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भगवान परशुराम की कथा


परशुराम जी की कथा से कौन परिचित नहीं है. इन्हें ब्राह्मण शिरोमणि माना जाता है, इन्हें भगवान विष्णु का 6ठवां अवतार भी माना जाता है. भगवान परशुराम के पितृभक्ति की कथा बहुत प्रसिद्ध है. उनके पिता का नाम महर्षि जमदग्नि और माता का नाम रेणुका था. परशुराम जी को अपने पिता पर बहुत भक्ति थी और उनका हरेक आदेश वे बिना किसी प्रश्न के पूरा किया करते थे.


परशुराम जी की पितृभक्ति की कहानी


एक समय की बात है जब ब्रहर्षि जमदग्नि की अपनी पत्नी रेणुका से ठन गई. महर्षि जमदग्नि के परशुराम के अतिरिक्त भी कई और पुत्र थे. बारी—बारी से उन्होंने सभी पुत्रों से अपनी माता का वध करने को कहा. सभी पुत्रों ने अपने पिता की आज्ञा पालन करने से साफ मना कर दिया कि वे मातृवध का कलंक अपने सिर पर कभी नहीं लेंगे. तभी परशुराम जी वहां उपस्थित हुये और जब पिता ने उन्हें आदेश दिया कि वे अपनी माता का वध करें तो परशुराम ने बिना कोई प्रश्न पूछे अपनी माता का सिर धड़ से अलग कर दिया.

अपने पुत्र की पितृभक्ति को देखकर महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुये और उन्होंने पुत्र से वरदान मांगने को कहा तो परशुराम ने अपनी माता का जीवन मांग लिया. महर्षि जमदग्नि ने रेणुको को ​फिर से जीवित कर दिया. इस तरह पितृभक्ति में परशुराम एक मिसाल बन गये.

परशुराम जी और भगवान राम की कहानी


परशुराम जी अपने क्रोध के लिए पूरे जगत् में विख्यात थे. जब राम ने सीता स्वयंवर के दौरान शिव धनुष का भंजन किया तो वे क्रोधित हो गये लेकिन राम के मीठे वचनों को सुनकर शांत हो गये और उन्हें गांडिव नाम का धनुष उपहार में दिया जो आगे चलकर अर्जुन के पास आया.

परशुराम जी और भीष्म की कहानी


परशुराम जी ने देवव्रत भीष्म को भी शस्त्र की शिक्षा दी. देवव्रत भीष्म इतने अच्छे शिष्य बने कि वे समकालीन भारत में अजेय हो गये. एक बार जब राजकुमारी अंबा परशुराम जी के पास न्याय मांगने गई तो उन्होंने भीष्म को अंबा से विवाह करने के लिए कहा. भीष्म ने जब इस बात से इंकार कर दिया तो दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ. इस युद्ध में न तो परशुराम की विजय हुई और न ही भीष्म की पराजय. उसी समय परशुराम जी ने प्रण लिया कि वे किसी क्षत्रिय को शस्त्र की शिक्षा नहीं देंगे.



परशुराम जी और कर्ण की कहानी


कर्ण जब परशुराम जी के पास शिक्षा लेने गया तो उसने अपनी जाति ब्राह्मण बताई और उनसे शिक्षा ग्रहण की. एक बार जब परशुराम जी कर्ण की गोद में सिर रख कर सो रहे थे और एक जहरीले कीड़े के काटने पर भी अपने गुरू की नींद भंग न हो जाये इस डर से कर्ण ने कोई आवाज नहीं की. जागने पर गुरू परशुराम को जब यह पता चला तो उन्हें यकीन हो गया कि इतना विलक्षण बालक क्षत्रिय ही हो सकता है. ऐसे में उन्होंने क्रोध में आकर कर्ण को श्राप दे दिया कि जब उसे उनकी सिखाई विद्या की सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी तब वह उसे भूल जायेगा. कर्ण के साथ भी यही हुआ और अर्जुन के साथ होने वाले निर्णायक युद्ध में वह अपनी​ विद्या को भूल गया. इस वजह से महाभारत के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ.




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