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Folk tales of India in hindi- भारत की लोक कथाएं

Indian folk tales in Hindi-भारत की लोककथाएं-भारत की लोक कहानियांः हिमालय का तोता

लोककथा में पशु पक्षियों का बहुत प्रयोग होता रहा है. यहां दी गई लोककथा का केन्द्रीय पात्र एक तोता है जो हिमालय का रहने वाला है और बहुत बुद्धिमान है. कथा इस प्रकार है.

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बहुत समय पहले की बात है. रत्नागिरी का राजा देवसेन बूढ़ा हो चला था और उसके सामने यक्ष प्रश्न था कि वह अपने तीन बेटो में से किसे राज्य का उत्तराधिकारी बनाए ताकि उसके राज्य की जनता सदैव प्रसन्न रहे और प्रजा को एक न्यायप्रिय राजा प्राप्त हो सके. तीनो की राजकुमार विद्या और बल में एक दूसरे से बढ़ कर थे तो उनमें से एक को चुनना बहुत ही मुश्किल काम था. राजा ने उनकी न्यायप्रियता की परीक्षा लेने की सोची.


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राजा ने तीनो कुमारों को बुला भेजा. जब तीनो कुमार आ गए तो उन्होंने तीनों से एक ही प्रश्न किया कि अगर आपका कोई विश्वासपात्र आपकी हत्या करने का प्रयास करे तो उसके साथ क्या व्यवहार किया जाना चाहिए. पहले राजकुमार ने कहा कि उसे निश्चय ही मृत्युदण्ड दिया जाना चाहिए. दूसरे कुमार ने कहा कि सिर्फ उसे ही नहीं बल्कि उसे ऐसा करने के लिए प्रेरित करने वाले को भी मृत्युदण्ड दे देना चाहिए. तीसरे कुमार ने कहा कि किसी को भी मृत्युदण्ड देने से पहले हमे यह जानना जरूरी है कि आखिर माजरा क्या है ताकि गलती से कोई निर्दोष दंडित न हो जाए. कुमार ने कहा कि महाराज अपनी बात समझाने के लिए मैं आपको हिमालय के तोते की कथा सुनाता हूं.

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एक राजा के पास हिमालय में वास करने वाले दिव्य तोतो में एक था. वह शास्त्रों का ज्ञाता था और बहुत बुद्धिमान था. राजा उससे अपने राजकार्य के लिए सुझाव मांगता था और वह कठिन से कठिन समस्याओं को भी चुटकियों में सुलझा लेता था. राजा भी अपने इस बुद्धिमान साथी का बहुत सम्मान किया करता था. एक दिन हिमालय से तोते के पिता उससे मिलने के लिए आए और उससे मिलकर बहुत प्रसन्न हुए. दोनो में बहुत बातचीत हुई. पिता ने कहा कि हिमालय में तुम्हारी मां तुम्हे बहुत याद करती है. अगर तुम उससे चल कर मिल लो उसे बहुत अच्छा लगेगा. 

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तोते ने अपने पिता से कहा कि वह राजा का सेवक है और उसे बताए बिना वह उसके साथ नहीं जा सकता है. उसने राजा से आज्ञा मांगी तो राजा ने उसे 15 दिन के लिए हिमालय जाने की सहमति दे दी. तोते ने अपने माता-पिता के साथ हिमालय में बहुत सुख से 15 दिन बिताए और वापस आने की तैयारी करने लगा. तोते के पिता ने कहा कि तुम्हारे राजा ने तुम्हे यहां आने की अनुमति देकर बहुत उपकार का काम किया है. हम चाहते हैं कि उन्हें कोई अमूल्य उपहार दें. तोते के पिता ने कहा कि मैं उनके लिए देवताओं के बगीचे से यह अमरफल लाया हूं, इसको खाने से व्यक्ति कभी बूढ़ा नहीं होता है और पूरे जीवन युवा ही रहता है. तोता वह फल लेकर राजा की ओर उड़ चला लेकिन रास्ता लंबा था और जल्दी ही शाम हो गई.


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तोते ने एक पेड़ पर डेरा डाला लेकिन वह फल को किसी स्थान पर सुरक्षित रख देना चाहता था. जल्दी ही इसके लिए उसे एक पेड़ के तने में एक अच्छा कोटर मिल गया. उसने उसी कोटर में अमरफल रख दिया लेकिन उसे एक बात मालूम नहीं थी कि उस कोटर में एक नाग रहता था. नाग जब लौट कर आया तो उसने फल को देखा और उसे खाने के लिए अपने दांत उस पर गड़ा दिए. इस तरह नाग का कुछ विष फल में चला गया लेकिन नाग को फल का स्वाद पसंद नहीं आया. इसलिए उसने फल को छोड़ दिया.

सुबह तोते ने उस फल को लिया और राजा के पास पहुंच गया. उसने राजा को अमर फल दिया और उसकी खूबियां बताई. राजा उस फल को खाने से पहले उसे अपने सभी दरबारियों को दिखाना चाहता था इसलिए उसने सभा आयोजित की. जब राजा उस फल को खाने लगा तो उसके मंत्री ने सुझाव दिया कि उस फल का कुछ हिस्सा किसी जानवर को खिला कर देखना चाहिए ताकि अगर कोई नुकसान वाली बात हो तो उससे राजा बच सके. राजा को यह बात ठीक लगी. एक कौओ को फल का एक टुकड़ा दिया गया जिसकी फल खाते ही मौत हो गई.

यह देखकर राजा क्रोधित हो गया. मंत्रियों ने बताया कि यह अमरफल नहीं विषफल है और यह तोता राजा की हत्या करना चाहता है. राजा ने आदेश दिया कि तोते को मृत्युदण्ड दे दिया जाए और राजा के आदेश पालन करते हुए तोते को मार दिया गया. राजा के सैनिको ने उस विषफल को जमीन में दबा दिया ताकि कोई दूसरा उसे खाकर न मर जाए. कुछ दिनों बाद ही वहां एक पेड़ उग गया. सबको बता दिया गया कि यह विषफल का पेड़ है और उसका फल कोई न खाए. प्रजा ने फल खाना तो दूर वहां जाना तक छोड़ दिया.

राजा के राज्य में एक वृद्ध दंपति रहता था जिसकी कोई औलाद नहीं थी. बूढ़े होने की वजह से उनसे अब काम नहीं होता था और उनके खाने के भी लाले थे. बूढे़े ने सोचा कि क्यों न विषफल खाकर जान दे दी जाए क्योंकि भूखे मरने से अच्छा है कि कुछ खाकर मरा जाए. बूढ़ा आदमी जाकर उस पेड़ का फल ले आया और एक फल अपनी बीवी को दिया और एक खुद खाया और इस उम्मीद से सो गए कि कल सुबह तक मर जाएंगे. सुबह उठने पर चमत्कार हो गया. वे दोनो जवान हो गए थे. यह बात राजा को पता चली तो उन्होंने खुद सत्यता की जांच की. अब उन्हें इस बात का बहुत अफसोस हुआ कि उन्होंने अपने स्वामी भक्त तोते की जान ले ली जो उनका हित चाहता था.

राजकुमार ने अपनी बात दोहराई कि महाराज इसी वजह से पूरी बात जानने के बाद ही न्याय और अन्याय के निर्णय तक पहुंचना चाहिए. राजा को अपने लिए योग्य उत्तराधिकारी मिल गया था. उसी राजकुमार को राजा घोषित कर दिया गया.


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