osho stories-Guru ke Mahima |
Motivational Story On Guru by Osho
ओशो की कहानियां— गुरू की महिमा
एक युवक एक तिब्बती मानेस्ट्री में रह कर मेरे पास आया. मैंने उससे पूछा, तूने वहां क्या सीखा? क्योंकि वह जर्मन था और दो साल वहां रह कर आया था। उसने कहा, कि पहले तो मैं बहुत हैरान था, कि यह क्या पागलपन है! लेकिन मैंने सोचा, कुछ देर करके देख लें
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फिर तो इतना मजा आने लगा. गुरु की आज्ञा थी, कि जहां भी वह मिले उसको झुकूं, फिर धीरे-धीरे जो भी आश्रम में थे, जो भी मिल जाते! साष्टांग दंडवत में इतना मजा आने लगा, कि फिर मैंने फिक्र ही छोड़ दी कि
क्या गुरु के लिए झुकना! जो भी मौजूद है.
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फिर तो मजा इतना बढ़ गया, कि लेट जाना पृथ्वी पर सब छोड़ कर. ऐसी शांति उतरने लगी, कि कोई भी न होता तो भी मैं लेट जाता. साष्टांग दंडवत करने लगा वृक्षों को, पहाड़ों को। झुकने का रस लग गया.
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तब गुरु ने एक दिन बुला कर मुझे कहा, वह युवक मुझसे बोला, अब तुझे मेरी चिंता करने की जरूरत नहीं. अब तो तुझे झुकने में ही रस आने लगा. हम तो बहाना थे, कि तुझे झुकने में रस आ जाए. अब तो तू किसी के भी सामने झुकने लगा है और अब तो ऐसी भी खबर मिली है, कि तू कभी-कभी कोई भी नहीं होता और तू साष्टांग दंडवत करता है. कोई है ही नहीं और तू दंडवत कर रहा है.
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उस युवक ने मुझे कहा, कि बस, झुकने में ऐसा मजा आने लगा. जर्मन अहंकार संसार में प्रगाढ़ से प्रगाढ़ अहंकार है. समस्त जातियों में जर्मन जाति के पास जैसा प्रगाढ़ अहंकार है, वैसा किसी के पास नहीं है इसलिए दो महायुद्ध वे लड़े हैं और कोई नहीं जानता, कि कभी भी वे युद्ध के लिए तैयार हो जाएं.
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यह जर्मन युवक झुकने को भी तैयार नहीं था. यह बात ही फिजूल लगती थी, लेकिन फंस गया। लेकिन जब झुका, तो रस आ गया. एक दफा झुकने का रस आ जाए, एक दफा तुम्हें यह मजा आने लगे, कि नाकुछ होने में मजा है, मिटने में मजा है, खोने में मजा है, तो गुरु हट जाता है। गुरु बुला कर तुम्हें कह देता है, बात खतम हो गई.
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अब तुम मुझे परेशान न करो. क्योंकि तुम्हारे दंडवत करने से तुमको ही परेशानी होती है, तुम समझ रहे हो. तुमसे ज्यादा गुरु को परेशानी होती है. क्योंकि तुम्हारे लिए तो एक गुरु है, गुरु के लिए हजार शिष्य हैं. हजार का झुकना, और हजार के नमन को हजार बार स्वीकार करना–गुरु की भी तकलीफ है.
जैसे ही तुम तैयार हो जाते हो, कि झुकना सीख गए; गुरु कहता है, अब भीतर चले जाओ, अब दरवाजे पर मत अटको. अब मुझे छोड़ो. एक दिन गुरु कहता है, मुझे पकड़ लो अनन्यभाव से. अगर तुमने पकड़ लिया तो एक दिन गुरु कहता है, अब मुझे तुम बिलकुल छोड़ दो, क्योंकि अब परमात्मा पास है, अब तुम मुझे मत पकड़े रहो.
कबीर ने कहा है,
*"गुरु, गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पांव।”बलिहारी गुरु आपकी दियो गोविंद बताय।"*
दोनों खड़े हैं सामने। ऐसी घड़ी आती है भक्त को एक दिन, जब गुरु के पास झुका बैठा है भक्त और परमात्मा भी सामने आ जाता है. तब सवाल उठता है, किसके चरण छूऊं?
“बलिहारी गुरु आपकी”
तो कबीर कहते हैं गुरु ने इशारा कर दिया, कि परमात्मा के चरण छू और मुझे छोड़. बहुत मेरे चरण पकड़े, अब बस बात खतम हो गई. यह तो सिर्फ एक अभ्यास था. जैसे तैरने का अभ्यास किसी को कराते हैं, तो उथले पानी में कराते हैं. कहीं तुम डूब न जाओ. गुरु यानी उथला पानी. फिर जब तैरना आ गया तो गुरु कहता है, जब जरा गहराइयों में जाओ. गुरु यानी अभ्यास का स्थल.
ओशो_कहे कबीर दीवाना
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