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dharmik kahani-asthavakr ji ki katha-अष्टावक्र जी की कथा

dharmik kahani- अष्टावक्र जी की कथा

अष्टावक्र जी की कथा बहुत प्रसिद्ध है कि कैसे उन्होंने एक विद्वान का दर्प चूर किया. एक मुनि थे. मुनि का नाम कहोड़ था. कहोड़ बहुत बड़े विद्वान थे. कहोड़ की पत्नी का नाम सुजाता था. समय पर सुजाता गर्भवती हुई.

ज्ञान वाली कहानी

एक दिन कहोड़ मुनि अपने शिष्यों को वेद पढ़ा रहे थे. सहसा कोई बोल उठा- पिताजी, आप बराबर वेद पाठ करते तो हैं, पर वह ठीक-ठीक नहीं होता. वह कहोड़ मुनि का बालक था जो गर्भ से बोल रहा था.

कहोड़ मुनि क्रोधित हो गए. उन्होंने कहा कि अपनी मां के पेट से ही तू टेढ़ी-मेढ़ी बातें कर रहा है, जब पैदा होगा तो न जाने क्या करेगा. कहोड़ मुनि ने बालक को शाप दिया कि तू टेढ़ी-मेढ़ी बाते कर रहा है इसलिए तेरे शरीर के अंग आठ जगह टेढ़े-मेढ़े हो जाएंगे.

धार्मिक विचार

बालक के पैदा होने का समय जब निकट अया तब कहोड़ मुनि को धन की आवश्यकता पड़ी. कहोड़ मुनि धन के लिए राजा जनक के पास गए. जनक मिथिला के राजा थे. मिथिला बिहार प्रदेश में स्थित है. सीताजी मिथिला के राजा जनकजी की ही पुत्री थी. राजा जनक बहुत बड़े विद्वान थे. वे विद्वानों का बहुत अधिक सम्मान करते थे. उनके दरबार में बड़े-बड़े विद्वान रहा करते थे.

उन दिनो जनक की राजसभा में एक बहुत बड़ा विद्वान आया हुआ था. उसका नाम वेदी था. वेदी से शास्त्रार्थ में हार जाता था, वह उसे जल समाधि लेने पर विवश कर दिया करता था. कहोड़ मुनि भी वेदी से शास्त्रार्थ में हार गए और वेदी ने उन्हें प्रण के मुताबिक जल समाधि दिलवा दी. उधर सुजाता के गर्भ से एक विलक्षण बालक ने जन्म लिया. जिसका शरीर आठ जगह से टेेढ़ा था. बालक का नाम अष्ठावक्र रखा गया.

पौराणिक कहानियाँ

अष्टावक्र बहुत तेजस्वी और प्रकांड विद्वान साबित हुए. उन्होंने सभी शास्त्रों को आत्मसात कर लिया. ढेर सारी विद्याएं तो वह अपने मां के गर्भ से सीख कर ही पैदा हुए थे. 

अष्टावक्र जी जब बारह वर्ष के हुए तो एक दिन उन्होंने अपनी मां से कहा कि सबके पिता है, उनके पिता कहां चले गए हैं. पहले तो अष्टावक्र की माता ने टालने का प्रयास किया लेकिन अधिक जोर देने पर उन्हें बताना पड़ा कि वेदी नाम के एक प्रकांड विद्वान से शास्त्रार्थ हार जाने के कारण उन्हें जल समाधि लेनी पड़ी.

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अष्टावक्र ने अपनी माता से कहा कि शोक करने की आवश्यकता नहीं है, जीवन क्षणभंगुर है और ज्ञान कहीं से मिले ले लेना चाहिए. मैं भी राजा जनक की राजसभा में जाऊंगा और वेदी से शास्त्रार्थ करूंगा. 

अष्टावक्र उसी दिन अपने मामा श्वेतकेतु के साथ मिथिल के लिए चल पड़े. कई दिनांे की यात्रा के बाद अष्टावक्र राजा जनक की यज्ञशाला में पहुंचे लेकिन द्वारपाल ने उन्हें भीतर जाने से रोक दिया क्योंकि यज्ञशाला में केवल वृद्ध विद्वानों को जाने की आज्ञा थी.

अष्टावक्र जी ने का कि केवल बाल पक जाने से या अधिक उम्र होने से या अधिक धन होने से या अच्छे कुल में पैदा होने से कोई विद्वान नहीं हो जाता है. आखिर यह बात राजा जनक तक भी पहुंची कि एक बारह वर्ष का बालक अद्भुत ज्ञान की बाते कर रहा है. जनक ने दोनों बालको को अपने पास बुलाया.

अष्टावक्र ने राजा जनक से निवेदन किया कि वे कहोड़ मुनि के पुत्र अष्टावक्र है और वे उनके राज दरबार के पंडित वेदी से शास्त्रार्थ करने की इच्छा रखते हैं. जनक आश्चर्य में पड़ गए क्योंकि जिस विद्वान को बड़े-बड़े विद्वान नहीं हरा पाए उसे यह बालक चुनौती दे रहा है.

जनक ने अष्टावक्र की बात को टालने का प्रयास किया लेकिन वे अपनी बात पर अड़े रहे. आखिर जनक ने स्वयं कुछ प्रश्न बालक अष्टावक्र से किए और उनके उत्तर पाकर आश्चर्यचकित रह गए और समझ गए कि यह बालक विलक्षण प्रतिभा का धनी है. 

जनक ने अष्टावक्र और वेदी के शास्त्रार्थ का प्रबंध किया लेकिन बालक को चेताया कि अगर वह शास्त्रार्थ में हार जाता है तो शर्त के मुताबिक उसे जल समाधि लेनी पड़ेगी. 

राजा जनक के दरबार में अष्टावक्र और वेदी के शास्त्रार्थ को देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ पड़ी. अष्टावक्र जी ने ऐसे-ऐसे सवाल पूछे कि वेदी के पसीने छूट गए और उसे हार माननी पड़ी. वेदी को शर्त के मुताबिक जल समाधि लेनी थी.

अष्टावक्र जी बुद्धिमान होने के साथ ही संत भी थे. वे बदला लेने की प्रवृति से ऊपर उठ चुके थे. उन्होंने वेदी को जल समाधि लेने की शर्त से मुक्त कर दिया ताकि धरती से एक विद्वान असमय विदा न हो. चारो ओर अष्टावक्र जी की जय-जय कार होने लगी. 


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