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असंग देव जी के प्रवचनः कैसे बनाए जीवन को तनाव मुक्त
संत श्री असंग साहेब जी की जीवनी
संत श्री असांग साहेब जी 20 अक्टूबर 1966 को श्री महाद्दीन प्रसाद के पुत्र के रूप में पैदा हुए थे, जो सहानिपुर गांव में भारत के उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में स्थित है. पास के गांव से हाईस्कूल शिक्षा पूरी करने के बाद, गुरु जी ने कानपुर विश्वविद्यालय से एमए पूरा किया और मेरठ विश्वविद्यालय से डिग्री भी ली.
गुरु जी ने 20 जनवरी 1987 को पहली बार श्री शमा देव जी से मुलाकात की. उन्होंने 7 जून 1987 से ब्रह्मचार बन कर श्वेत वस्त्र धारण किए. उन्होंने 7 जुलाई 1989 को संत शमा साहेब जी के आशीर्वाद के साथ संत जीवन में प्रवेश किया.
करोड़ों लोगों को उनके प्रवचनों द्वारा लाभान्वित किया जाता है जो आस्था टीवी चैनल पर 9:00 बजे से शाम 9:30 बजे तक प्रसारित होता है. आपके सत्संग कार्यक्रमों की औसत संख्या 30 हजार से 50 हजार तक होती है. असंग साहेत जी की प्रेरणा से लोग शराब और धूम्रपान जैसे व्यसनों से छुटकारा पा लेते हैं.
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असंग देव जी कहते हैं- संत कबीर से किसी ने पूछा कि संसार में मनुष्य तनाव में क्यों रहता है. मनुष्य इतना समझदार होते हुए भी तमाम व्यस्न करता है. यह बुद्धिमान इंसान छोटी सी बीड़ी का गुलाम हो जाता है, शराब का गुलाम हो जाता है, जुआ खेलते-खेलत द्रोपदी को भी हार जाता है. ताश के पन्नो को फेंकते-फेंकते अपने अमूल्य समय को बर्बाद करता है. आखिर ऐसा क्यों?मां पर प्रेरक कथन और सुंदर कोट्स
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मनुष्य के पास इतना ज्ञान है तो वह इतना भ्रम में क्यों पड़ा रहता है. भूत-प्रेत, चुड़ैल, साढ़े साती, अन्धविश्वासों में डूबा हुआ इंसान कभी कैलाश मानसरोवर जाता है तो कभी साई बाबा तो कभी चार धाम जाता है, तो कभी सिनेमा देखता है और घूमता है. कभी सोचता है कि अच्छे कपड़े पहन लूं तो शांति मिलेगी लेकिन शांति का रिश्ता अच्छे मकान से नहीं, अच्छी गाड़ी से नहीं, अच्छी साड़ी से नहीं, शांति का रिश्ता कैलाश मानसरोवर में घूमने से भी नहीं है. देश विदेश की यात्राए कर डालो शांति नहीं मिलेगी. स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि मनुष्य पूरी दुनिया घूम ले तो भी शांति नहीं मिलेगी लेकिन जिस दिन उसके मन में पवित्रता आ जाएगी, उसे घर बैठे शांति प्राप्त हो जाएगी.
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अब एक दूसरा प्रश्न चाणक्य हमारे देश के बहुत बड़े नीतिकार हुए उनसे पूछा गया कि वह कौनसा गृहस्थ आश्रम है जिसे धन्य कहा जा सकता है. अर्थात गृहस्थ आश्रम को ऊंचा उठाने और सुख शांति से निभाने के लिए कौनसा उपाय करना चाहिए. दुनिया में ज्यादातर गृहस्थ बैठे हुए है, विरक्त तो मुठ्ठी भर ही है.
सानन्दं सदनं सुताश्च सुधियः कान्ता प्रियभाषिणी
सन्मित्रं सधनं स्वयोषिति रतिः चाज्ञापराः सेवकाः
आतिथ्यं शिवपूजनं प्रतिदिनं मिष्टान्नपानं गृहे
साधोः सङ्गमुपासते हि सततं धन्यो गृहस्थाश्रमः
इसका अर्थ है घर में आनंद हो, पुत्र बुद्धिमान हो, पत्नी प्रिय बोलनेवाली हो, अच्छे मित्र हो, धन हो, पति-पत्नी में प्रेम हो, सेवक आज्ञापालक हो, जहाँ अतिथि सत्कार हो, ईशपूजन होता हो, रोज अच्छा भोजन बनता हो, और सत्पुरुषों का संग होता हो, ऐसा गृहस्थाश्रम धन्य है.
इस सबके लिए क्या करना होता है, यह भी चाणक्य भी बताते हैं कि घर में आनंद कैसे आएगा. सामान तो बाजार से आ सकता है लेकिन आनंद कैसे आएगा. जिस घर के बच्चे समझदार है, जिस घर के पुत्र आज्ञाकारी है, जिस घर की संतान व्यसन नहीं करती है, उस घर में आनंद रहता है. संतान यदि समझदार है तो आपके संताप को कम कर सकती है और यदि संतान नासमझ है तो आपके संताप को दोगुना बढ़ा सकती है. मनुष्य जितना अपने शत्रु से दुखी नहीं है, उससे अधिक अपने पुत्र से दुखी है. शत्रु तो कभी-कभी दुख देता है लेकिन पुत्र तो दिन-रात भाला भोंकता रहता है. अगर नासमझ पुत्र हो और पुत्र कैसे समझदार होगा इसके लिए एक छोटी सी कथा सुनो.
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एक राजघराने में एक दासी काम करती थी. उसने देखा कि राजासाहब परेशान है तो उसने पूछा कि राजा साहब मैं कई दिनों से देख रही हूं कि आपका मन चिंतित दिखाई दे रहा है और उसका क्या कारण है तो राजा ने कहा कि एक ही राजा है और वह व्यस्नो में फंस गया है. दुनिया में ऐसा कोई व्यस्न नहीं है जो वह नहीं करता है. समझाने पर समझता नहीं है और सख्त होने पर मरने की धमकी देता है. मरने की धमकी देकर बुरे कर्म करने पर आप जिंदा ही मुर्दा हो. अगर आप टाइट नहीं किए तो आपके जिंदगी का इंजन फेल हो जाएगा.
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मैं अपनी जिंदगी की बात बताता हूं आश्रम आया तो आश्रम के संचालक बहुत सख्त थे. हम उनसे बहुत डरते थे और सबसे ज्यादा वे मुझे ही डांटते थे और कहते थे कि जाओ पढ़ो और खुद कभी एक क्लास नहीं पढ़ी लेकिन मुझे पढ़ने के लिए कहते है. उनकी ही सख्ती की वजह से एक दिन में 54 दोहे और 90 श्लोक तक याद कर लेते थे. उनकी कृपा है कि आज मैं सत्संग करने लायक हूं. अगर आपके माता-पिता सख्त है तो खुश होइए क्योंकि वे टाइट है तभी आप राइट है. मैं माता-पिता से अनुरोध करूंगा कि सख्ती की सीमा रखो. टाइट करो तो कुम्हार की तरह टाइट करो. कुम्हार क्या करता है यह जीवन मंे उतारने जैसी बात है. कुम्हार जब घड़ा बनाता है तो उसे ऊपर से पीटता है लेकिन अंदर से हाथ लगाता है. कुम्हार से पूछते हैं तो कहता है कि पीटता इसलिए हूं कि यह मार सहने के लिए मजबूत हो जाए. मार सह कर भी टिका रहे और हाथ इसलिए लगाता हूं कि अभी यह कच्चा है.
बेटे को इतना भी लाडला भी न बनाना कि भविष्य में किसी लायक न रहे और इतना भी मत पीटना कि अभी ही हार जाए. परिवार हो या कोई संगठन है तो उसे भाव और सुंदर स्वभाव से डील किया जा सकता है. बिना करूणा भाव के कोई आपकी मानने वाला नहीं है. इसलिए सबसे साथ प्रेम से रहिए.
Jai sree krishna
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