परास्त हो गए.
वायु की दुर्दशा देकर इंद्र की सभा में भय व्याप्त हो गया. अब इंद्र के सामने दुविधा पैदा हो गई कि उन्हें क्या करना चाहिए. ऐसे में देवताओं के गुरू बृहस्पति ने उनसे कहा कि हे राजन! अभिमान ने आप देवताओं की बुद्धि का हरण कर लिया है. इस संकट की घड़ी में आपको शिव भार्या मां पार्वती ही निकाल सकती हैं. उनका स्मरण करें. उनसे सहायता मांगे.
इंद्र ने जगत जननी का स्मरण किया. अपने पुत्रों की सहायता करने के लिए मां सदैव आती हैं. इस बार भी आई. जब इंद्र ने उस दैवीय पुरूष के संबंध में मां से प्रश्न किया तो मां ने उत्तर दिया कि यक्ष पुरूष के रूप में स्वयं साक्षात ब्रह्म प्रकट हुए हैं. जिनकी इच्छा के बिना इस संसार में एक तिनका तक नहीं हिल सकता. देवताओं के अभिमान की वजह से उन्हें यहां आना पड़ा.
इंद्र तुरंत यक्ष पुरूष के पास पहुंच गए और देवताओं की ओर से क्षमा याचना करने लगे. उन्होंने विनती करते हुए कहा कि हे भगवन हमसे महापाप हुआ. आगे से हम अभिमान से कोसो दूर रहेंगे. उस दिन के बाद देवताओं ने स्वयं को अभिमान से मुक्त कर अपने कर्तव्य निर्वहन का कार्य शुरू कर दिया.
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