Motivational Story Ravindranath Tagore |
Motivational Story: Ravindranath Tagore
ओशो की कहानियां- रविन्द्रनाथ टैगोर की प्रेरक कथा
रवींद्रनाथ मरणशैया पर थे. उनके एक मित्र ने उनसे कहा कि आप धन्यभागी हैं. आपको तो दुखी नहीं मरना चाहिए! क्योंकि रवींद्रनाथ की आंखों से आंसू झर रहे थे.
मित्र ने कहा, मैं तो सोचता था कि तुम तो कृतकृत्य हो गए. तुमने छह हजार गीत गाए! दुनिया के किसी कवि ने इतने गीत नहीं गाए. कालिदास और भवभूति, और शेक्सपीयर और शेली--सब पीछे पड़ गए.
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शेली ने दो हजार गीत गाए हैं. वह पश्चिम का सबसे बड़ा कवि है--संख्या की दृष्टि से--महाकवि है. रवींद्रनाथ ने उसी कोटि के छह हजार गीत गाए हैं, जो सब संगीत में बंध सकते हैं; जो छंद-मात्रा में आबद्ध हो सकते हैं; जो गीत से, शब्द से रूपांतरित हो कर संगीत बन सकते हैं.
इतना विराट दान तुमने जगत को दिया। तुम धन्यभागी हो, मित्र ने कहा, तुम किसलिए रो रहे हो!
रवींद्रनाथ ने कहा, ठहरो, तुम मेरी बात समझे नहीं. मैं इसलिए रो रहा हूं: मैं प्रार्थना कर रहा हूं कि हे प्रभु, अभी तो साज बिठा पाया था। अभी गीत गाया कहां! और यह विदा का क्षण आ गया! यह कोई बात हुई! यह कैसा अन्याय? जिंदगी भर तो मैं साज बिठाता रहा...
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साज बिठाना जानते हो न! जब तबलची ले कर अपनी हथौड़ी और तबले को ठोंक-ठोंक कर साज बिठा रहा होता है. जब सितारवादक तारों को कस-कस कर उस जगह ला रहा होता है, उस स्वर में, जो न तो बहुत तना हो, न बहुत ढीला हो. क्योंकि तार बहुत ढीले हों, तो संगीत पैदा नहीं होता. और तार बहुत खिंचे हों, तो तार टूट ही जाएंगे; संगीत क्या पैदा होगा--विसंगीत पैदा होगा.
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तारों को लाना पड़ता है उस मध्य में--बुद्ध ने कहा है: मज्झिम निकाय--उस ठीक मध्य बिंदु पर, जहां न तो तार बहुत कसे होते हैं, न बहुत ढीले होते हैं. न कसे, न ढीले--जहां कसना और ढीला होना दोनों का अतिक्रमण हो जाता है। तार जब परिपूर्ण स्वस्थ होते हैं--न यह अति, न वह अति, जब पेंडुलम घड़ी का बीच में रुक गया होता है, तो घड़ी रुक जाती है. ऐसे ही जब तार बिलकुल मध्य में हो जाते हैं, तब संभावना है संगीत के जन्म की.
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रवींद्रनाथ ने कहा कि मैं तो अभी सितार के तार बिठा पाया था. तबले को ठोंक-ठोंक कर रास्ते पर लाया था बामुश्किल! ये छह हजार गीत उस गीत को गाने की कोशिश में गाए हैं--जो अब तक मैं गा नहीं पाया. ये छह हजार असफलताएं हैं. ये छह हजार असफल प्रयास हैं. एक गीत गाना चाहता हूं.
बस, एक गीत. मगर जब भी गाता हूं, कुछ का कुछ हो जाता है!
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गहला तेता गाया! बहुत गाया गया है. गीत एक है. सत्य एक है. लेकिन कोई अब तक उसे कह नहीं पाया. कोई कभी कह भी न पाएगा. रवींद्रनाथ नाहक रो रहे थे. रवींद्रनाथ को बुद्धत्व का कोई अनुभव नहीं था, नहीं तो नहीं रोते. जानते इस सत्य को कि उस गीत को गाया नहीं जा सकता. हां, जितना बने, उतना गा दो. मगर यह आशा मत करो कि कभी पूर्ण रूप से सत्य को शब्द में बांधा जा सकेगा. न उपनिषद बांध पाते हैं, न ब्रह्मसूत्र, न कुरान; कोई नहीं बांध पाता. हां, जिससे जितना बन सका; जिसमें जितनी सामर्थ्य थी--उसने गुनगुनाने की कोशिश की है.
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अनुकंपा है कि बुद्ध बोले, कि मोहम्मद गाए. अनुकंपा है. लेकिन सत्य तो अनुभव है. जैसे ही शब्द में आया कि दो हो गया--दुई हो गई! और जैसे ही किसी को कहा--तैत्र हो गया! और जैसे ही किसी ने सुन कर उसकी व्याख्या की--बात और बिगड़ गई!
गीता की हजार व्याख्याएं उपलब्ध हैं! बात बिगड़ती ही चली जाती है. टीकाओं पर टीकाएं होती रहती हैं! बात बिगड़ती ही चली जाती है.
इसीलिए जब कोई बुद्धपुरुष जीवित होता है, तब जो उसके निकट होते हैं, बस, वे ही थोड़ा-बहुत स्वाद ले लें, तो ले लें. बाद में तो बात बिगड़ती ही जाएगी. जितनी देर होती जाएगी, उतनी बिगड़ती जाएगी.
इसलिए धर्म जितना पुराना होता है, उतना ही सड़ जाता है. धर्म तो नया हो, अभी-अभी अनुभव के सागर में जिसने डुबकी मारी है, जो अभी-अभी मोती लाया हो--शायद कुछ थोड़ा गुनगुना पाए; शायद थोड़ा कुछ इशारा कर पाए लेकिन जितना पुराना हो जाता है, उतना ही सड़ जाता है.
हिंदू-धर्म का यही दुर्भाग्य है कि यह सबसे पुराना धर्म है पृथ्वी पर. इसलिए इसकी सड़ांध गहरी है. यह भूल ही गया नया होना. इसे अपनी काया बदलनी है बार-बार. यह कायाकल्प की प्रक्रिया भूल गया और जब भी इसकी कायाकल्प करने की किसी ने चेष्टा की, तो इसने इनकार कर दिया.
हम मुर्दे के पूजक हो गए. हमने बुद्ध को इनकार कर दिया. महावीर को इनकार कर दिया. हमने कबीर को इनकार कर दिया; हमने नानक को इनकार कर दिया. काश! हम बुद्ध को इनकार करते, तो बुद्ध उपनिषदों को फिर जन्म दे जाते. काश! हम कबीर को इनकार न करते, तो कबीर ने फिर बुद्ध को पुनरुज्जीवित कर दिया होता. काश! हम नानक को इनकार न करते, तो बात फिर निखर-निखर आती.
धर्म का रोज पुनर्जन्म होना चाहिए. जैसे पुराने पत्ते गिरते जाते हैं और नए पत्ते आते चले जाते हैं. जैसे नदी की धार. पुराना जल बहता जाता है और नया जल उसकी जगह लेता जाता है. धार रुकी--कि सड़ी. धार रुकी--कि सरिता मरी. फिर डबरा हुआ। बहने दो। बहते रहने दो.
ओशो
ज्यूं था त्यूं ठहराया
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