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radha krishna prem kahani - 
कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी


कृष्ण और राधा का प्रेम भक्त और भगवान के अलौकिक प्रेम की कथा है. गोकुल के कान्हा और बरसाने की राधा का प्रेम हिंदू आधायात्मिक जगत के प्रेम तत्व का प्रतिनिधि है. कृष्ण जब बांसूरी बजाते तो राधा खींची चली आती. कृष्ण अपनी राधा से मिलने बरसाने जाते और राधा अपनी सखियों के साथ कृष्ण के दर्शन करने यमुना किनारे आती.

ग्वाल बाल मंडली के साथ कृष्ण होली खेलने बरसाने जाते और राधा की सखियां डंडो से कृष्ण सखाओं की खूब खबर लेती. वृंदावन का पत्ता—पत्ता, बूटा—बूटा उनके प्रेम का साक्षी है. रास रचैया ने ही वृंदावन के अरण्यों में ही रास रचाया. जहां से राधा और कृष्ण का अलौकिक प्रेम पूरे विश्व में व्याप्त हो गया. 


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कृष्ण गोकुल छोड़ मथुरा में आ गए. राधा और कृष्ण अलग हुए लेकिन सिर्फ दुनिया के लिए. राधा के हृदय में कृष्ण इस तरह बसे हुए थे कि राधा जब भी उनका स्मरण करती, वे उपस्थित हो जाते हैं. उनके प्रेम की पराकाष्ठा ही थी कि मथुरा के लोग कृष्ण को प्राप्त करने के लिए राधा नाम जपने लगे. कहने लगे राधा—राधा रटो, चले आएंगे बिहारी. राधा जी को निर्गुण ब्रह्म का ज्ञान देने के लिए उद्धव जी वृंदावन पहुंचे तो उन्हें राधा ही नहीं हरेक गोपी के साथ कृष्ण के साक्षात्कार हुए.

राधा और कृष्ण की प्रेम कथा कोई साधारण प्रेम कथा नहीं है. कृष्ण इस जगत का प्रतीक है तो राधा प्रकृति का. कृष्ण भुवन प्रकाश है तो राधा शक्तिमति. कृष्ण और राधा की कथा सिर्फ प्रारंभ की कथा नहीं है. यह कथा निरंतर हैं. कहते हैं कि जब महाभारत का युद्ध खत्म हुआ और कृष्ण द्वारिका में रहने लगे तो एक बार राधा जी उनसे मिलने के लिए आईं.

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रूकमिणी जी ने राधा जी के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था. उन्होंने राधा जी की बहुत आवभगत की. जब उन्हें दूध देने की बारी आई तो दूध कुछ ज्यादा गर्म हो गया. जिससे राधा जी का मूंह जल गया. जब वे यह बात कृष्ण को बताने गई तो क्या देखती हैं कि कृष्ण के सारे शरीर पर फफोले हैं. राधा और कृष्ण का प्रेम radha krishna ka pyar अनंत प्रेम का उदाहरण है. प्रेम इतना विराट और गहरा था कि कृष्ण राधा हो गए और राधा कृष्ण हो गई. दोनों के बीच का भेद ही समाप्त हो गया. कृष्ण सिर्फ कृष्ण नहीं रहे वे राधा वल्लभ हो गए. 



कौन थी राधा? history of radha rani in hindi


हम सभी ने राधा को कई मंदिरों में श्रीकृष्ण के साथ देखा है और जानते हैं कि वे प्रेम का सबसे शुद्ध रूप हैं. हम जानते हैं कि कृष्ण और राधा दिव्य प्रेमी हैं, लेकिन हम में से कई यह नहीं जानते कि राधा कौन थे और कृष्ण के नंदगांव छोड़ने के बाद उनके साथ क्या हुआ? नंदगांव छोड़ने के बाद क्या कृष्ण उससे मिले थे? उन्होंने धरती को कैसे छोड़ा? इन प्रश्नों के उत्तर बहुत स्पष्ट नहीं हैं कि राधा कौन था और वह इस धरती पर कैसे आई और क्यों?

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इस संदेह का कारण यह है कि राधा के बारे में हमारे पौराणिक ग्रंथों या पुराणों में बहुत कम जानकारी है. महाभारत, पद्म पुराण, श्रीमद् भागवत और हरिवंश जैसे किसी भी प्रमुख धार्मिक ग्रंथों में राधा का उल्लेख नहीं किया गया है. पहली बार जयदेव ने गीत गोविंद में उनके बारे में लिखा. इसके बाद निम्बार्क संप्रदाय ने लोगों को उनके बारे में प्रचार करना शुरू किया. इससे पहले किसी भी मंदिर में कृष्ण के साथ राधा की पूजा नहीं की गई थी. 

राधा का सबसे पहला उल्लेख ब्रह्म वैवर्त पुराण में मिलता है. लेकिन इसमें यह जानकारी नहीं दी गई है कि वे कौन थीं. कृष्ण के मथुरा जाने के बाद उसके साथ क्या हुआ, इसका उल्लेख भी नहीं किया गया है. 

राधा के जन्म की कथा radha krishna ki shadi kyun nahi hui


कहते हैं कि गोलोक में एक बार जब कृष्ण के परम मित्र सुदामा उनसे मिलने आए तो राधा जी ने कृष्ण को सुदामा से मिलने से रोक दिया. इससे सुदामा जी नाराज हो गए और उन्होंने राधा जी को श्राप दिया कि वे मृत्युलोक में कृष्ण के साथ जन्म लेंगी और उन्हें कृष्ण के विरह की वेदना को झेलना होगा. 

सुदामा का श्राप फलित हुआ और भाद्रपद अष्ठमी जिसे राधाष्ठमी भी कहते हैं को राधा जी का जन्म हुआ. उनका जन्म बरसाना गांव में हरने वाले वृषभानु और उनकी पत्नी कीर्ति के घर में हुआ था. कुछ कहते हैं कि उनकी मां का नाम कमलावती भी बताते हैं. कहा जाता है कि वृषभानु जब यमुना में स्नान कर रहे थे तो कमल के पंखुड़ियों में नवजात राधा जी उन्हें मिली थी.

राधा जी के बारे में यह कहा जाता है कि जब कृष्ण ने मृत्यु लोक का त्याग किया तब उन्होंने राधा जी का अपने वामांग यानि बाएं हिस्से में समाहित कर लिया.



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